-यहां समझें संक्षिप्त हवन करने की विधि
-जानें मनुष्य जीवन में यज्ञ का महत्वः भाग-3
आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
यज्ञ या हवन करने की कई विधियां हैं। हिंदू संस्कृति और सनातन धर्म में आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति यज्ञ या हवन कर सकता है। आम तौर पर प्रकांड पंडितों-आचार्यों द्वारा यज्ञ अनुष्ठान कराये जाते हैं। लेकिन यदि कोई भी व्यक्ति यज्ञ का विधि-विधान समझकर स्वयं भी अपने घर पर इसे कर सकता है। यों तो यज्ञ या हवन कई प्रकार से किये जाते हैं।
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यज्ञ किसी भी दिन किया जा सकता है, इसके लिए कोई पाबंदी नहीं है। लेकिन दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक यज्ञ भी किये जा सकते हैं। जैसे कि प्रत्येक सोमवार, मंगलवार या फिर शनिवार के दिन। बहुत से लोग रविवार को भी यज्ञ करते हैं। इसके अलावा आप नवमी, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या या फिर किसी पर्व या त्योहार के दिन भी यज्ञ कर सकते हैं। होली व दीपावली पर भी यज्ञ करने की परंपरा है। पहले हम आपको सामान्य तौर पर यज्ञ-हवन करने की छोटी विधि बता रहे हैं।
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हवन के लिए आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानी कपूर, लौंग, चावल, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हरड़ तथा घी, शक्कर, जौ, तिल, गुगल, लोभान, इलायची, चावल एवं अन्य वनस्पतियों का बुरादा उपयोग में लाया जाता है। तैयार हवन सामग्री भी बाजार से खरीद कर यज्ञ किया जाता है। हवन के लिए गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी कटोरियां या उपले घी में डुबोकर उपयोग किये जा सकते हैं। मिष्ठान और फलों को अर्पित किया जाता है। इनमें से जो भी वस्तुएं आपके पास उपलब्ध हों, उन्हें यज्ञ में प्रयोग कर सकते हैं।
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इस तरह करें संक्षिप्त हवन
हवन करने से पूर्व स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। सबसे पहले दैनिक पूजा करने के बाद आम की लकड़ी से चौकोर हवन कुंड बनाकर अग्नि स्थापना करें और कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रोच्चारण के साथ हवन शुरू करें और स्वाहा के उच्चारण के साथ यज्ञ कुंड में शुद्ध घृत व हवन सामग्री की आहुति डालें। (ध्यान रखें कि यह हवन करने की संक्षिप्त विधि है, जो कि कम समय में पूर्ण हो जाता है। आम तौर पर नवरात्रों अथवा दैनिक तौर पर पूजा पाठ करने वाले लोग इस तरह का हवन करते हैं)
– ॐ आग्नये नमः.. स्वाहा (ॐ अग्निदेव ताम्योनमः स्वाहा)
– ॐ गणेशाय नमः.. स्वाहा
– ॐ गौरियाय नमः.. स्वाहा
– ॐ नवग्रहाय नमः.. स्वाहा
– ॐ दुर्गाय नमः.. स्वाहा
– ॐ महाकालिकाय नमः.. स्वाहा
– ॐ हनुमतये नमः.. स्वाहा
– ॐ भैरवाय नमः.. स्वाहा
– ॐ कुल देवताय नमः.. स्वाहा
– ॐ स्थान देवताय नमः.. स्वाहा
– ॐ ब्रह्माय नमः.. स्वाहा
– ॐ विष्णुवे नमः.. स्वाहा
– ॐ शिवाय नमः.. स्वाहा
– ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते.. स्वाहा
– ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानुः शशिः भूमि सुतौ बुधश्चः, गुरुश्च शक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहा शांति करः भवन्तु.. स्वाहा
– ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः.. स्वाहा
– ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.. स्वाहा
– ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते.. स्वाहा
इसके पश्चात यदि आपने कोई प्रसाद तैयार किया है अथवा फल व मिठाई आदि प्रसाद के लिए रखे हैं तो उन्हें मुर्तियों अथवा तस्वीर के सामने अर्पित करें और फिर हवन की पूर्णाहुति इस प्रकार से देंः-हवन के बाद गोला में कलावा बांधकर फिर चाकू से काटकर ऊपर के भाग में सिन्दूर लगाकर घी भरकर चढ़ा दें। इस विधि को ‘वोलि’ कहा जाता है। फिर पूर्ण आहूति नारियल में छेद कर घी भरकर, लाल तूल लपेटकर धागा बांधकर पान, सुपारी, लौंग, जायफल, बताशा व अन्य प्रसाद रखकर पूर्ण आहुति मंत्र बोलें-
-’ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पुर्णात पुण्य मुदच्यते, पुर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेव विशिष्यते.. स्वाहा’
… इसके साथ ही उपरोक्त सभी वस्तुएं और बची हुई हवन सामग्री व घृत अग्नि को समर्पित कर दें।हवन की पूर्ण आहुति के बाद यथाशक्ति दक्षिणा अवश्य दें। इसके पश्चात परिवार सहित आरती करके अपने द्वारा जाने-अनजाने में हुए अपराधों के लिए देवी-देवताओं से क्षमा-याचना करें, क्षमा मांगें। इसके बाद अपने ऊपर किसी से 1 रुपया या कुछ भी धनराशि उतरवाकर किसी अन्य को दान करें।
नोटः इस आलेख में कही गई बातें सनातन संस्कृति से संबंधित धार्मिक ग्रंथों के आधार पर कही गई हैं। अपने विवेक का इस्तेमाल अवश्य करें। अगले लेख में हम आपको यज्ञ-हवन करने की एक और विधि और उच्चारित किये जाने वाले मंत्रों के बारे में बतायेंगे। यह विधि थोड़ी विस्त्रित होती है।
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