जानें बद्रीनाथ धाम की पूरी कहानी… कैसे शिवभूमि बनी बद्रीविशाल का धाम?

-माता लक्ष्मी ने दिया था श्री हरि विष्णु को ‘बद्रीनाथ’ का नाम

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) अलकनंदा नदी Alaknanda River) के बाएं तट पर नर (Nar) और नारायण (Narayan) नाम की दो पर्वत श्रंखलाओं के बीच में स्थित है। मंदिर में भगवारन विष्णु (Lord Vishnu) के बद्री नारायण रूप की पूजा होती है। यहां स्थापित उनकी मूर्ति शालिग्राम (Shaligram) से बनी हुई है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसे आदि शंकराचार्य (Adi Shankracharya) ने 8वीं शताब्दी में पास में ही स्थित नारद कुंड (Narad Kund) से निकाल कर स्थापित किया था। इस मूर्ति को श्री हरि की स्वतः पकट हुई 8 प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। इस धाम को भगवान विष्णु ने भोलेनाथ (Lord Shiva) से मांग लिया था। हालांकि धर्म ग्रंथों में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन यह भी सच है कि श्री हरि विष्णु और भगवान भोलेनाथ को दूसरे को अपना आराध्य देव मानते हैं। बद्रीनाथ धाम के बारे में सबसे ज्यादा यह प्रचलित है कि शिव की भूमि आगे चलकर बद्रीनाथ धाम के रूप में जानी गई।
बद्रीनाथ धाम में पहले भगवान भोलेनाथ का निवास स्थान था। शिव यहां अपने परिवार के साथ निवास करते थे। लेकिन एक दिन भगवान विष्णु जब यान करने के लिए स्थान की खोज कर रहे थे, तो उन्हें यह स्थान दिखाई दिया। यहां के वातावरण को देखकर वह मोहित हो गए, लेकिन उन्हें पता था कि यह उनके आराध्य देव का निवास स्थान है। ऐसे में उस स्थान पर खुद का निवास बनाना आसान नहीं था। तभी प्रभु के मन में एक लीला करने का विचार आया। भगवान विष्णु ने एक बालक रूप धारण कर लिया और जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में वहां माता पार्वती आ गईं तो उनकी नजर उस रोते हुए बालक पर पड़ी। ऐसे में माता उस बालक को चुप कराने लगीं लेकिन वह बालक चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
उसके बाद माता उसे लेकर जेसे ही कुटिया में अंदर प्रवेश करने लगीं तो भोलेनाथ समझ गए कि वह बालक नहीं बल्कि श्री हरि हैं। उन्होंनें माता पार्वती को कहा कि उस बालक को वहीं छोड़ दें, वह खुद ही अंदर आ जाएगा। लेकिन माता नहीं मानीं और उसे सुलाने के लिए भीतर लेकर चली गईं। जब बालक सो गया तो माता पार्वती भी बाहर आ गईं। ऐसे में भगवान विष्णु ने एक और लीला रचा डाली और उन्होंने भीतर से दरवाजे को बंद कर लिया। जब भोलेनाथ बाहर से लौटकर आए तो विष्णु ने उनसे कहा कि यह स्थान मुझे बहुत पसंद है, अतः आप यहां से केदारनाथ जाकर निवास करें और मैं इसी स्थान पर अपने भक्तों को दर्शन दूंगा। इस वजह से शिव की भूमि आगे चलकर भगवान विष्णु का बद्रीनाथ धाम कहलाई और भोलेनाथ केदारनाथ में वास करने लगे।
यह भी मान्यता है कि एक बार देवी लक्ष्मी भगवान श्री हरि से रूठकर अपने मायके चली गईं। इसके बाद उन्हें मनाने के लिए भगवान विष्णु ने तप करना शुरू कर दिया। इसके बाद देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई और वह भगवान को ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुंच गईं, जहां वह तप कर रहे थे। देवी लक्ष्मी ने देखा कि श्री विष्णु तो बेर के पेड़ पर बैठकर तपस्या कर रहे हैं। इसके बाद माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को ‘बद्रीनाथ’ का नाम दिया। इसके बाद से विष्णुधाम का नाम बद्रीनाथ धाम पड़ गया और आज भक्त इसे बद्रीनाथ धाम के नाम से जानते हैं।