-भगवान कृष्ण के साथ है पूजा का संबंध
आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
हिंदू धर्म संस्कृति एवं सनातन परंपरा में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। यह दिन गिरिराज गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित होता है। इस बार गोवर्धन पूजा शुक्रवार 5 नवंबर 2021 को की जाएगी। इसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है।
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इस दिन नई फसल के अनाज और सब्जियों को मिलाकर अन्न कूट का भोग बनाकर भगवान श्री कृष्ण को अर्पित किया जाता है। घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत व गाय, बछड़ां आदि की आकृति बनाकर पूजन किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के द्वारा इंद्रदेव का अंहकार दूर करने के रूप में गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इसे प्रकृति की पूजा के रूप में भी देखा जाता है।
गोवर्धन पूजा की कथाः
भगवान कृष्ण के द्वारा इंद्रदेव का अंहकार दूर करने के फलस्रूप गोवर्धन का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के द्वारा सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा आरंभ करवाई गई थी और गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज क्षेत्र के लोगों और पशु-पक्षियों की रक्षा की थी। यही कारण है कि गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ श्री कृष्ण भगवान के पूजन का भी विधान है। इस दिन अन्नकूट का विशेष महत्व माना जाता है। यह एक तरह का पकवान होता है जिसे अन्न और सब्जियों को मिलकर बनाया जाता है और भगवान को भोग लगाया जाता है। गोवर्धन की पूजा करके लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता पकट करते हैं।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त-
गोवर्धन पूजा शुक्रवार 5 नवंबर 2021 यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को की जाती है। यह तिथि 5 नवंबर 2021 को प्रातः तड़के 2 बजकर 44 मिनट से शुरू होगी और प्रतिपदा की तिथि 5 नवंबर 2021 को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी। प्रातःकाल में गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 6 बजकर 35 मिनट से 8 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। यह अवधि कुल 2 घंटे 11 मिनट की है। इसके पश्चात सांय की गोवर्धन पूजा का मुहूर्त 3 बजकर 21 मिनट से 5 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
पूजा विधिः
शुक्रवार को प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानीकि गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनानी चाहिए। इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन भी करना चाहिए। इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाना चाहिए।