-होगा सदी का सबसे लम्बा चन्द्र ग्रहण, जानें तारीख और समय
-आंशिक होने की वजह से नहीं लगेगा ग्रहण का सूतक काल
हेमा शर्मा/ नई दिल्ली,
इस साल के अंत में यानि 19 नवंबर को सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है। यह ग्रहण 19 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को वृषभ राशि और कृतिका नक्षत्र में लगेगा। भारत में चंद्र ग्रहण को ज्योतिष के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह चंद्र ग्रहण इस सदी का सबसे लम्बा ग्रहण होगा। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि पाप ग्रह राहु और केतु जब चंद्रमा पर हमला करते हैं, उस समय चंद्र ग्रहण की स्थिति होती है।
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आचार्य रामगोपाल शुक्ल के मुताबिक भारत में चंद्र ग्रहण शुक्रवार 19 नवंबर 2021 की सुबह 11ः34 मिनट से शुरू होकर शाम 5ः33 मिनट तक रहेगा। बता दें कि भारत में इसका सूतक मान्य नहीं होगा। क्योंकि भारत के ज्यादातर हिस्सों में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा। इसके बावजूद धार्मिक मान्यताओं के चलते ग्रहण के दौरान होने वाले निषेध कार्यों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। ग्रहण के दौरान खाने-पकाने, पूजा-पाठ, से परहेज़ किया जाता है। ग्रहण के उपरांत नहाने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि ग्रहण के बाद नहाने से शुद्धि होती है। ग्रहण काल में गर्भवती महिलाओं को ख़ास सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। चंद्र ग्रहण के समय शिव आराधना करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
असम, अरूणाचल के अलावा नहीं देगा दिखाई
यह चंद्र ग्रहण भारत में आंशिक होगा व सिर्फ़ असम और अरुणाचल प्रदेश में ही कुछ समय के लिए ग्रहण दिखाई देगा। इसके अलावा उत्तरी यूरोप, अमेरिका, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, और प्रशांत महासागर में चंद्र ग्रहण पूर्ण रूप से देखा जा सकता है।
जाने कहानी ग्रहण के पीछे की
आपने कई बार ग्रहण के बारे में सुना होगा लेकिन किया आप ग्रहण के पीछे की कहानी जानते हैं , आइए आपको इस कथा के बारे में बताते हैं । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राहु-केतु के चंद्रमा पर हमला करने से चंद्र ग्रहण लगता है।
आचार्य रामगोपाल शुक्ल बताते हैं कि समुद्र मंथन के समय जब भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पिला रहे थे उस समय स्वर भानु नामक एक दैत्य भी छल से अमृत पान करने के लिए पंक्ति में आ खड़ा हुआ। जैसे ही उसने अमृत पान करने की कोशिश की तो पास खड़े सूर्य और चंद्र देव ने उसकी इस हरकत के बारे में विष्णु भगवान को बता दिया। विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से जैसे ही उस दैत्य पर वार किया उसका सिर धड़ से कटकर अलग हो गया परंतु अमृत की कुछ बूंदे उसके गले से नीचे उतर गई थी। जिस कारण उसका सिर और धड़ अमर हो गए। उस समय से सिर वाला हिस्सा राहु और धड़ वाला हिस्सा केतु के नाम से जाना जाने लगा। माना जाता है है राहु और केतु अपना बदला लेने के लिए सूर्य- चंद्रमा पर हमला करते हैं। उन दोनों ग्रहों का यह हमला सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहलाता है।