15 नवंबर को होगा तुलसी विवाह… जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन की विधि

-देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है त्योहार
-इस बार द्वादशी के दिन मनाया जायेगा तुलसी विवाह

हेमा शर्मा/ नई दिल्ली
कार्तिक मास को त्योहारों का मास कहा जाता है। क्योंकि इस महीने में हिंदू धर्म के बहुत से त्योहार पड़ते हैं। उन्हीं में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, छठ पूजा जैसे प्रसिद्ध त्योहार शामिल हैं। इन त्योहारों के बाद आती है कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। इसे ‘तुलसी विवाह’ के नाम से भी जाना जाता है।

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आचार्य रामगोपाल शुक्ल बताते हैं कि कार्तिक माह में मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप और माता तुलसी के विवाह का प्रचलन है। एकादशी तिथि को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ‘शयनी एकादशी’ को सो जाते हैं। इसके उपरांत 4 मास बाद प्रबोधिनी एकादशी के दिन जब वो योग निद्रा से जागते हैं तो तुलसी माता से उनका विवाह किया जाता है।

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गौरतलब है कि भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी के विवाह सम्पन्न होने के साथ ही विवाह के शुभ मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। कहा जाता है की यदि किसी के विवाह लग्न में अड़चन आती है तो उनका देवउठनी या यूं कहें कि तुलसी विवाह वाले दिन बिना लग्न के विवाह हो जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व
हिंदू धर्म में कन्या दान को सबसे बड़े दान की श्रेणी में रखा गया है। मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्या दान करने के समान फल की प्राप्ति होती है। यदि किसी को कन्या सुख की प्राप्ति नहीं हुई है तो जीवन में एक बार तुलसी विवाह करने से उन्हें कन्या दान के पुण्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां तुलसी बैकुंठ धाम को गई थी अतः जो इस विवाह को विधि-विधान से करता है उसे अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
द्वादशी को शुभ मुहूर्त और तिथि
इस बार यह त्योहार द्वादशी के दिन मनाया जायेगा। दरअसल एकादशी तिथि का समापन 15 नवंबर को प्रातः 6 बजकर 39 पर हो जायेगा। द्वादशी का आरंभ 15 नवंबर की प्रातः 6 बजकर 39 मिनट से आरंभ होकर समापन 16 नवंबर मंगलवार को प्रातः 8 बजकर 1 मिनट पर होगा। इस बार तुलसी विवाह द्वादशी के दिन सोमवार 15 नवंबर 2021 को मनाया जायेगा।
तुलसी विवाह पूजा की विधि
तुलसी के गमले को लाल गेरू से रंग कर लकड़ी की चौकी पर आसन बिछाकर उस पर स्थापित किया जाता है। दूसरी चौकी पर भगवान शालिग्राम को स्थापित किया जाता है। दोनां के ऊपर गन्ने से मंडप सजाया जाता है, और एक कलश में जल भरकर उसमें 5 या 7 आम के पत्ते लगाकर पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है। उसके बाद उनके सम्मुख घी का दीपक जलाकर रोली-कुमकुम से तिलक करते हैं। तुलसी पर लाल चुनरी व सारा श्रृंगार चढ़ाया जाता है। इसके बाद शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी माता की 7 बार परिक्रमा की जाती है और पूजन पूर्ण होने पर उनकी आरती की जाती है। तत्पश्चात पूजन संपन्न होने पर प्रसाद वितरण किया जाता है।
तुलसी स्तुति के मंत्र
पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण किया जाना चाहिए।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः,
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी पूजन के मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीहरिप्रिया।।
तुलसी का ध्यान मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीहरिप्रिया।।