-23 व 24 जुलाई को मनाया जा रहा गुरू पूर्णिमा पर्व
‘‘गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांय, बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताय’’ कबीर दास जी के इस दोहे अर्थ गूढ़ भी है और बहुत साधारण भी है। इसका मतलब है कि जब गुरू और गोविंद यानी कि भगवान दोनों एक साथ खड़े हैं तो किसके पैर पहले छूने चाहिये? क्योंकि गोविंद ही भगवान हैं, यह ज्ञान गुरू ने ही दिया है, यानी कि सद्मार्ग पर चलना गुरू ने सिखाया है, अतः गुरू आपका चरण वंदन है। यानी पहले गुरू की चरण वंदना है और फिर भगवान को प्रणाम है। क्योंकि स्वयं भगवान ने भी पृथ्वी पर आकर गुरू की चरण वंदना की है और उनकी सेवा की है।
भारत में गुरु पूर्णिमा के पर्व को बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यूं तो सनातन धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा का विशेष महत्व है, लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेद व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। इसलिए उन्हें प्रथम गुरु की उपाधि दी जाती है।
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा शुक्रवार 23 जुलाई व शनिवार 24 जुलाई 2021 को पड़ रही है। हालांकि ज्यादातर लोग शनिवार 24 जुलाई को मनायेंगे। पुरातन भारतीय सभ्यता और सनातन संस्कृति में मनुष्य के जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। भगवान की प्राप्ति का मार्ग गुरु के बताए मार्ग से ही संभव होता है। क्योंकि एक गुरु ही है, जो अपने शिष्य को गलत मार्ग पर जाने से रोकता है और सही मार्ग पर जाने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि गुरुओं के सम्मान में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
‘‘गुरू बिन ज्ञान न ऊपजै, गुरू बिन मिलै न मोष… गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष’’, इसका मतलब है कि गुरू के बिना ज्ञान नहीं मिल सकता, गुरू के बिना मोक्ष भी नहीं मिल सकता, गुरू के बिना सत्य नहीं दिखाई देता और गुरू के बिना दोष भी दूर नहीं हो सकते। वर्तमान परिपेक्ष्य में बात करें तो इसका सीधा सा मतलब है कि जो व्यक्ति अपने शिष्य से धन की लालसा रखता हो, काम के प्रति आशक्त हो, राग-दोष का आशक्त हो, वह व्यक्ति किसी का गुरू नहीं हो सकता। क्योंकि गुरू तो खुद भी इनसे दूर रहता है और अपने शिष्य को भी इनसे दूर रहने की प्रेरणा देता है।
ऐसे करें पूजन
प्रातःकाल घर की सफाई करके स्नानादि से निपटकर पूजा का संकल्प लें। किसी साफ सुथरे स्थान या फिर घर के मंदिर में सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें चंदन, रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्यास जी, शुक्रदेव जी, शंकराचार्य जी आदि गुरुओं को याद करके उनका आवाहन करना चाहिए। इसके बाद ’गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ें।
इस दौरान व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए। इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए क्योंकि गुरु का आशीर्वाद ही विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है। इस दिन केवल गुरु (शिक्षक ही नहीं), अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है। यह पर्व श्रद्धा से मनाया जाता है, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं।
शुभ मुहूर्तः
गुरू पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 23 जुलाई 2021 को सुबह 10 बजकर 43 मिनट से आरंभ होगी, और 24 जुलाई शनिवार की सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। लेकिन यह पर्व शनिवार को ही मनाया जायेगा।
गुरू पूर्णिमा का महत्व
वह व्यक्ति वेद व्यास जी ही थे जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की थी। इसके अलावा उन्हें श्रीमद्भागवत, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा के अलावा 18 पुराणों का भी रचियता माना जाता है। उन्हें आदि गुरु के नाम से भी संबोधित किया जाता है। चूंकि शास्त्रों में गुरु के पद को भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का विशेष पूजन करने का विधान है।