1 नवंबर को मनाया जायेगा दीपावली पर्व…!

-धार्मिक, सामाजिक संगठनों ने किया 1 नवंबर को दीपावली पर्व मनाने का ऐलान

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्लीः 21 अक्टूबर, 2024।
इस वर्ष दीपावली पर्व को मनाने के दिन के बारे में दो मत बन रहे हैं। कुछ विद्वान दिवाली मनाने के लिए 31 अक्टूबर के दिन को शुभ मान रहे हैं तो कुछ विद्वानों का मत है कि दिवाली पर्व 1 नवंबर को मनाया जाना चाहिये। भ्रम की स्थिति इसलिए बन रही है, क्योंकि अमावस्या 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दोनों ही दिन पड़ रही है। पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर रौशनी का पर्व दीपावली मनाई जाती है।
विद्वानों के अनुसार 1 नवम्बर 2024 को सूर्यास्त के बाद 24 घटी 40 पल 30 विपल की अमावस्या और प्रदोषकाल का योग है। इस कारण और शास्त्रों के वचन से यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली में 01 नवम्बर 2024 को निःसंदेह दीपावली का निर्णय सही है और सम्पूर्ण भारतवर्ष में दीपावली का महापर्व इस वर्ष 1 नवंबर 2024, शुक्रवार को मनाना शास्त्र सम्मत है एवं इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य दिन दीपावली मनाना शास्त्रानुसार नहीं है। उन्होंने कहा कि दीपावली पूजन के सही समय एवं मुहूर्त के बारे में अगले कुछ दिनों में घोषणा कर दी जायेगी।
इसको लेकर राजधानी दिल्ली के बिरला मंदिर में विभिन्न धार्मिक संगठनों और विद्वानों की सभा का आयोजन किया गया। जिसमें निर्णय लिया गया कि इस वर्ष दीपावली पर्व 1 नवंबर को मनाया जायेगा। बैठक में डॉ अरुण बंसल (अध्यक्ष अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ), आचार्य शुभेश शर्मन (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ) राघवानंद जी महाराज (दिल्ली संत मंडल), आचार्य राम गोपाल शुक्ल (महामंत्री अर्चक संघ), पंडित कौशल किशोर कौशिक (संपादक राजधानी पंचांग), पंडित ऋभुकांत गोस्वामी (अध्यक्ष-संस्कृत स्वाध्याय ओर ज्योतिष विधान साहित्य), आचार्य अनमोल (सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा दिल्ली), यज्ञाचार्य चंद्रमणि मिश्र (राष्ट्रीय विद्वत परिषद), आचार्य डी.पी.शास्त्री (टी वी पैनलिस्ट), पंडित अमित कुमार शर्मा ज्योतिषाचार्य (ह््रीं ज्योतिष संस्थान गाजियाबाद), पंडित गिरधारी लाल (अध्यक्ष पुजारी संघ दिल्ली), आचार्य प्रेम नारायण शर्मा, पंडित कृष्ण कांत कौशिक (सत्य सनातन ब्राह्मण महासभा दिल्ली), आचार्य अंकितानंद गोस्वामी (भगवताचार्य नन्दगांव मथुरा), अवधेश, पंडित योगेश मिश्रा, पंडित सर्वेश दुबे आदि विद्वानों शामिल हुए।
समस्त विद्वानों, ज्योतिषाचार्यों, धर्माचार्यों, पंचांगकर्ताओं द्वारा सम्वत् 2081 (वर्ष 2024) में दीपावली पर्व को लेकर धर्मशास्त्रों पर व्यापक विचार-विमर्श एवं समस्त पंचांग सम्मत तिथियों के सूक्ष्म अध्ययनोपरान्त सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि दीपावली प्रकाशपर्व 1 नवंबर को ही मनाया जाना चाहिए। विद्वानों ने इसके पीछे विभिन्न ग्रंथों में वर्णित तथ्यों को सभी के सामने रखा। विभिन्न ग्रंथों में वर्णन किया गया है किः-
सूर्यास्त के बाद अधिक (घटिका) व्यापिनी अमावस्या हो तो इसे अमावस्या मानने में कोई संदेह नहीं है। इस अमावस्या में प्रातः अभ्यङ्ग, देवपूजन व अपराह्न में पार्वण श्राद्ध करके प्रदोष में दीपदान, आकाशदीप-प्रदर्शन, लक्ष्मीपूजन करके भोजन करना चाहिए। दूसरे दिन या दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति होने पर दूसरे दिन की अमावस्या ग्राह्य है, तथा व्याप्ति के पक्ष में दूसरे दिन तीन प्रहर से अधिक हो और अमावस्या की अपेक्षा तीसरे दिन प्रतिपदा का घटिकामान अधिक हो तो, लक्ष्मीपूजन आदि कार्य दूसरे दिन ही किया जाना चाहिए। इस आधार पर दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति के पक्ष में परा (दूसरे दिन) की अमावस्या ग्राह्य है। साथ ही जिस दिन स्वाती नक्षत्र का योग हो, उस दिन की शुभता विशेष है।
पुष्कर पुराण में वर्णन है कि स्वाती में स्थित सूर्य में यदि स्वाती में गया चन्द्रमा हो तो पंचत्वचा के जल से मनुष्य अभङ्गविधिकर स्नान करे और महालक्ष्मी का नीराजन करे तो लक्ष्मी को प्राप्त करता है। तिथि तत्व में ज्योति का वचन है कि एक दण्ड (घटी) रात्रि के योग में अमावस्या दूसरे दिन हो तब पूर्वदिन को त्यागकर दूसरे दिन सुखरात्रि में करे। पूजन के लिए प्रदोष और अर्धरात्रिव्यापिनी मुख्य है। इस की व्याप्ति में परा ही है। प्रदोष के मुख्यत्व होने से आधी रात में अनुष्ठान का अभाव है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण का मत है कि हे मुनिश्रेष्ठ, व्रतों में उत्तम सावित्री व्रत को छोड़कर चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या तथा पूर्णिमा का कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। घर्मसिन्धुदृ प्रदोष समय दीपदान लक्ष्मीपूजन आदि के हैं। उसमें सूर्योदय के अनन्तर घटीका तक (भी) अधिक रात्रि तक अमावस्या हो तो (परा लेने में) कुछ संदेह नहीं है। मार्तण्ड पञ्चाङ्ग प्रियव्रत शर्मा दीपावली को भले ही अमावस्या सूर्यास्त के बाद एक ही मिनट तक व्याप्त हो, शास्त्रानुसार उसे पूरे प्रदोषकाल में (सूर्यास्त के अनन्तर तीन मुहूर्त तक) व्याप्त माना जाता है, अतः इस स्थिति में भी पूरा प्रदोषकाल लक्ष्मीपूजन के लिए विहित है।