महाकाल लोक का लोकार्पणः मुस्लिम शासकों की वजह से लेनी पड़ी थी 500 साल की जलसमाधि… अब 856 करोड़ की लागत से बन रहा कॉरिडोर

-प्रथम चरण में 316 करोड़ की लागत से बनाये 108 स्तंभ, 910 मीटर का कॉरिडोर, 20 हैक्टेयर में बन रहा आलीशान महाकाल लोक

जे.के. शुक्ला/ उज्जैनः 11 अक्टूबर, 2022।
दुनियाभर में मशहूर उज्जैन के महाकाल मंदिर के ‘महाकाल लोक’ का लोकार्पण मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। 12 ज्योतिर्लिंगों में यह अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। पहले 2 हैक्टेयर के मुकाबले अब 20 हैक्टेयर में फैले महाकाल मंदिर परिसर में पहले चरण में 316 करोड़ की लागत से 108 स्तंभ और 910 मीटर के गलियारे का निर्माण किया गया है। महाकाल मंदिर के इतिहास में तब एक नया अध्याय जुड़ गया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को विधिवत पूजा अर्चना के पश्चात नव निर्मित महाकाल लोक का लोकार्पण किया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में की गई थी। इसके बाद से महाकाल मंदिर कई बार टूटा और बना। विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार इस पर हमले किए। मुस्लिम आक्रमणकारियों की वजह से भगवान महाकाल को करीब 500 साल तक जलसमाधि में रहना पड़ा था। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन के संदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आए थे, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। छठी शताब्दी में राजा चंद्रप्रद्योत के समय में भी महाकाल उत्सव का वर्णन पाया जाता है। यानी कि भगवान बुद्ध के समय में भी महाकाल उत्सव मनाया गया था।
बता दें कि उज्जैन का महाकाल मंदिर आज जिस स्वरूप में दिखता है, वैसा पहले नहीं था। मुस्लिम शासकों ने महाकाल मंदिर पर हमला करके इसे कई बार तोड़ा और फिर कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया। 11वीं सदी में मोहम्मद गजनी के सेनापति और 13वीं सदी में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर को ध्वस्त करा दिया था। इसके बाद कई राजाओं ने इसका दोबारा निर्माण करवाया।
1107 से 1728 ई. तक उज्जैन में यवनों का शासन था। इस दौरान हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को पूरी तरह से नष्ट करने का प्रयास किया गया। 11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद सन् 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला कर यहां कत्लेआम कराया था। इल्तुतमिश के उज्जैन पर आक्रमण के दौरान महाकाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। उस समय यहां के पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को एक कुंड में छिपा दिया था। करीब 500 साल तक भगवान महाकाल को इसी जल कुंड में जल समाधि में रहना पड़ा। इसके बाद औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद बनवा दी थी।
लगभग 500 साल तक महाकाल की पूजा मंदिर के अवशेषों में ही होती रही। वर्ष 1728 में मराठों ने उज्जैन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव फिर से प्राप्त हुआ। 1731 से 1809 तक उज्जैन मालवा की राजधानी रहा। मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। पहली महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया और दूसरी शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ का आयोजन शुरू किया गया।
गौरतलब है कि महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। उन्हीं की प्रेरणा से यहां सिंहस्थ कुंभ पर्व की भी दोबारा ये शुरुआत कराई गई। मंदिर के पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनः प्राणप्रतिष्ठा कराने से पहले राणोजी सिंधिया ने उस मस्जिद को भी पूरी तरह से ध्वस्त करा दिया था जो औरंगजेब ने यहां बनवाई थी।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा है महाकाल लोक
उत्तर प्रदेश के वाराणसी के बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर के मुकाबले उज्जैन का मकाकाल लोक चार गुना बड़ा है। गौरतलब है कि काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर करीब 5 हैक्टेयर क्षेत्रफल में बनाया गया है। जबकि उज्जैन का महाकाल लोक करीब 20 हैक्टयर क्षेत्रफल में फैला है। जिसकी वजह से इसकी भव्यता और ज्यादा बढ़ गई है। बता दें कि इससे पहले उज्जैन का मकाकाल मंदिर परिसर केवल 2 हैक्टयर भूमि पर फैला हुआ था। इसका पहले चरण का कार्य पूरा हो चुका है, जबकि अभी इसमें बहुत ज्यादा काम होना बाकी है।