दलबदलू पार्षदों की बढ़ी मुश्किलें… चुनाव के लिए करना होगा लंबा इंतजार… अब टिकट मिलना भी पक्का नहीं!

-नगर निगम चुनाव टलने से छाई मायूसी… बंद हुआ प्रचार, घर पर आराम फरमा रहे सरकार
-‘आप’ ज्वॉइन करने वाले ज्यादातर नेताओं की तेजी से बढ़ रहीं धड़कनें, अंधेरे में भविष्य
-नगर निगम एक होते ही बिगड़ जायेंगे वार्डां के सियासी समीकरण, घटेंगे निगम वार्ड

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली, 12 अप्रैल, 2022
राजधानी दिल्ली में मौका देखकर पार्टी बदलने वाले निगम पार्षदों और नेताओं की मुश्किलें बढ़ गई हैं। संसद ने तीनों नगर निगमों को एक करने वाले विधेकय को मंजूरी दे दी है। किसी भी दिन इसके संबंध में अधिसूचना जारी हो सकती है। इसी के साथ अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में गये दलबदलुओं को भी आने वाले दिनों में नई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। सभी दलों के पुराने नेताओं ने अपने यहां आये दूसरे दलों के नेताओं की गोभी खोदने की तैयारियां शुरू कर दी हैं।

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बता दें कि फिलहाल निगम का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही चुनाव 6 महीने के लिए टलना तय है। इसके साथ ही वार्ड्स के परिसीमन की प्रक्रिया भी शुरू हो जायेगी। लेकिन माना यह जा रहा है कि निगम चुनाव होने में 6 महीने से ज्यादा का भी वक्त लग सकता है। जिसके चलते ज्यादातर दलबदलू नेताओं को अपने सियासी समीकरण बिगड़ जाने का डर सताने लगा है।

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बता दें कि तीनों निगमों को एक करने की अधिसूचना जारी होते ही पूरी व्यवस्था बदल जायेगी। भविष्य में निगम चुनाव कराने के लिए वार्डों की संख्या 272 से घटाकर 250 या इससे कम की जायेगी। जिसके चलते कुल 68 विधानसभा क्षेत्रों पर इसका सीधा असर पड़ेगा। केवल यही नहीं, वार्ड्स के परिसीमन के साथ ही उनका आकार बदल लायेगा। जो लोग अपने लिए रोटेशन के आधार पर कुछ वार्ड्स में अपनी जीत सनिश्चित मान रहे थे, परिसीमन के साथ ही उनमें कुछ इलाके कट जायेंगे तो कुछ जुड़ जायेंगे। ऐसे में भविष्य में होने वाले चुनाव में किसी तरह के मतदाताओं से पाला पड़ेगा, यह अभी कोई नहीं जानता है।
कम लोगों को मिलेगा मौका
ज्यादातर नेताओं ने निगम चुनाव में टिकट दिये जाने के वादे के साथ ही अपनी पार्टी छोड़ी है। सीटें घटने की वजह से यह तो तय है कि नगर निगम के चुनाव जब भी होंगे अब के मुकाबले कम लोगों को मौका मिलेगा। ऐसे में टिकट के लिए सभी दलों में मारामारी होना तय है। दूसरी ओर किसी भी दल के पुराने कार्यकर्ता और नेता चुनाव के समय टिकट मांगेंगे। ऐसे में किसी भी दल के लिए दूसरी पार्टी से आये नेताओं के लिए टिकट सुनिश्चित करना मुश्किल हो जायेगा। यदि बाहर से आये किसी नेता को टिकट मिल भी जाता है तो उसी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता और नेता उन्हें हराने में जुट जायेंगे। इस तरह की बातें सोच-सोच कर बहुत से दल-बदलू नेताओं की नींद उड़ी हुई है।
आप ज्वाइन करने वालों को होगी सबसे ज्यादा मुश्किल
नगर निगमों को एक करने की चर्चा शुरू होने से पहले तक हर वार्ड में आम आदमी पार्टी के टिकट के दावेदारों की लंबी-चौड़ी लिस्ट थी। एक-एक वार्ड से 10 से 20 लोग तक दावेदारी कर रहे थे। सभी दावेदारों के पोस्टर भी जमकर दिखाई दे रहे थे। इसी दौरान बीजेपी और कांग्रेस छोड़कर बड़ी संख्या में मौजूदा निगम पार्षद और दूसरे नेताओं ने आप ज्वॉइन की थी। आगे चलकर वार्डों की संख्या घट जायेगी तो एक वार्ड में दावेदारों की संख्या और बढ़ जायेगी। ऐसे में चुनाव के समय दूसरे दलों से आप में आये नेताओं को ही सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ने वाला है।
बंद हुआ प्रचार.. घर पर आराम कर रहे सरकार
निगमों को एक करने की घोषणा से पूर्व नेताओं का चुनाव प्रचार चरम पर था। बड़ी संख्या में लोग बीते तीन-चार महीनों से अपने-अपने वार्डों में चुनाव प्रचार में लगे हुए थे। सैकड़ों की संख्या में लोगों ने अलग अलग वार्डों में चुनाव कार्यालय खोल लिये थे। जनसंपर्क और प्रचार पर खूब पैसा खर्च किया जा रहा था। लेकिन निगमों को एक करने की घोषणा और चुनाव टलने की आशंका के बाद ऐसे सभी लोग अब अपने घरों पर आराम फरमा रहे हैं। चुनावी कार्यालयों पर बैठना बंद कर दिया है, यहां तक कि लोगों से मिलना-जुलना तक बंद कर दिया है।
जिनके वार्ड बदले उनके चेहरों पर भी मायूसी
विभिन्न दलों के जिन नेताओं के वार्ड अनूसूचित और महिला से सामान्य हुए थे, वह लोग बेहद खुश थे। उन्हें लंबे अरसे के बाद चुनावी मैदान में उतरने का मौका नजर आ रहा था। लेकिन अब उनके वार्डस की स्थिति फिर से बदलने की आशंका घिर आयी है। कारण है कि अब नये सिरे से सभी वार्डों का परिसीमन होगा और सभी वार्डस को महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए नये सिरे से आरक्षित किया जायेगा। ऐसे में जो वार्ड सामान्य की श्रेणी में आये थे, वह फिर से आरक्षित हो सकते हैं। यही सोचकर सामान्य श्रेणी के नेताओं के चेहरों पर मायूसी छा गई है।