-बीजेपी ने केशवपुरम जोन से की जनता दरबार की शुरूआत
एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
उत्तरी दिल्ली नगर निगम का जनता दरबार शुरू होते ही विवादों में घिर गया है। विपक्ष ने इसे जनता की समस्याओं पर से ध्यान बंटाने वाला बताया है। मंगलवार 20 जुलाई को प्रदेश भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने ‘बीजेपी शासित नगर निगम के जनता दरबार’ का उद्घाटन किया था। उन्होंने कहा था कि जनता के बहुत से काम जोन कार्यालय से संबंधित होत हैं, अब यह सभी काम आसानी से हो पायेंगे। लेकिन विपक्षी नेताओं का कहना है कि बीजेपी को सत्ता में रहने के साढ़े चार साल बाद जनता दरबार लगाने की याद आई है। आदेश गुप्ता को भी बीजेपी की कमान संभाले हुए एक साल से ज्याद हो चुका है, लेकिन उन्हें भी निगमों की तब याद आई है, जब निगम की नाकामी की वजह से बरसात का पानी लोगों के घरों में घुस गया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि खुद बीजेपी पार्षदों का कहना है कि हाउस और जोन कमेटी की बैठकों में पार्षदों द्वारा उठाये गये मुद्दों का ही हल नहीं हो पाता है, तो आम लोगों की समस्याओं का किस तरह से हल हो पायेगा?
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बता दें कि बीजेपी शासित उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए मंगलवार से जनता दरबार लगाने की शुरूआत की है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष ने यह घोषणा भी की है कि आने वाले समय में बाकी सभी जोन कार्यालयों में भी जनता दरबार की शुरूआत करायी जायेगी। इनमें हेल्थ, लाइसेंस, रेहड़ी-पटरी, हाउस टैक्स, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र आदि से संबंधित समस्याओं का समाधान कराया जायेगा। लेकिन बीजेपी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि सिटी सदर-पहाड़गंज जोन और नरेला जोन में वार्ड समितियों के अध्यक्ष ही नहीं हैं। एक जोन में पार्षदों की संख्या कम होने के चलते अध्यक्ष पद के चुनाव में बीजेपी नहीं उतर पायी थी और दूसरे जोन में संख्या बल होने के बावजूद बीजेपी अध्यक्ष पद का चुनाव हार गई थी।
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बीजेपी पार्षदों को नहीं भाया जनता दरबार!
खुद सत्ताधारी बीजेपी पार्षदों को भी पार्टी के जनता दरबार की योजना पसंद नहीं आ रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ निगम पार्षद ने कहा कि हम जो मुद्दे और समस्याएं हाउस और वार्ड कमेटी की बैठकों में उठाते हैं, उनमें से किसी का भी हल नहीं निकल पाता है। ऐसे में जनता दरबार कितने कारगर साबित हो पायेंगे। उन्होंने कहा कि चुनावी साल में पार्टी का यह कदम खुद के लिए ही घातक साबित होगा। लोग अपनी समस्याओं को लेकर अपने निगम पार्षद के पास जाते हैं और वह उन्हें सुलझाने की कोशिश करते हैं। यदि मान भी लिया जाये कि जनता दरबार में समस्याएं सुलझ जायेंगी, तो फिर कोई व्यक्ति पार्षदों के पास क्यों जायेगा? बीजेपी के ही एक और पार्षद का कहना है कि पहले पार्टी के नेता अपनी समस्याओं का ही समाधान निकाल लें, जनता की चिंता तो तब करें जब क्षेत्र में लगाने के लिए कोई फंड भी तो होना चाहिए