-मंगलवार 27 अप्रैल को मनाया जा रहा हनुमान जयंती पर्व
आचार्य राम गोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
सनातन धर्म में हनुमान जयंती का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस साल यह त्योहार 27 अप्रैल को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक हनुमान भक्त इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन मंदिरों में हनुमान जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। हालांकि इस साल कोरोना वायरस से बचाव के लिए हनुमान भक्तों को घर पर ही रहकर हनुमान जन्मोत्सव मनाना है। इस साल हनुमान जन्मोत्सव के दिन सिद्धि योग बनने से इसका महत्व और बढ़ रहा है।
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हनुमान जयंती के दिन सिद्धि योग रात 08 बजकर 03 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में सिद्धि योग को शुभ योग माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्य किए जा सकते हैं। जबकि इसके बाद व्यतीपात योग लग जाएगा। इस योग को ज्योतिष शास्त्र में शुभ नहीं माना जाता है। हनुमान जयंती के दिन स्वाती नक्षत्र रात 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। इसके बाद विशाखा योग लग जाएगा। ज्योतिष शास्त्र में विशाखा और स्वाती नक्षत्र के दौरान शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन चंद्रमा तुला और सूर्य मेष राशि में रहेंगे।
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हनुमान जयंती के मौके पर भक्त हनुमान जी के मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि जो हनुमान जी की भक्ति और दर्शन करता है, उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए भक्त विधि-विधान से पूजा करने के साथ ही उपवास भी रखते हैं। मान्यताओं के मुताबिक हनुमान जयंती के दिन भक्त नौकरी व व्यापार में धन से जुड़ी समस्याओं के लिए उपाय भी करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में हनुमान जी के आगे चमेली के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान जी को चोला चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
कलयुग में साक्षात देव हनुमानजी हैं। हनुमानजी की साधना से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सभी पर विजय पायी जा सकती है। हनुमान जयंती की पूर्व रात्रि जमीन पर सोना चाहिए। सोने से पहले भगवान राम और माता सीता के साथ हनुमान जी का ध्यान लगाना चाहिए। इसके अगले दिन स्नान आदि करने के पश्चात हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें। अब पूर्व दिशा में हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें। पूरे विधि-विधान के साथ हनुमान जी की पूजा करें।
हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए चोला चढ़ाने के साथ सुगन्धित तेल और सिंदूर चढ़ाएं। साथ ही रामचरित मानस का अखंड पाठ, सुंदरकाण्ड का पाठ, बजरंग बाण और हनुमान बाहुक का पाठ करना लाभकारी होता है। वायुपुराण में एक श्लोक वर्णित है-
आश्विनस्या सितेपक्षे स्वात्यां भौमे च मारुतिः। मेष लग्ने जनागर्भात स्वयं जातो हरः शिवः।।
यानी- भगवान हनुमान का जन्म कृष्ण पक्ष चतुर्दशी मंगलवार को स्वाति नक्षत्र की मेष लग्न और तुला राशि में हुआ था। हनुमान जी बाल्यकाल से ही तरह-तरह की लीलाएं करते थे। एक दिन उन्हें ज्यादा भूख लगी तो सूर्य को मधुर समझकर उसे अपने मुंह में भर लिया। जिसके कारण पूरे संसार में अंधेरा छा गया। इसे विपत्ति समझकर इंद्र ने हनुमान जी पर व्रज से प्रहार किया। इसके प्रभाव से उनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई। यही वजह है कि इनका नाम हनुमान पड़ा।
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साधारणतया हनुमान प्रतिमा को चोला चढ़ाते हैं। हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने के लिए मंगलवार को तथा शनि महाराज की साढ़े साती, अढैया, दशा, अंतरदशा में कष्ट कम करने के लिए शनिवार को चोला चढ़ाया जाता है। चोले में चमेली के तेल में सिन्दूर मिलाकर प्रतिमा पर लेपन कर अच्छी तरह मलकर, रगड़कर चांदी या सोने का वर्क चढ़ाते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ बातें समझने की हैं। पहली बात चोला चढ़ाने में ध्यान रखने की है। अछूते (शुद्ध) वस्त्र धारण करें।
दूसरी नख से शिख तक (सृष्टि क्रम) तथा शिख से नख तक संहार क्रम होता है। सृष्टि क्रम यानी पैरों से मस्तक तक चढ़ाने में देवता सौम्य रहते हैं। संहार क्रम से चढ़ाने में देवता उग्र हो जाते हैं। यह चीज श्रीयंत्र साधना में सरलता से समझी जा सकती है। यदि कोई विशेष कामना पूर्ति हो तो पहले संहार क्रम से, जब तक कि कामना पूर्ण न हो जाए, पश्चात सृष्टि क्रम से चोला चढ़ाया जा सकता है। ध्यान रहे, पूर्ण कार्य संकल्पित हों। सात्विक जीवन, मानसिक एवं शारीरिक ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। हनुमानजी के विग्रह का पूजन एवं यंत्र पूजन में काफी असमानताएं हैं। प्रतिमा पूजन में सिर्फ प्रतिमा का पूजन तथा यंत्र पूजन में अंग देवताओं का पूजन होता है।