-व्यापार जगत के लिए उनकी कमी पूरा करना मुश्किल
जी हां, कुछ इसी तरह की शख्सियत थे श्याम बिहार मिश्र और मनोहर लाल कुमार। यह दोनों व्यापारी नेता जब किसी के सामने आये तो वह बिना मुस्कराये नहीं रह सका। लेकिन देशभर का व्यापारी समाज आज स्तब्ध है, शोकाकुल है और अपने आपको इस समय असहाय व नेतृत्व विहीन पा रहा है। क्योंकि कोरोना महामारी ने इन दोनों बड़े राष्ट्रीय नेताओं को एक सप्ताह के अंदर ही भारत के व्यापारी समाज से छीन लिया। इन दोनों व्यापारी नेताओं के जाने से व्यापार जगत में खाली हुए स्थान को फिलहाल देश का कोई अन्य नेता नहीं भर सकता। मनोहर लाल कुमार भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के चेयरमैन और श्याम बिहारी मिश्र राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। कोरोना संक्रमण के चलते श्याम बिहारी मिश्र 20 अप्रैल और मनोहर लाल कुमार 26 अप्रैल 2021 को इस दुनिया को छोड़कर गोलोकवासी हो गये।
कोई ऐसे ही श्याम बिहारी मिश्र या मनोहर लाल कुमार नहीं बन जाता है, इसके लिए पूरा जीवन त्याग और तपस्या के साथ जीना पड़ता है। कुछ ऐसा करना होता है, जो दूसरों से अलग हटकर हो और जो दूसरे लोगों के लिए प्रेरणादायक भी हो। क्योंकि दोनों ही वरिष्ठ व्यापारी नेता थे, तो मुझे भी उन लोगों के साथ लंबे समय तक काम करने का मौका मिला। हालांकि पंडित श्याम बिहारी मिश्र से मेरी आखिरी बातचीत करीब एक-डेढ़ साल पहले हुई थी, जब दिल्ली में भारतीय उद्योग व्यापार मंडल का कोई कार्यक्रम था। जबकि मनोहर लाल कुमार जी से अभी दो-तीन हफ्ते पहले ही बात हुई थी। दोनों ही दिल्ली और देश के व्यापार जगत की समस्याओं को लेकर चिंतित थे। मूल रूप से कानपुर निवासी श्याम बिहारी मिश्र और दिल्ली निवासी मनोहर लाल कुमार भारतीय जनता पार्टी से जुड़े राजनेता थे। मेरे साथ मोबाइल फोन पर हुई बातचीत में मनोहर लाल कुमार ने कहा था कि ‘‘हमें कम से कम दिल्ली में व्यापारिक समाज को केंद्रित करते हुए कोई राजनीतिक पत्रिका या समाचार पत्र अच्छे स्तर पर निकालना चाहिए।’’ वो इसके लिए हर तरह का सहयोग करने के लिए तैयार थे। तब मैंने उन्हें कहा था कि ‘‘मैं किसी दिन आपसे मिलकर आपके पास बैठकर बात करूंगा।’’ लेकिन वह समय नहीं आ सका।
मिश्र ने कही थी सड़कों पर खून बहाने की बातः
यहां पहले में देश भर के व्यापारियों के चहेते नेता श्याम बिहारी मिश्र की बात करना चाहूंगा। बात 1979 की है, उस समय उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास की सरकार थी। जो कि जनता पार्टी के नेता थे। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में श्याम बिहारी ने बिक्री कर के खिलाफ आंदोलन चलाया था। तब उन्होंने नारा दिया कि ‘‘बिक्री कर नहीं हटा तो सड़कों पर खून बहेगा।’’ उन दिनों एक आंदोलन के चलते बहुत से व्यापारी जेल में बंद थे। यह दीपावली का मौका था, लेकिन श्याम बिहारी मिश्र जेल से बाहर निकलने को तैयार नहीं थे। उन्होंने घोषणा की कि जो व्यापारी बंद हैं, उनकी पत्नियां भी गिरफ्तारी देंगी। इसके बाद शासन के हाथ पांव फूल गये और पहले से बंद सभी व्यापारियों को जेल से रिहा कर दिया गया। इस आंदोलन ने उन्हें प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया। ये वह दौर था जब व्यापारियों को जमाखोर और मुनाफाखोर जैसे विशेषणों से नवाजा जाता था। लेकिन पंडित जी की अगु़वाई लंबा संघर्ष चला तो दौर बदला। जिले-जिले दौरा कर व्यापारियों को जोड़ा गया।
इससे पहले डीएवी कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद श्याम बिहारी मिश्र ने कोपरगंज में चाचा नेहरू अस्पताल के सामने परिवारिक गल्ले की आढ़त की दुकान पर बैठना शुरू किया था। तभी उन्हें बिक्री कर विभाग के सर्वे का व्यापारियों के बीच फैला खौफ समझ में आ गया था। व्यापारियों के इस उत्पीड़न के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई तो वहीं से उनकी व्यापारी नेता की पहचान बन गई। उन्होंने देखा कि बिक्री कर के सर्वे और छापों के डर से व्यापारी दुकानें बंद करके चले जाते थे। जिस दिन बिक्री कर की टीम उनकी दुकान पर गई तो उन्होंने इसका विरोध कर दिया। यह अप्रत्याशित विरोध था और इसकी उम्मीद बिक्रीकर विभाग की टीम को नहीं थी, इसलिए उस टीम को वापस लौटना पड़ा। यहीं से वह कानपुर के गल्ला व्यापारियों के नेता बन गए थे।
इसके बाद वाराणसी में उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल की नींव रखी गई। उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल की स्थापना 23, दिसंबर 1973 को वाराणसी में हुई थी। इसके पहले अध्यक्ष के रूप में कानपुर के ही गणेशगंज के लाला विशंभर दयाल अग्रवाल, महामंत्री वाराणसी के जगदीश अरोड़ा और वाराणसी के ही नरेंद्र अग्रवाल ने बतौर कोषाध्यक्ष संगठन में कार्यभार संभाला। कानपुर में बिक्री कर के विरुद्ध किए आंदोलन ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दी थी। हर तीन साल के बाद चुनाव होते रहे और सन 1984 में श्याम बिहारी मिश्र ने बतौर इस संगठन के अध्यक्ष का पदभार संभाला और इसके पश्चात वह आजीवन इस संगठन के अध्यक्ष बने रहे।
इसके साथ ही श्याम बिहारी मिश्र ने देशभर के व्यापारियों को एकजुट करने के लिए अपने कदम उत्तर प्रदेश से बाहर निकालने शुरू कर दिये थे। और आगे चलकर वह भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष बने और विभिन्न आंदोलनों में देशभर के व्यापारियों का नेतृत्व किया। इसी दौरान वह 1991 में पहली बार कानपुर की बिल्हौर सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा सदस्य चुने गये। वह चार बार सांसद रहे और एक समय ऐसा भी आया जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बीजेपी सांसद रहते हुए वैट प्रणाली के कई पेचीदा प्रावधानों पर जमकर विरोध जताया और अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ ही तीन दिन तक धरना दिया था।
श्याम बिहारी मिश्र चाहते थे कि व्यापारियों पर लगने वाला मंडल शुल्क सभी जगह खत्म कर दिया जाये। वह चाहते थे कि जब व्यापारी व्यापार करता है तो उसे कई तरह के लाइसेंस लेने होते हैं। इन लाइसेंस का हर साल नवीनीकरण नहीं कराया जाना चाहिए, बल्कि यह आजीवन के लिए जारी किये जाने चाहिए। क्योंकि नवीनीकरण, सैंपलिंग और इसी तरह के दूसरे प्रावधानों के चलते व्यापारियों का शोषण किया जाता है। वह यह भी चाहते थे कि व्यापारी आयोग बनाया जाये और एक उम्र के पश्चात व्यापारी को पेंशन की व्यवस्था की जाए। लेकिन वह तो अपना सफर पूरा करके चले गये हैं, अब देखना यह है कि उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए कौन व्यापारी नेता सामने आता है।
मनोहर लाल कुमारः बादशाहपुर से आया था व्यापारियों का ‘बादशाह’
दिवंगत मनोहर लाल कुमार का नाम दिल्ली के शीर्ष व्यापारी नेताओं में शुमार रहा है। एक दिन ऐसा भी था जब दिल्ली और सदर बाजार में उनका एकक्षत्र राज चलता था। उनकी एक आवाज पर दिल्ली के बाजारों के शटर डाउन हो जाते थे। बिक्री-कर आंदोलन हो, आयकर विरोधी आंदोलन हो, किराया कानून विरोधी आंदोलन हो चाहे वैट विरोधी आंदोलन हो। दिल्ली के प्रमुख व्यापारी आंदोलनों को उनके नाम के बिना पूरा नहीं कहा जा सकता। उम्र के आखिरी पड़ाव में लोग उन्हें बाऊजी के नाम से जानते थे। सदर बाजार के बाराटूटी चौक पर उनकी कार्यस्थली कुमार हाउस के नाम से जानी जाती है। वह केवल एक व्यापारी नेता ही नहीं बल्कि धार्मिक-सामाजिक नेता भी थे। यही कारण है कि वह आजीवन अनेकों व्यापारिक, धार्मिक और सामाजिक संगठनों के साथ जुड़े रहे।
मनोहर लाल कुमार श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के चेयरमैन, भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय चेयरमैन, फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेड्स एसोसिएशन के चेयरमैन, सनातन धर्म पब्लिक स्कूल, सनातन धर्म सेकंडरी स्कूल (गुजरात), सनातन धर्म हरि मंदिर स्कूल भी उन्ही के सानिध्य में चल रहे थे।
व्यापारियों के इस ‘बादशाह’ के जीवन का सफर पाकिस्तान के तत्कालीन अविभाजित पंजाब प्रांत के गुजरात जिला के तहत हरिया ताल्लुका स्थित बादशहपुर गांव से हुआ था। बंटवारे के समय उनका परिवार दिल्ली आ गया था। यहां आकर उनके परिवार ने अपने कारोबार को जमाने के साथ ही समाज सेवा के कामों में बढ़चढ़कर योगदान दिया। दूसरी ओर सदर बाजार इलाके में अपना कारोबार जमा लिया। संघ से जुड़े होने की चलते जनसंघ और जनता पार्टी व बाद में भारतीय जनता पार्टी में विभिन्न पदों पर रहकर काम करते रहे। इसी दौरान 1967 और इसके बाद वह जनता पार्टी के निगम पार्षद चुने गए और सदर-पहाड़गंज जोन के चेयरमैन रहे। इसी दौरान उनके भाई डॉक्टर अमरनाथ कुमार 1972 से 1977 और 1977 से 1980 तक दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के साथ मेट्रोपोलिटिन काउंसिल रहे।
इसके बाद दिल्ली के व्यापारी समाज की परिस्थितियां लगातार बदलती चली गईं। उत्तर भारत में दिल्ली तेजी से थोक-वितरण केंद्र के रूप में उभर रहा था। चांदनी चौक के थोक बाजार एशिया की सबसे बड़ी मंडियों के रूप में उभर रहे थे। लेकिन तभी बिक्री कर के प्रणाली की लालफीताशाही वाली व्यवस्थाओं ने व्यापारियों को परेशान करके रख दिया। बिक्री कर विभाग के अधिकारी जब चाहे तब बाजारों में छापेमारी के नाम पर आने लगे थे। व्यापारियों के ऊपर तरह तरह की बंदिशें लगाई जा रही थीं। क्योंकि दिल्ली में कोई चुनी हुई सरकार (विधानसभा) नहीं थी, इसलिए व्यापारियों का दर्द समझने वाला कोई नहीं था। इस दौरान भीखूराम जैन, मदन लाल खुराना, ताराचंद खंडेलवान, मनोहर लाल कुमार और वासदेव कप्तान ने व्यापारियों की समस्याओं को उठाना शुरू कर दिया। इनमें से भीखूराम जैन (जो कि भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के पहले अध्यक्ष रहे) कांग्रेस के साथ जुड़े हुए थे और 1980 से 1984 तक चांदनी चौक से कांग्रेस के सांसद रहे। बाकी अन्य लोग भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़े हुए थे।
मनोहर लाल कुमार उसी समय दिल्ली व्यापार महासंघ की स्थापना की। इसमें उन्होंने वासदेव कप्तान (जो कि 1983 से 1990 तक मेट्रोपोलिटिन काउंसिल के सदस्य रहे) सहित कई व्यापारी नेताओं को अपने साथ जोड़ा। इसके साथ ही बिक्री कर प्रणाली के विरोध (खास तौर पर फर्स्ट प्वाइंट की मांग) ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया। दिल्ली के व्यापारियों ने मनोहर लाल कुमार के नेतृत्व में कई आंदोलन किये, और कुछ हद तक अपनी बात सरकार के कानों तक पहुंचाने में सफलता भी प्राप्त की। इसी दौरान 1991 में चांदनी चौक लाकसभा सीट से चुनाव जीतकर ताराचंद खंडेलवाल सांसद बन गये। खंडेलवाल के संसद पहुंचने के बाद व्यापारियों को कुछ संबल मिला।
इसी दौरान 1992 में दिल्ली विधानसभा का गठन हो गया और 1993 में विधानसभा के चुनाव कराये गए। 1993 के विधानसभा चुनाव में मदन लाल खुराना को भारतीय जनता पार्टी ने मोती नगर सीट से उतारा। जबकि मनोहर लाल कुमार को राजौरी गार्डन और वासदेव कप्तान को चांदनी चौ से टिकट मिला। इस चुनाव में मदन लाल खुराना और वासदेव कप्तान तो चुनाव जीत गये लेकिन मनोहर लाल कुमार हार गये। बताया जाता है कि इस सीट पर उन्हें हराने के लिए पार्टी के अंदर से ही कुछ नेताओं ने भीतरघात किया था, बाद में वही भीतरघातिये नगर निगम के बड़े पदों तक पहुंचे।
विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद मनोहर लाल कुमार का व्यापारियों के प्रति लगाव और उनकी समस्याओं के प्रति समर्पण जारी रहा। आगे चलकर 1993 और 1994 में दिल्ली के व्यापारियों ने बिक्री-कर के विरोध में बड़े आंदोलन किये, जिनमें उनका सहयोग जारी रहा। 1995 में किराया कानून के विरोध में दिल्ली के ज्यादातर थोक बाजार कई दिनो तक बंद रहे। सदर बाजार से लेकर चांदनी चौक और कश्मीरीगेट से लेकर चावड़ी बाजार तक सन्नाटा पसरा रहता था। कभी हौज काजी चौक तो कभी चांदनी चौक में व्यापारियों के आंदोलन के मंच सजते रहे। कश्मीरी गेट से लेकर बाराटूटी चौक पर व्यापारियों की पदयात्राएं निकलती रहीं और एक दिन ऐसा भी आया कि व्यापारियों को अपने आंदोलन में सफलता प्राप्त हुई।
आगे चलकर आयकर प्रणाली और वैट आंदोलन ने अलग अलग वर्षों में जोर पकड़ा तो इनमें भी मनोहर लाल कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हालांकि आगे चलकर उनकी शारीरिक सक्रियता भले ही आंदोलनों में कम होती चली गई, लेकिन उन्होंने हमेशा हर आंदोलन में आगे बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और व्यापारियों के मनोबल को हमेशा बरकरार रखा। आगे के वर्षों में मनोहर लाल कुमार के साथ भी उनके कुछ साथियों ने भीतरघात किया और जिस व्यापारी संगठन का उन्होंने गठन किया था, उसका रजिस्ट्रेशन अपने नाम से करा लिया। इसके साथ ही मनोहर लाल कुमार भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के साथ जुड़ गये और आजीवन व्यापारियों की सेवा करते रहे।
ऐसी शख्सियतों के लिए ही कहा गया है कि-
‘‘सितारों से आगे जहां और भी हैं… अभी इश्क के इतेहां और भी हैं।’’
ओउ्म शांतिः शांतिः शांतिः
-हीरेन्द्र सिंह राठौड़