-बढ़ी नेताओं की गुटबाजी और राहुल की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
-कांग्रेस सांसदों की बैठक में नजर आईं नये-पुराने के बीच की दूरियां
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
कई राज्यों में अपना अस्तित्व तलाश रही कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से दोराहे पर आकर खड़ी हो गई है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात जैसे कई राज्यों में पार्टी बेहद कमजोर हो गई है। कई दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार में तो पार्टी एकदम खत्म जैसी हो गई है। पार्टी में जिस तरह से गुटबाजी तेज हो रही है और पुराने नेता बनाम राहुल ब्रिगेड के बीच लगातार टकराव बढ़ रहा है। ऐसे में पार्टी के अंदर 1967 जैसी फूट की आशंका उठने लगी है।
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कांग्रेस सांसदों की बैठक में पार्टी के अंदर चल रहा घमासान खुलकर सामने आ गया। राहुल बिग्रेड में शामिल नेताओं ने जहां पुराने नेताओं के कामकाज पर सवाल उठाए तो कांग्रेसी दिग्गजों ने राहुल गांधी की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने पूछा कि राहुल गांधी आखिर किससे पूछकर फैसले लेते हैं।
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ऐसा पहली बार हुआ है जब पार्टी के अंदर से ही दिग्गज नेताओं ने राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग का विरोध किया है। वहीं राहुल की बहन प्रियंका गांधी की कार्यप्रणाली पर भी पुराने दिग्गजों ने सवालिया निशान लगाए हैं। बात यहां तक बढ़ गई है कि अब आरोप लगने लगे हैं कि राहुल और प्रियंका पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की बात भी नहीं सुनते हैं।
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कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी में अब 1967 जैसे परिस्थितियां बन गई हैं। उस समय के कामराज के नेतृत्व में बुजुर्ग नेताओं ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी (कांग्रेस आई) बना ली थी। हालांकि वह ज्यादा सफल नहीं हो पाईं और 1971 के पाकिस्तान युद्ध में जीत के बाद इंदिरा कांग्रेस ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी।
विरोधी गुट के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चला रखा है। कांग्रेसी नेताओं को पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के अस्पताल से वापस आने का इंतजार है। यदि वह पार्टी में उठ रहे इस सियासी तूफान को रोक पाने में सफल नहीं होती हैं तो जल्दी ही पार्टी में कुछ और नेताओं की बगावत देखने को मिल सकती है।
यदि बीते 43 साल की सियासत देखी जाए तो इस दौरान कांग्रेस, भाजपा और जनता दल जैसी बड़े दलों से टूटकर 87 पार्टियां बनी हैं। लेकिन अब सिर्फ 25 पार्टियां ही अस्तित्व में हैं। 62 पार्टियों का कोई नामोनिशान तक नहीं बचा है। अब तक कई दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं। इनमें शामिल एके एंटनी ने साल 1980 में कांग्रेस (ए) नाम से पार्टी बनाई थी। हालांकि 1982 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था। लेकिन इंदिरा गांधी के निधन तक उन्हें कांग्रेस में कोई भी पद नहीं दिया गया था।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने 1996 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी और तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) जो कांग्रेस से टूटकर बनी थी उसकी तमिलनाडु इकाई में शामिल हो गए थे। 1996 में टीएमसी ने अन्य क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस सरकार में उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया था। इसके बाद साल 2004 में जब मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता में आई उन्हें फिर से केंद्रीय वित्त मंत्री बनाया गया।
1996 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस नामक पार्टी बनाई थी। हालांकि बाद में वह फिर से कांग्रेस में आ गए थे। इसी तरह 1986 में प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस की स्थापना की थी। उन्होंने 1989 में इस पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था।
कांग्रेस से टूटकर अब भी सियासत में जमी हैं यह पार्टियां
यूं तो कांग्रेस का साथ कई नेताओं ने छोड़ा और अपने राजनीतिक दल बनाए। लेकिन अब भी ऐसे 9 राजनीतिक दल हैं जो कांग्रेस से अलग होकर सियासत में जमे हुए हैं। इनमें तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस, एआईएनआर कांग्रेस, नागा पीपल्स फ्रंट, विदर्भ जनता कांग्रेस और तमिल मनीला कांग्रेस के नाम शामिल हैं।
कई बार बिखरा जनता परिवार
सियासी खींचतान और नेताओं की महत्वाकांक्षा व अहम और बिखराव की वजह से जनता दल 20 साल में छह बार टूटा है। जनता दल से टूटकर अलग हुआ जेडीयू और इससे अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल, राष्ट्रीय जनता दल, बीजू जनता दल, इंडियन नेशनल लोकदल, जनता दल सेक्युलर, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, एसजेडी, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, जेएपी, पीएसपी, जननायक जनता पार्टी, एलजेडी और समाजवादी जनता पार्टी बनीं हैं।
भाजपा से अलग होने वाले नहीं हो सके सफल
कांग्रेस की तरह भारतीय जनता पार्टी में भी कई बार टूटफूट हुई लेकिन पार्टी से अलग होकर कोई भी नेता या राजनीतिक दल सफल नहीं हो सका। बीजेपी से टूटकर बनीं 17 पार्टियां अपना अस्तित्व नहीं बचा सकीं। भाजपा छोड़ने के कुछ सालों बाद उमा भारती, कल्याण सिंह, केशुभाई पटेल वापस लौट आए। कल्याण सिंह ने जनक्रांति पार्टी, उमा भारती ने जनशक्ति पार्टी, केशुभाई पटेल ने गुजरात परिवर्तन पार्टी, बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा बनाया था। लेकिन एक भी दल या नेता को जनता के बीच सफलता नहीं मिल सकी।