-2010 में राष्ट्रमंडल खेलों का गवाह बना था नेहरू स्टेडियम
-कोई नहीं सुध लेने वाला, खिलाड़ी कंक्रीट पर दौड़ने को मजबूर
विजय कुमार/ नई दिल्ली, 1 नवंबर 2022।
खेल मंत्रालय की नाक के नीचे करोड़ों रुपये का खेला हो गया, और मंत्रालय या फिर कहें कि संबंधित अधिकारी लंबी तान कर सो रहे हैं। मंत्रालय के तहत भले ही कथित तौर पर कुछ अच्छा काम हो रहा हो लेकिन जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम की तस्वीर कुछ और सच्चाई बयान कर रही है। खिलाड़ियों के लिए प्रैक्टिस करने वाले मैदान की स्थिति ऐसी है जिसपर खिलाड़ी तो क्या आम लोग भी चलने से बचेंगे। हालांकि इन खिलाड़ियों के पास और कोई चारा भी नहीं है क्योंकि सेंट्रल दिल्ली में इसके अलावा दूसरा कोई स्टेडियम नहीं है जहां, खिलाड़ी प्रैक्टिस कर सकें।


स्टेडियम की हालत यों है कि लॉन्ग जंप की प्रैक्टिस करने वाली जगह पर घांस के ढेर का अंबर लगा हुआ है। यही कारण है कि खिलाड़ी प्रैक्टिस करने से कतरा रहे हैं। वहीं ट्रैक की हालत भी कम खराब नहीं है। ट्रैक पर कई जगहों पर अच्छे-खासे गड्ढे हो चुके हैं। ऐसे में अगर कोई खिलाड़ी यहां दौड़ते हुए गिर गया तो काफी गंभीर चोट आनी स्वाभाविक है। यही नहीं ट्रैक पर लगी रबड़ भी कई जगहों से कट-फट चुकी है। इसके कारण धावक कंक्रीट पर दौड़ने को मजबूर है। इसकी वजह से खिलाड़ी मांसपेशियों में खिंचाव की शिकायत कर रहे हैं।
गौरतलब है कि यह हाल उस स्टेडियम का है जहां 2010 में राष्ट्रमंडल खेल हुए हैं। साथ ही समय-समय पर देश में होने वाले बड़े खेलों का भी आयोजन इसी स्टेडियम में होता है। लेकिन अभी की हालत से ऐसा लगता है मानो स्टेडियम की सुध लेने वाला कोई है ही नहीं। खेल मंत्रालय भले ही खेल को लेकर तमाम दावे करता हो लेकिन नेहरू स्टेडियम की हालत दावों के उलट सच्चाई बयां करती है। बहरहाल देखना होगा आखिर कब सरकार इस गंभीर मामले पर संज्ञान लेते हुए कुछ कदम उठती है।