कश्मीरीगेट आईएसबीटी पर अवैध पार्किंग का खेल

-प्रवेश द्वार पर पार्क हो रहीं अधिकारियों के साथ दूसरे लोगांं की गाड़ियां
-न कोई सुरक्षा जांच और नाहीं कोरोना से बचाव के मद्देनजर हुई व्यवस्था

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली के हर इलाके में अवैध पार्किंग का खेल जारी है। खास बात है कि कुछ सरकारी अधिकारी भी अवैध पार्किंग के खेल में शामिल हैं। मामला कश्मीरीगेट स्थित आईएसबीटी (बस अड्डा) का है। यहां यात्रियों के आने-जाने के लिए बनाए गए प्रवेश द्वार के आगे और आस-पास जमकर अवैध पार्किंग की जा रही हैं। इसकी वजह से यहां आने-जाने वाले लोगों को तो परेशानी होती ही है, वहीं अधिकारियों की यह लापरवाही सुरक्षा की दृष्टि से भी भारी पड़ सकती है।

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कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद हाल ही में महाराणा प्रताप आईएसबीटी से बसों का परिचालन शुरू हुआ है। हालांकि अभी आंशिक तौर पर ही अंतरराज्यीय बसें चलाई जा रही हैं। लेकिन अभी से यहां प्रवेश द्वार के दोनों ओर की दोनों साइट पर यहां आने-जाने वालों ने अवैध पार्किंग बना ली है। खास बात है कि इसमें 50 फीसदी गाड़ियां सरकारी अधिकारियों की खड़ी होती हैं।

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कश्मीरीगेट आईएसबीटी में प्रवेश करने के लिए बाहरी रिंग रोड से तीस हजारी कोर्ट की ओर जाने वाली सड़क से कश्मीरीगेट फ्लाईओवर के खत्म होने के साथ ही गाड़ियों का प्रवेश किया जाता है। बस अड्डा पर सवारियों को उतारने के बाद गाड़ियां आगे की ओर मेट्रो स्टेशन के नीचे की ओर निकल जाती हैं। यदि कोई व्यक्ति यहां अपनी गाड़ी पार्क करना चाहता है तो यहां बस अड्डा के मुख्य द्वार के आगे ही अधिकृत पार्किंग में गाड़ी लगाई जा सकती है।

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नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि बस अड्डा की बिल्डिंग में कई सरकारी कार्यालय हैं। इन कार्यालयों में सैकड़ों की संख्या में अधिकारी बैठते हैं। कोई भी अधिकारी अपनी सरकारी गाड़ी को भी पार्किंग में नहीं लगाना चाहता। जबकि यहां काम करने वाले बहुत से कर्मचारी भी अपनी निजी गाड़ियां लेकर आते हैं और बस अड्डा के मुख्य द्वार पर ही अपनी गाड़ियों को सड़क पर ही खड़ी कर देते हैं। इसकी वजह से यहां ट्रैफिक की समस्या भी बनी रहती है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां प्राईवेट टैक्सी भी बड़ी संख्या में हर समय खड़ी देखी जा सकती हैं। जबकि यहां अधिकृत तौर पर कोई टैक्सी स्टेंड नहीं है। माना जा रहा है कि कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से यहां अवैध पार्किंग कराई जा रही है। अब देखना यह है कि इस अव्यवस्था की ओर सरकारी अधिकारियों का ध्यान कब तक जाता है।