दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर पर प्रवासियों का फिर जमावड़ा

-बस मिलने की झूठी खबर सुनकर जमा हुई प्रवासी मजदूरों की भीड
-न ट्रेन न बस, न कोई दूसरा साधन… लोग दर दर भटकने को मजबूऱ

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
सोमवार की सुबह एक बार फिर दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर पर प्रवासी मजदूरों का जमवाड़ा लग गया। लोगों का कहना है कि उन्हें पता चला था कि दूसरे राज्यों तक जाने के लिए यहां से बसें चलने वाली हैं। गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे लोगों ने बताया कि उनके रहने, खाने का कोई इंतजाम नहीं है। उनके पास कोई काम भी नहीं है। ऐसे में वह अपने घरों को वापस जाना चाहते हैं।

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कई लोगों ने बताया कि ट्रेन से जाने के लिए उन्होंने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया था। लेकिन उससे भी जाने को नहीं मिल रहा है। इसीलिए यहां आ गए हैं। बस नहीं मिली तो हम पैदल ही चले जाएंगे। यह प्रवासी मजदूर बिहार व उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों के रहने वाले हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू हुए लॉकडाउन की वजह से काम-धंधे बंद हो गए हैं। ऐसी स्थिति में दूसरे प्रदेशों में काम करने आए श्रमिकों और कामगारों के सामने खाने-पीने और पैसों की गंभीर समस्या खड़ी हो गई। अब यह लोग अपने घरों को लौट जाना चाहते हैं।

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गौरतलब है कि केंद्र सरकार व राज्य सरकारों ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए तमाम तरह की घोषणाएं की हैं। लेकिन वह सभी घोषणाएं और सुविधाएं इन प्रवासियों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। ज्यादातर सरकारी योजनाएं ट्विटर हेंडल और सरकारी फाइलों में दबकर रह गई हैं।

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सार्थक जन मंच की मांग, सड़कों पर उतरें अधिकारी
राजधानी दिल्ली के विभिन्न इलाकों से गुजरने वाले प्रवासी मजदूरों की मदद में जुटे सार्थक जन मंच ने सरकार से मांग की है कि सरकारी अधिकारियों को सड़कों पर उतारा जाए। यह अधिकारी सड़कों पर उतरकर प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का समाधान करें और उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने के लिए जरूरी इंतजाम करें। सार्थक जन मंच के अध्यक्ष हीरेन्द्र राठौड़ ने कहा कि सरकारी अधिकारी केवल अपने अपने ट्विटर अकाउंट तक सीमित होकर रह गए हैं। ट्विटर पर बड़ी बड़ी घोषणाएं करने वाले सरकारी बाबुओं और अधिकारियों का सड़कों पर आकर प्रवासी मजदूरों के लिए काम करना चाहिए। वैसे भी इन अधिकारियों के पास ज्यादा काम नहीं हैं। कोई भी सरकारी कार्यालय अपना काम पूरी क्षमता के साथ नहीं कर रहा है, अतः ऐसे सभी सरकारी अधिकारियों, बाबुओं और दूसरे स्टाफ को प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए लगाया जाना चाहिए।