ज्येष्ठ पूर्णिमा पर करें भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा… जानें वट पूर्णिमा व्रत का विधि-विधान

-यहां पढ़ें पूर्णिमा व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
गुरूवार 24 जून, 2021 को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पड़ रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा पर्व माना जाता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक दम आमने-सामने की स्थिति में होंगे। यह ज्येष्ठ महीने का आखिरी दिन होता है। इसके अगले दिन आषाढ़ महीने की शुरुआत हो जाती है। इसी दिन से वैवस्वत मन्वंतर की शुरुआत हुई थी। शास्त्रों के अनुसार इस पूर्णिमा के दिन जो दान-पुण्य किया जाता है, वह अक्षय हो जाता है। यह दिन भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने, व्रत एवं दान-पुण्य करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस बार पूर्णिमा की तिथि गुरूवार को पड़ने के कारण इसका और भी महत्व बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना विशेष फलदायी है।

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इस वर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन ग्रहों का विशेष योग बन रहा है। वृष राशि में इस समय बुध और राहु युति कर रहे हैं। जबकि मिथुन राशि में सूर्य देव विराजमान हैं। कर्क राशि में मंगल और शुक्र की युति है तो वृश्चिक राशि में चंद्रमा और केतु गोचर कर रहे हैं। मकर राशि में शनि अपनी टेढ़ी चाल चल रहे हैं वहीं कुंभ राशि में गुरू वक्री चल रहे हैं। ऐसे में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का व्रत सभी राशियों के जातकों के लिए विशेष फलदायी साबित हो सकता है।

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पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव अपनी पूर्ण कला से युक्त होते हैं, जिसका प्रभाव सीधे व्यक्ति के मन और शरीर पर पड़ता है। इस दिन चंद्र पूजन से व्यक्ति की मानसिक और आर्थिक स्थिति ठीक होती है। क्योंकि ज्योतिष में चंद्रमा को द्रव्य और मन का कारक कहा गया है। इसी दिन वट पूर्णिमा का व्रत भी रखा जाता है। वट पूर्णिमा का पर्व विशेषतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत में मनाया जाता है। ये त्योहार उत्तर भारत में मनाए जाने वाले वट सावित्री व्रत की तरह ही मनाया जाता है। अंतर ये है कि उत्तर भारत में वट सावित्री का पूजन ज्येष्ठ मास की आमावस्या पर होता है, जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत में यह पर्व पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, इसलिए ही इसे वट पूर्णिमा भी कहते हैं।
इस तरह करें लक्ष्मी नारायण की पूजा
पूर्णिमा पर लक्ष्मी-नारायण व्रत करने का बहुत महत्व है। भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी सांसारिक दुखों का नाश होता है और सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर उगते सूर्य को जल (अर्घ्य) दें और इसके बाद भगवान लक्ष्मीनारायण के सामने हाथ में अक्षत, जल, पूजा की सुपारी लेकर व्रत का संकल्प लें। पूजा के लिए पूरब की ओर मुख करके बैठ जाएं और एक चौकी पर लाल और पीला वस्त्र बिछा कर लक्ष्मी-नारायण को आसन दें। पीला कपड़ा दाहिनी ओर बिछा कर विष्णु जी को स्थापित करें और लाल कपड़ा बाएं ओर बिछा का देवी लक्ष्मी को विराजमान करें। इसके बाद लाल, सफेद और पीले पुष्प अर्पित करते हुए विधि-विधान से पूजन करें।

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संभव हो तो देवी लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित करें। इसके बाद मखाने की खीर, आटे की पंजीरी या शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का भोग लगाएं। आरती के बाद लक्ष्मीनारायण व्रत की कथा श्रवण या वाचन करें। पूर्णिमा तिथि पर व्रत रखकर विधिवत विष्णु जी का पूजन करने और चंद्रमा को अर्घ्य देने से आपके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह तिथि मां लक्ष्मी को भी अत्यंत प्रिय होती है। इसलिए इस दिन श्रीहरि के साथ लक्ष्मी पूजन करने से दरिद्रता का नाश होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार व्रत के प्रभाव से मनुष्य की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने से धन, संपत्ति, सुख, वैभव में वृद्धि होती है। इस व्रत को गृहस्थ ही नहीं, अविवाहितों को भी करना चाहिए। इससे उन्हें सुयोग्य जीवन साथी की प्राप्ति होती है।
वट वृक्ष से की जाती सौभाग्य की कामना
जैसा के ऊपर वर्णन किया जा चुका है कि दक्षिण एवं पश्चिम भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्त्रियां उपवास रखकर बरगद वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा आराधना करती हैं। पूजा के समय महिलाओं को शुद्ध जल और कच्चे दूध से वट वृक्ष को सींच कर वृक्ष के तने में कच्चा सूत या लाल मौली लपेटकर कम से कम सात परिक्रमा करनी चाहिए। एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखें व दूसरी टोकरी में सावित्री की प्रतिमा रख कर जल, अक्षत, कुमकुम से उनकी पूजा करें। इसके पश्चात परम पतिव्रता सावित्री देवी से मंत्रोंच्चारण के साथ इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए-
जगतपूज्ये जगन्मातः सावित्रि पतिदैवते पत्या सहवियोगं मे वतस्थे कुरु ते नमः॥
मंत्र का अर्थः ‘हे जगन्माता सावित्री! तुम संपूर्ण जगत के लिए पूजनीय तथा पति को ही इष्टदेव मानने वाली पतिव्रता हो। वट वृक्ष पर निवास करने वाली देवी! तुम ऐसी कृपा करो, जिससे मेरा अपने पति के साथ नित्य संयोग बना रहे। कभी वियोग न हो। तुम्हें मेरा सादर नमस्कार है।’
घर पर ही करें स्नान और ध्यान
शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि जो स्त्रियां यह प्रार्थना करके दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराने के पश्चात स्वयं भोजन करती हैं और अपनी क्षमता के अनुसार दान दक्षिणा देते हुए अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं वह सदा सौभाग्यवती बनी रहती है। पूर्णिमा के व्रत में पवित्र नदी में स्नान और दान की पंरपरा भी शास्त्रों में बताई गई्र है। लेकिन कोरोना काल में नदियों या गंगा तक जाना संभव नहीं हो तो स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर घर पर ही स्नान करने से पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। इस दिन व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिए। पूर्णिमा का व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है।
शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा गुरूवार 24 जून को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगी। पूर्णिमा का समापन शुक्रवार 25 जून 2021 को रात्रि 12 बजकर 9 मिनट पर होगा। अतः गुरूवार को पूर्णिमा का व्रत रखने के पश्चात शुक्रवार की सुबह में व्रत का पारायण किया जायेगा।