मनमानी ट्रांसफर-पोस्टिंग से बढ़ी पार्षदों में नाराजगी

-उत्तरी दिल्ली नगर निगम में जोरों पर अफसरों की मनमानी
-धड़ाघड़ बदले डीएचओ से लेकर हाउस टैक्स कर्मी

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
उत्तरी दिल्ली नगर निगम में अफसरों के द्वारा मनमाने ट्रांसफर-पोस्टिंग के चलते निगम पार्षदों में लगातार नाराजगी बढ़ती जा रही है। डेढ़ साल के बाद नगर निगम के चुनाव होने हैं। ऐसे में निगम पार्षदों की बेचैनी और ज्यादा बढ़ गई है। कई पार्षदों ने उत्तरी दिल्ली का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे दक्षिणी दिल्ली निगम के आयुक्त ज्ञानेश भारती पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

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केशव पुरम जोन की पूर्व चेयरमैन अंजू जैन ने कहा कि आयुक्त का काम देख रहे ज्ञानेश भारती का ध्यान काम पर नहीं बल्कि कर्मचारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर ज्यादा है। दो दिन पहले हमारे यहां के हाउस टैक्स के कर्मचारियों को बदल दिया गया। इससे पहले पुराने डीएचओ को बदलकर नया डीएचओ लगा दिया था।

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अंजू जैन ने कहा कि नये डीएचओ ने जो इंस्पेक्टर अलग अलग वार्ड में लगाए हैं, वह न तो इलाकों में जा रहे हैं और नाही कोई काम कर रहे हैं। सैनेटाइजेशन का कोई काम नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह से आम लोगों को परेशानी होती है। केशव पुरम जोन के एक और बीजेपी पार्षद ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि एमएचओ अशोक रावत ने अपनी पसंद से डीएचओ राजेश कुमार को केशव पुरम जोन में लगाया है।

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उन्होंने कहा कि यह लोग अफसरों के चहेते होने की वजह से इलाकों में काम पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। मलेरिया विभाग या जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा सैनेटाइजेशन का काई काम नहीं किया जा रहा। एक भी इंस्पेक्टर कभी इलाके में दिखाई नहीं देता। दूसरी ओर कांग्रेस के एक पार्षद ने कहा कि पार्षदों को विकास फंड मिले तो जमाना बीत गया। अब सैनेटाइजेशन का काम भी नहीं हो पा रहा तो निगम की छवि किस तरह सुधरेगी?

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उन्होंने कहा कि निगम आयुक्त का काम देख रहे ज्ञानेश भारती को कुछ पता ही नहीं है। जोन के उपायुक्त को मनमानी से ही फुरसत नहीं है। ऐसे में लोगों के काम कराने के लिए कहां जाएं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकेश गोयल का कहना है कि नगर निगम बिलकुल ठप होकर रह गया है। कोई अधिकारी काम करने को तैयार नहीं है। न सैनेटाइजेशन ढंग से हो पा रहा है और न सफाई का काम हो पा रहा है।
प्रदेश बीजेपी के एक नेता का कहना है कि नगर निगम की यही हालत रही तो चुनाव जीत पाना मुश्किल है। कर्मचारियों की सेलरी दिये चार महीने हो चुके हैं, आने वाले दिनों में भी सेलरी कब मिल पाएगी? कह पाना मुश्किल है। जब पार्षद अपने इलाकों में काम ही नहीं करा पाएंगे तो फिर उनसे चुनाव में जीत की उम्मीद रखना गलत है।