-पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को बताया था कैसे शुरू हुए श्राद्ध कर्म
आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
इस वर्ष सोमवार, 20 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है। 6 अक्टूबर तक चलने वाले पितृ पक्ष में पितरों के शुभ कर्म करने से परिवार के गोलोकवासी हुए सदस्यों की आत्मा को शांति मिलती है। गरुड़ पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने गरुड़ देव को पितृ पक्ष का महत्व समझाया था। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद का वर्णन है। इसके मुताबिक भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई थी?
भीष्म पितामह ने बताया था कि प्राचीन समय में सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था। इसके बाद निमि ऋषि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म करना शुरू कर दिया था। इसके बाद श्राद्ध कर्म करने की परंपरा प्रचलित हो गई। पितृ पक्ष में पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाता है। जलते हुए कंडे पर गुड़, घी, भोजन अर्पित करते हैं। ऐसा करने से पितरों के साथ ही अग्निदेव भी अन्न ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि अग्निदेव के साथ भोजन करने पर पितर देवता भी जल्दी तृप्त हो जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में धूप-ध्यान करते समय जलते हुए कंडे पर ही पितरों के लिए भोजन अर्पित किया जाता है।
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हालांकि स्थानीय परंपराओं के अनुसार अलग अलग स्थानों पर तोरी या घीया के बड़े-बड़े पत्तों पर कौओं के जरिये पितरों को भोजन अर्पित किया जाता है। पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत पूर्वजों को श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। इसी को श्राद्ध कहा जाता है। पिंडदान करने का मतलब है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं। तर्पण करने का अर्थ यह है कि हम जल का दान कर रहे हैं। इस तरह पितृ पक्ष में इन तीनों कामों का महत्व है।
इस तरह करें श्राद्ध
पितृ पक्ष में किसी गौशाला में गायों के लिए हरी घास और उनकी देखभाल के लिए धन का दान करना चाहिए। किसी तालाब में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। घर के आसपास कुत्तों को भी रोटी खिलानी चाहिए। इनके साथ ही कौओं के लिए भी घर की छत पर भोजन रखना चाहिए। जरूरतमंद लोगों को भोजन खिलाना चाहिए। किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करनी चाहिए। इन दिनों भागवत गीता का पाठ करना चाहिए।
इस बार 17 दिन के होंगे श्राद्ध
आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष आरंभ होगा। पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से कुल 17 दिनों का होगा। इस साल पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक रहेंगे। मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
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इस बार पितृ पक्ष इस बार 17 दिन का होगा। द्वितीया तिथि वृद्धि के कारण 17 दिन श्राद्ध होंगे। इस दौरान शुभ व मांगलिक कार्यों पर रोक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार 17 दिन श्राद्ध तिथि में एक अतिरिक्त वृद्धि होना शुभ नहीं है। पितृ पक्ष में प्रतिदिन स्नानोपरांत दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों के प्रति जल का अर्घ्य देना चाहिए और पितरों से जीवन के मंगल की प्रार्थना करनी चाहिए। पौराणिक और शास्त्रोक्त वर्णन के अनुसार, पितृलोक में जल की कमी है, जिस कारण पितृ तर्पण में जल अर्पित करने का बड़ा महत्व है। जो भी व्यक्ति पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक पितरों के निमित्त श्राद्ध करता है, उसकी श्रद्धा और आस्था भाव से तृप्त होकर पितृ उसे शुभ आशीर्वाद देकर अपने लोक को चले जाते हैं।
पितृ पूजा के ये नियमों नहीं होनी चाहिए यह भूल
–शास्त्रों के मुताबिक देवताओं की पूजा सुबह के समय की जाती है। पितृगणों की पूजा दोपहर में की जानी चाहिए। पितृगणों को संतुष्ट करने के लिए ब्राह्मणों को जो भोजन करवाना चाहिए वह दिन के समय होना चाहिए। इसके साथ ही पितृगणों को दान किया गया भोजन गाय, कौआ, कुत्ते को भी जरूर खिलाना चाहिए।
–पितरों के लिए बनाए जाने वाले भोजन को लोहे की कड़ाही में नहीं बनाना चाहिए। पितृ पक्ष में लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल शुभ नहीं माना जाता है। इस दौरान पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए।
–पितृ पक्ष में हो सके तो दाढ़ी और बाल नहीं कटवाने चाहिए। इस दौरान सात्विक जीवन जीना चाहिए और तेल लेपन नहीं करना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान इत्र और सौंदर्य वर्धक साधनों का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।
–इस वक्त कोई भी ऐसा शुभ कार्य करना सही नहीं माना जाता है, जो पितृगणों को याद करने की क्रिया में किसी प्रकार की बाधा डालते हैं।