पौष पूर्णिमा पर बन रहा सर्वार्थ सिद्धि योग… इस मुहूर्त में ऐसे करें श्री हरि व मां लक्ष्मी की पूजा

-17 जनवरी को पड़ रही पौष पूर्णिमा
-5 बजकर 10 मिनट पर होगा चंद्रोदय

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
सनातन संस्कृति में पौष पूर्णिमा का विशेष महत्व है और यह महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब यह पर्व सोमवार को पड़ रहा हो। इस वर्ष पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा सोमवार 17 जनवरी को पड़ रही है। इस दिन पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान-दान करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। काशी के दसाश्वमेध घाट या फिर प्रयागराज के संगम तट पर गंगा स्थान तो और ज्यादा शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत रख कर श्री विष्णु के सत्यनारायण स्वरुप की पूजा-अर्चना कर कथा का पाठ करने से मनचाही इच्छाओं की पूर्ति होती है।

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माना जाता है कि इस दिन पूजा, जप, तप और दान करने से चंद्र देव, भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। पूर्णिमा और अमावस्या को पूजा और दान करने से व्यक्ति के समस्त पाप कट जाते हैं। पौष पूर्णिमा 17 जनवरी, 2022 दिन सोमवार को है। पूर्णिमा तिथि 17 जनवरी को सुबह 3 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर 18 जनवरी को सुबह 5 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। खास बात यह है कि पौष पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है।
मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन वासुदेव की प्रतिमा को घी से नहलाने और अपने शरीर पर सरसों का तेल या सुगंध युक्त जल से स्नान करने से व्रती को अत्यंत सुखों की प्राप्ति होती है। पौष शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को इस वर्ष सोमवार का दिन है। पूर्णिमा तिथि 17 जनवरी को पूरा दिन पार कर 18 जनवरी सुबह 5 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 5 बजकर 10 मिनट पर है।
पौष पूर्णिमा के व्रत की विधि
पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान की पूजा करें। इन्द्र देव और महालक्ष्मी जी की पूजा करते हुए घी का दीपक जलाएं। मां लक्ष्मी की पूजा में गंध-पुष्प का इस्तेमाल जरूर करें इसके साथ ही श्री हरि की प्रतिमा की पूजा करें और आरती करें। ब्राह्मणों को खीर का भोजन करवाएं और उन्हें दान दक्षिणा देकर विदा करें। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रूप से महिलाएं रखती हैं। इस दिन पूरी रात जागकर जो भगवान का ध्यान करते हैं उन्हें धन-संपत्ति प्राप्ति होती है। रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही खाना खाएं।

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यह मान्यता भी है कि पौष पूर्णिमा के दिन जो लोग वासुदेव की प्रतिमा को घी से नहलाता है और अपने शरीर पर सरसों का तेल या सुगंधित वस्तुओं से युक्त जल से स्नान करता है, साथ ही विष्णु, इन्द्र और बृहस्पति के मंत्रों के साथ प्रतिमा का पूजन करता है, वह अत्यंत सुखों को प्राप्त करता है। ऐसे लोगों को जीवन में हर तरह के लाभों की प्राप्ति होती है।
पौष पूर्णिमा के व्रत का महत्व
पौष माह की पूर्णिमा को मोक्ष की कामना रखने वालों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। क्योंकि पौष पूर्मिमा के साथ ही माघ महीने की शुरुआत होती है। माघ महीने में किए जाने वाले स्नान की शुरुआत भी पौष पूर्णिमा से ही हो जाती है। शास्त्रों में इसको लेकर मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक प्रातःकाल स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह जन्म-मृत्यु के क्रम से कोसों दूर चला जाता है यानी उसे मुक्ति मिल जाती है। इस दिन से कोई भी काम करना शुभ माना जाता है।

(यह आलेख भारतीय सनातन परंपरा एवं ज्योतिषीय सिद्धांतों पर आधारित है और जनरूचि को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसके लिए कोई विशेष दावा नहीं है। अपने समाचार, लेख एवं विज्ञापन छपवाने हेतु संपर्क करेंः- ईमेलः newsa2z786@gmail.com मोबाइलः 9810103181)