-इसी धरने के जरिये रची गई थी उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों की साजिश
-जेएनयू और एएमयू बने सीएए-एनआरसी विरोधी धरनों में सबसे बड़े मददगार
एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
सीएए व एनआरसी के विरोध में सबसे लंबा चलने वाला धरना शाहीनबाग में जेएनयू छात्र शरजील इमाम ने खड़ा किया था। इसी धरने में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की साजिश रची गई थी। शरजील के अलावा जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद, जामिया व आईआईटी के छात्रों ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई थी। दूसरी तरफ जेएनयू के अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुप की भी साजिश रचने में बड़ी भूमिका थी। यह खुलासा दिल्ली पुलिस द्वारा कोर्ट में दाखिल किये गए आरोप पत्र से हुआ है।
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दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में दाखिल आरोप पत्र में कहा है कि शरजील के बयान को साजिश संबंधी आरोप पत्र में रखा गया है। इसके अनुसार पांच दिसंबर को जेएनयू में अल्पसंख्यक संगठन के बैनर तले 300 से अधिक छात्र मिले थे। छह दिसंबर को ओखला, निजामुद्दीन और पुरानी दिल्ली जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में कैब के जरिए हजारों पर्चे बांटे गये थे। यह पर्चे दिल्ली से बाहर कई कस्बों व शहरों में भी बांटे गये थे।
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शरजील ने सात दिसंबर को जंतर-मंतर पर चक्का जाम की बात की थी। इसके बाद बीएपीएसए के नेताओं जितेन्द्र सूना और निरबाल रे को एएमयू में बुलाकर चक्का जाम करने और सहायता देने के लिए उनसे बात की। 13 दिसंबर को ओखला में तीन स्थानों पर धरना शुरू करने की बात की गई थी। एक स्थल सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। जामिया में विरोध प्रदर्शन तो शुरू हो गया था लेकिन यहां लोग कम थे। इससे कुछ समय के लिए शरजील को निराशा हाथ लगी।
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इसके बाद जामिया में आसिफ मुजताबा और उसके समूह से बात की गई। आसिफ ने सुझाव दिया कि शाहीनबाग में वह रहता है अतः फिर वहां चक्का जाम करने पर सहमति बनी। अगले दिन जुहर की नमाज के बाद लोग शाहीनबाग में जमा होने शुरू हो गए थे। शरजील ने अन्य लोगों के साथ वहां बैरिकेडिंग शुरू कर दी। 13 दिसंबर को ही लोग विधायक अमानतुल्ला के साथ फुटओवर ब्रिज के नीचे धरने पर बैठ गए थे। तब शरजील व कुछ अन्य लोग इसमें शामिल हो गए थे।
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अमानतुल्ला ने 14 दिसंबर को अगले शुक्रवार को अमित शाह के निवास की ओर जाने की घोषणा की थी। लेकिन इस पर शरजील ने अमानतुल्ला खान के हाथ से माइक ले लिया और दोनों के बीच बहस होने लगी। शरजील इस जगह को बड़े धरने में तब्दील करना चाहता था और वहीं पर चक्का जाम करना चाहता था। अतः स्थानीय लोगों ने इस काम में उसकी मदद की।
रात के समय पुलिस ने घटनास्थल को खाली करने को कहा। धरने पर बैठे लोग एक साइड की सड़क को खोलने के लिए तैयार भी थे। लेकिन शरजील इमाम इसके खिलाफ था। तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति तिरंगा लेकर मौके पर आ गया और पत्थर मारो की बात कहने लगा। इसके बाद पथराव शुरू हो गया। यहीं से शरजील की साजिश कामयाब हो गई और अगले दिन शाहीनबाग की दोनों सड़कों को ब्लाक कर दिया गया। तब तक एएमयू के लोग भी धरनास्थल पर पहुंच गए थे। इस तरह से शाहीनबाग का यह धरना सबसे बड़ा रहा और सबसे लंबे समय तक खिंचता चला गया।