नहीं रूक रहा दिल्ली बीजेपी में बिखराव… नेतृत्व के खिलाफ नाराजगी… बल्लन के बाद और भी कई जाने की कतार में!

-चर्चा के लायक भी नहीं मानते प्रदेश नेतृत्व का नाम
-पार्टी में सुलग रही विद्रोह की चिंगारी को दबाने में नाकाम
-प्रदेश नेतृत्व के फैसलों से बढ़ रही नेताओं में नाराजगी

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
प्रदेश नेतृत्व के मनमाने फैसलों को लेकर दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लगातर विद्रोह की चिंगारी सुलग रही है। हाल ही में बीजेपी छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थामने वाले राजकुमार बल्लन के बाद कई और निगम पार्षद व दूसरे नेता बीजेपी छोड़ने का मन बना रहे हैं। जैसे-जैसे निगम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे दिल्ली का सियासी पारा और बढ़ने जा रहा है। आने वाले दिनों में दिल्ली में चौंकाने वाले सियासी फैसले देखने को मिल सकते हैं। इसके बावजूद प्रदेश नेतृत्व इस चिंगारी को दबाने में नाकाम साबित हो रहा है।

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बताया जा रहा है कि घोंडा विधानसभा क्षेत्र के बृह्मपुरी वार्ड से बीजेपी पार्षद राज कुमार बल्लन छोड़ने के पीछे नगर निगम में पदों की बंदरबांट से उपजी नाराजगी है। उनकी नाराजगी मास्टर सत्यापाल को ज्यादा तवज्जो देने पर है। निगम के कार्यकाल के अंतिम चुनावी साल में बीजेपी ने मास्टर सत्यपाल को पूर्वी दिल्ली नगर निगम में नेता सदन बनाया है। जबकि राजकुमार बल्लन भी अपने लिए कोई बड़ा पद चाहते थे। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें कोई ज्यादा तवज्जो नहीं दी। खास बात है कि मास्टर सत्यपाल और राजकुमार बल्लन दोनों ही गुर्जर जाति से हैं।

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बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि राजकुमार बल्लन अपने लिए स्थायी समिति अध्यक्ष या फिर महापौर की सीट चाहते थे। बल्लन लंबे समय से बीजेपी से जुड़ रहे हैं और पार्टी के कई छोटे-बड़े पदों पर रहकर काम किया है। जबकि मास्टर सत्यपाल उनके मुकाबले बीजेपी में नये हैं। इसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें दो बार पूर्वी दिल्ली नगर निगम में स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाया और इस बार उन्हें नेता सदन का पद सोंपा है। इसी नाराजगी के चलते बल्लन ने बीजेपी को बॉय-बॉय कहा है क्योंकि प्रदेश नेतृत्व में शामिल नेता कुछ खास व्यक्तियों पर ही मेहरबान हैं।

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दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष को पद संभाले हुए एक साल से ज्यादा का समय हो गया है। इस दौरान बीजेपी में पार्टी छोड़ने वालों में रामकुमार बल्लन कोई अकेला नाम नहीं है। बल्कि प्रदेश नतृत्व के घमंडीपन, अनुभवहीनता, कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के प्रति गैरसंवेदनशीलता की वजह से पिछले करीब एक साल में बीजेपी पार्षद आरती यादव, पूर्व पार्षद अनिल यादव, बीजेपी विधानसभा प्रत्याशी संतलाल चावरिया, अनारकली वार्ड से बीजेपी पार्षद रेखा दीक्षित, बीजेपी जिला महामंत्री रहे श्रवण दीक्षित, श्रमिक संघ अध्यक्ष रहे जेपी टांक, जगवीर प्रधान, राकेश गुजराल, विशनदेव सहित ऐसे लोगों की लंबी फेहरिश्त है, जो पार्टी छोड़कर जा चुके हैं।
प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ बढ़ रही नाराजगी
दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। हाल ही में कुछ प्रवक्ताओं ने पार्टी के आधिकारिक ग्रुपों को छोड़कर नाराजगी जताई थी। एक प्रवक्ता तो अब भी प्रदेश के किसी नेता से बात नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर पार्टी और नगर निगमों में पदों की बंदरबांट को लेकर असंतोष की चिंगारी लगातार पनप रही है। पार्टी के नेता अपने प्रदेश नेतृत्व के नाम को तो सार्वजनिक तौर पर लेने लायक भी नहीं समझते हैं। राजकुमार बल्लन ने आप ज्वॉइन करते समय पीएम मोदी के नाम की चर्चा तो की, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष सहित एक भी व्यक्ति का नाम वहां पर लेने लायक नहीं समझा।
नहीं तय कर पाये वार्ड समिति पदाधिकारियों के नाम
दिल्ली बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व की कमजोरी का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि एक बार में कोई निर्णय नहीं ले पाता है। महापौरों के चुनाव में भी यह देखने को मिला था। जब लॉकडाउन शुरू होने से पहले मेयर चुनाव की तारीख बढ़ाई गई थी और इसे बाद में कई बार बढ़ाना पड़ा था। इसी तरह अब वार्ड समिति अध्यक्षों, उपाध्यक्षों एवं सदस्यों के चुनाव के लिए भी पार्टी एक बार में नाम तय नहीं कर पाई है। इसके चलते जो नामांकन 25 जून तक होने थे, उस तारीख को बढ़ाना पड़ गया। विरोधी दलों के नेताओं का कहना है कि बीजेपी को लोगों की नहीं केवल अपने चुनाव की चिंता है, यही कारण है कि एक भी चुनाव समय पर नहीं करवा पा रहे हैं।