निगम चुनावः सोमवार को संसद में आ सकता है निगमों को एक करने का प्रस्ताव!

-भंग होने की ओर बढ़ रहे दिल्ली के तीनों नगर निगम, नहीं बढ़ेगा पार्षदों का कार्यकाल!

पूनम सिंह/ नई दिल्ली, 20 मार्च, 2022
राजधानी दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चुनाव को लेकर सियासी दलों के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। एक ओर आम आदमी पार्टी ने निगम चुनाव टाले जाने को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया है तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी इसे निगमों की आर्थिक सेहत सुधारने की कवायद के रूप में देख रही है। इस बीच खबर आ रही है कि सोमवार यानी कि 21 मार्च को संसद में दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने के संबंध में प्रस्ताव लाया जा सकता है।

यह भी पढ़ेंः निगम के पास नहीं थे सेलरी के पैसे और बीजेपी मेयर कर रहीं थीं सरकारी खर्च पर दूसरे शहरों की सैर

बताया जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीनों नगर निगमों को एक करने का खाका तैयार कर लिया है और इसे सोमवार को होने वाली संसद की कार्यवाही में शामिल किया जा सकता है। माना जा रहा है कि यदि ऐसा होता है तो 21 मार्च को शंकाओं और आशंकाओं के सारे बादल छंट जायेंगे। यदि संसद में केंद्र सरकार की ओर से इस तरह का कोई प्रस्ताव लाया जाता है तो इससे यह भी तय हो जायेगा कि आखिर नगर निगम के चुनाव कब कराये जायेंगे।

यह भी पढ़ेंः UP हार के साइड इफैक्ट्सः जयंत-अखिलेश पर 8 करोड़ लेकर टिकट बेचने का आरोप!

वर्तमान में संसद का बजट सत्र चल रहा है। इसका दूसरा चरण 14 मार्च को शुरू हुआ था और यह चरण आगामी 8 अप्रैल तक चलेगा। मोदी सरकार को संसद के इसी सत्र में दिल्ली के तीनों नगर निगमों के संबंध में निर्णय लेना है। क्योंकि आधिकारिक तौर पर राज्य निर्वाचन आयोग को 18 मई तक चुनाव कराने हैं, अतः सरकार को चुनाव के बारे में कोई भी फैसला 16-17 अप्रैल से पहले लेना है। क्योंकि आयोग को चुनाव कराने के लिए करीब 29 से 30 पहले घोषणा करनी होती है। चर्चा यह भी है कि वर्तमान निगम पार्षदों का कार्यकाल भी नहीं बढ़ाया जायेगा।
निगमों के एकीकरण के साथ चुनाव टलना तय, नहीं मिलेगा एक्सटेंशन
सरकार की ओर से किसी भी तरह का प्रस्ताव लाया जाये, लकिन यह तो तय है कि यदि नगर निगमों को एक किया जाता है तो चुनाव टलने तय हैं। इसके साथ यह भी तय माना जा रहा है कि तीनों नगर निगमों को भंग कर दिया जायेगा। क्योंकि वर्तमान स्थिति में नगर निगमों के कार्यकाल को बढ़ाया जाना संभव नजर नहीं आ रहा है। बताया जा रहा है कि कुछ समय के लिए एडमिनिस्ट्रेटर के जरिये नगर निगम को चलाया जा सकता है।
मेयर-इन-काउंसिल की चर्चा
इंद्रप्रस्थ के सियासी मैदान में एक चर्चा यह भी है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय दिल्ली में मेयर-इन-काउंसिल की व्यवस्था पर ध्यान दे रहा है। इस व्यवस्था के तहत शहर का महापौर और अन्य पार्षद सीधे जनता के द्वारा चुने जाते हैं। मेयर-इन-काउंसिल का कार्यकाल यानी कि मेयर और पार्षदों का कार्यकाल पूरे पांच वर्ष का होता है। इस व्यवस्था में मेयर के द्वारा विभिन्न समितियों के सदस्यों को नामित किया जाता है, जिसे महापौर का मंत्रिमंडल भी कहा जाता है। कुल मिलाकर मेयर-इन-काउंसिल व्यवस्था में मेयर शहर का प्रथम नागरिक होने के साथ ही दिल्ली जैसे राज्यों के मामले में मुख्यमंत्री से ज्यादा प्रतिष्ठा प्राप्त होता है। क्योंकि उसे पूरे शहर की जनता सीधे चुनती है, जबकि मुख्यमंत्री महज एक विधानसभा क्षेत्र का विधायक होता है।
घटायी जायेगी वार्डां की संख्या?
सियासी अखाड़े में एक चर्चा यह भी है कि दिल्ली में तीनों नगर निगमों को एक करने के साथ ही वार्डों की संख्या भी घटाने के साथ सभी वार्डों का परिसीमन दोबारा से करना होगा। अभी तीनों नगर निगमों में कुल 272 वार्ड हैं, जबकि 8 वार्ड छावनी क्षेत्र में आते हैं, जिनका चुनाव अलग से कराया जाता है। चर्चाओं के मुताबिक गृह मंत्रालय वार्डों की संख्या घटाकर 136 से 140 या फिर 200 के आसपास रखना चाहता है। हालांकि संख्या की यह थ्यौरी सियासी विशेषज्ञों के गले नहीं उतर रही है।
बढ़ाया जायेगा मेयर का कार्यकाल?
दिल्ली नगर निगम के चुनावों को लेकर एक चर्चा यह भी है कि तीनों नगर निगमों को एक करने के साथ ही 272 वार्ड ही रखे जायेंगे, लेकिन मेयर का कार्यकाल बढ़ाकर कम से कम ढाई वर्ष किया जा सकता है। लेकिन इस व्यवस्था में तकनीकी पेंच फंस सकता है। क्योंकि अभी की व्यवस्था के मुताबिक पहले वर्ष में मेयर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित है, जबकि तीसरा वर्ष अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। ऐसे में गृह मंत्रालय के सामने यह समस्या आ सकती है कि या तो आरक्षण व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त किया जाये या फिर दोनों टर्म किसी के लिए आरक्षित कर दी जायें। ऐसे में एससी, महिला और सामान्य वर्ग के लिए पूरा मौका देने के लिए नगर निगम का कार्यकाल बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि पांच वर्ष में तो केवल दो वर्गों को ही मौका मिल सकता है।