-मुस्लिम मतदाताओं ने दिखाया आप मुखिया सीएम केजरीवाल को आईना
-चौहान बांगर सीट पर कांग्रेस को एकतरफा समर्थन है भविष्य का इशारा!
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
दिल्ली में नगर निगम की 5 सीटों पर हुए उपचुनाव में राजधानी के मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आईना दिखाने की कोशिश की है। खास तौर पर चुनाव के नतीजे बताते हैं कि आम आदमी पार्टी से दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं का मोह भंग हो गया है। यदि उन्हें विकल्प मिलता है तो वह आम आदमी पार्टी के विरोध में भी जा सकते हैं। उपचुनाव के नतीजे आने के बाद आम आदमी पार्टी और इसके नेता भले ही अपने लिए निगम की सत्ता में आने के सपने देखने में जुटे हों लेकिन मुस्लिम मतदाताओं ने दिल्ली के सियासी मैदान में ‘आप’ के लिए खतरे की घंटी भी बजा दी है।
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आम आदमी पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो पिछले एक से डेढ़ साल के बीच आप नेताओं की कार्यप्रणाली और पार्टी की नीतियों में आए बदलाव और एक ही मुद्दे पर बार-बार बदलते स्टेंड की वजह से दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं का मोह भंग हो रहा है। आम आदमी पार्टी ने नगर निगम की चौहान बांगर सीट को 2017 में 2342 मतों के अंतर से जीता था। साल 2017 के निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी को कुल 8830 वोट हासिल हुए थे। उस समय कांग्रेस को कुल 6488 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा था। बीजेपी महज 289 वोटों पर ही सिमट कर रह गई थी। हालांकि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को भी करीब ढाई हजार वोट मिले थे।
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लेकिन 2021 के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी चौहान बांगर सीट को कांग्रेस के हाथों सबसे बड़े 10 हजार 642 वोटों के अंतर से हारी है। इतने बड़े अंतर से आम आदमी पार्टी अन्य 4 में से किसी भी सीट को नहीं जीत सकी है। आम आदमी पार्टी के हाजी इशराक को इस बार केवल 5561 वोट ही हासिल हो पाए हैं। जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी चौधरी जुबैर अहमद ने क्लीन स्वीप करते हुए 16 हजार 203 वोट लेकर आम आदमी पार्टी के इरादों पर झाडू़ फेरकर रख दी है।
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चौहान बांगर सीट पर 28 अप्रैल को 5 उम्मीदवारों में से चुनाव के लिए कुल 21 हजार 968 वोट डाले गए थे। इनमें से कांग्रेस को करीब 70 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल हुए हैं। जबकि उपचुनाव में 5 में से 4 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी करीब 20 फीसदी से भी कम वोटों तक ही सिमट कर रह गई है। बताया जा रहा है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों और इसके बाद कोरोना के समय जमाती कोरोना पीड़ितों का डाटा जारी करने के मामले में आम आदमी पार्टी मुस्लिम मतदाताओं की कसौटी पर खरी नहीं उतरी है।
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आम आदमी पार्टी के एक पदाधिकारी के मुताबिक हाल ही में ‘आप’ की नीति में आया सांप्रदायिक बदलाव भी मुस्लिम मतदाताओं को नहीं भाया है। दिल्ली में निगम उपचुनाव के लिए मतदान से पूर्व मंगोलपुरी इलाके में हुई रिंकू शर्मा की हत्या के मामले में पार्टी की ओर से सवाल उठाए जाना और गुजरात निकाय चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के द्वारा ‘जय श्रीराम’ का सहारा लिया जाना मुस्लिम मतदाताओं को नागवार गुजरा है। यदि अगले साल 2020 में होने वाले निगम चुनाव में कांग्रेस चौहान बांगर में उठाए गए मुद्दों को मुस्लिम मतदाताओं को समझाने में कामयाब रहती है तो आम आदमी पार्टी को निगम की सत्ता में आने में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
बार-बार स्टेंड बदलना पड़ सकता है भारी
पार्टी से जुड़े जुड़े सूत्र बताते हैं कि आम आदमी पार्टी के मुखिया और प्रमुख नेता एक ही मुद्दे पर बार-बार अपना स्टेंड बदलते रहते हैं। इसकी वजह से कार्यकर्ताओं को इसका स्पष्टीकरण देने में भारी मुश्किल होती है। राजधानी के सियासी जानकारों का कहना है कि मुस्लिम मतदाताओं का आम आदमी पार्टी से मोह भंग हो चुका है। यदि उन्हें बीजेपी को हराने के लिए आप के अलावा भी कोई अच्छा विकल्प मिलता है तो वह किसी भी पार्टी के साथ जा सकते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में दिल्ली में होने वाले चुनावों में आम आदमी पार्टी के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।