नदियों के संरक्षण के लिए उठी कानून बनाने की मांग

-जनमानस के साथ-साथ सरकार को भी उठाना होगा कदम: गोविंदाचार्य
-नदियों को कानूनी अधिकार मिलना चाहिए: गोविंदाचार्य

हेमा शर्मा/ नई दिल्ली,
“नदियां हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिस तरह एक माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है उसी प्रकार जल इस सृष्टि का पालन-पोषण करता है,और जल का श्रोत नादियां है। आज हमारे देश में नदियों की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है की नदियों का जल पीना तो दूर उसमें हाथ डालने में भी मन सकुचाता है।” यह कहना है केएन गोविंदाचार्य (K N Govindacharya) का। जिन्होंने नदियों की इस दयनीय स्थिति को बदलने की दिशा में बहुत

महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविंदाचर्य ने अपनी गंगा, यमुना, नर्मदा नदियों की यात्रा के बाद उनकी दशा और दिशा पर दुःख ज़ाहिर किया। उन्होंने कहा की प्रकृति हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। आज हमारे देश की नदियां बीमार हो गई हैं, उनके इलाज की सख्त जरूरत है। इसलिए समय रहते नदियों के संरक्षण के लिए कानून बनाने की आवश्यकता आन पड़ी है।

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उनके इस अभियान में कई लोग जुड़े और अपना हर सम्भव योगदान दिया। उनके इस अभियान से जुड़े निलय उपाध्याय ने कहा कि नदी हमारी माँ के समान है ओर आज उस पर गाद जम गई है, लेकिन हम गोविंदाचर्य जी के साथ मिलकर इस गाद को हटाने के लिए प्रयासरत है।
राष्ट्रीय संयोजक पवन श्रीवास्तव ने अपने विचार रखते हुए कहा कि जिस प्रकार हाथ की तीन नाड़ियों को देखकर वैद्य बीमारी का पता लगा लेता है, उसी प्रकार हमारे देश के इन तीनों नदियों की (गंगा, यमुना, नर्मदा) हालत को देखकर देश की स्थिति का पता लगता है।

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नदियों की बिगड़ती हालत को सुधारने की लिए सभा में मोजूद लोगों ने कुछ सुझाव भी दिए। नदियों के किनारे पेड़ लगाए जाए, पेड़ों के कटाव पर रोक लगे, खेतों में अमोनिया की जगह गोबर खाद का इस्तेमाल किया जाए, ताकि खेती में कम पानी लगे। बालू के अवेध खनन पर रोक लगे, नदियों में नालों का पानी जाने से रोक जाए। गोविंदाचर्य ने कहा कि नदियों की स्थती को सुधारने के लिए कानूनी अधिकार मिले और इनको निर्मल बनाने के लिए जनमानस के साथ साथ सरकार को भी साथ देना होगा तभी कुछ सुधार पाएगा।