-25 जुलाई रविवार से शुरू हो रहा सावन का महीना
-जानें श्रावण मास का महत्व और पूजा अर्चना के बारे में बड़ी बातें
भगवान शिव शंभू को प्रिय श्रावण मास या सावन का महीना रविवार 25 जुलाई से शुरू हो रहा है। पावन श्रावण मास में भगवान शिव, माता गौरी और उनके परिवार की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन माह में भगवान शिव का अभिषेक करना बहुत ही फलदायी होता है, इसलिए सावन में लोग रुद्राभिषेक कराते हैं। सावन मास भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे उत्तम माह माना जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति के सभी मनोरथ पूरे होतेह हैं। विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने और अविवाहित महिलाएं अच्छे वर के लिए भी सावन में शिव जी का व्रत रखती हैं।
यह भी पढ़ेंः- हरिद्वार में प्रवेश करने पर 14 दिन क्वारंटीन… बाहर से आने वालों की गाड़ियां होंगी जब्त
यह भी पढ़ेंः- 20 जुलाई को ग्रहों के सेनापति का सिंह राशि में गोचर… जानें किसकी जागेगी किस्मत और किसको मिल सकती है ठोकर?
श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा-आराधना का विशेष विधान है। इस दौरान सावन सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व बताया जाता है। श्रावण मास में बेल पत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल चढ़ाना अति फलदायी माना गया है। शिव पुराण के अनुसार जो कोई व्यक्ति इस माह में सोमवार का व्रत करता है भगवान शिव उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए हरिद्वार, काशी, उज्जैन, नासिक समेत भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।
यह भी पढ़ेंः- ‘पीएम मोदी के मंत्रीमंडल में बांग्लादेशी मंत्री’?
सावन के महीने का प्रकृति से भी गहरा संबंध है क्योंकि इस माह में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण धरती बारिश से हरी-भरी हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में बारिश होने से बड़ी राहत मिलती है। इसके अलावा श्रावण मास में कई पर्व भी मनाए जाते हैं। भारत के पश्चिम तटीय राज्यों (महाराष्ट्र, गोवा एवं गुजरात) में श्रावण मास के अंतिम दिन नारियल पूर्णिमा मनायी जाती है। श्रावण के पावन मास में शिव भक्तों के द्वारा कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लाखों शिव भक्त देवभूमि उत्तराखंड में स्थित शिवनगरी हरिद्वार और गंगोत्री धाम की यात्रा करते हैं। वे इन तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों रखकर पैदल लाते हैं और बाद में वह गंगा जल शिव को चढ़ाया जाता है। सालाना होने वाली इस यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को कांवरिया अथवा कांवड़िया कहा जाता है। हालांकि कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष कांवड़ यात्रा पर रोक लगाई गई है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। तब सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस विष को पी लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा। कहते हैं रावण शिव का सच्चा भक्त था। वह कांवर में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया और तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली।
रखे जाते हैं तीन प्रकार के व्रत
सावन सोमवार व्रतः श्रावण मास में सोमवार के दिन जो व्रत रखा जाता है उसे सावन सोमवार व्रत कहा जाता है। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है।
सोलह सोमवार व्रतः सावन को पवित्र माह माना जाता है। इसलिए सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ करने के लिए भी यह बेहद ही शुभ समय माना जाता है।
प्रदोष व्रतः सावन में भगवान शिव एवं माता पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष व्रत प्रदोष काल तक रखा जाता है।
ज्योतिषीय महत्वः
श्रावण मास के प्रारंभ में सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य का गोचर सभी 12 राशियों को प्रभावित करता है। अतः ज्योतिषीय गणना के लिए भी श्रावण मास को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
(यह आलेख भारतीय सनातन परंपरा एवं ज्योतिषीय सिद्धांतों पर आधारित है और जनरूचि को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसके लिए कोई विशेष दावा नहीं है। अपने समाचार, लेख एवं विज्ञापन छपवाने हेतु संपर्क करेंः- ईमेलः newsa2z786@gmail.com मोबाइलः 7982558960)