अहोई अष्टमीः चमकते तारों को अर्घ्य का पर्व… संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता निर्जला व्रत

-गुरूवार 28 अक्टूबर 2021 को देशभर में मनाया जा रहा अहोई अष्टमी पर्व
आचार्य रामगोपाल शुक्ल

हेमा शर्मा/ नई दिल्ली
गुरूवार 28 अक्टॅबर 2021 को देशभर में अहोई अष्टमी पर्व मनाया जा रहा है। यह शादीशुदा महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। करवा चौथ का व्रत जहां सुहागिनों अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं, वहीं अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घ आयु, खुशहाल जीवन, व अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए इस निर्जला व्रत को रखती हैं। यह व्रत करवा चौथ से 4 दिन बाद और दिवाली से 8 दिन पहले आता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है।

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आचार्य रामगोपाल शुक्ल बताते हैं कि जहां दूसरे व्रतों में सूर्य और चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है तो अहोई अष्टमी व्रत में तारों की पूजा कर अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। इस व्रत को वह स्त्रियां भी कर सकती हैं जिन्हें संतान प्राप्ति की कामना हो, मान्यता है कि कुछ विशेष उपाय करने से उनकी सूनी गोद भर जाती है।
यदि किसी को संतान नहीं हो तो उन्हें अहोई अष्टमी के दिन निर्जला व्रत रख कर मां अहोई का विधि विधान से पूजन करना चाहिये और उसके उपरांत शिव-पार्वती को दूध-भात का भोग लगाकर संध्या के समय पीपल के नीचे दीपक जलाकर परिक्रमा करनी चहिये। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इससे अहोई माता प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करती हैं।

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तिथि व शुभ मुहूर्त
इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानी कि 28 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को मनाया जा रहा है। अष्टमी तिथि गुरुवार 28 अक्टूबर 2021 को अपरान्ह 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगा और शुक्रवार 29 अक्टूबर 2021 को अपरान्ह 2 बजकर 01 पर समाप्त होगा।
व्रत की विधिः
अहोई अष्टमी के दिन माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प ले। अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं। साथ ही सेह और उस के सात पुत्रों का चित्र बनाएं। अहोई माता की पूजा से पहले गणेश जी का पूजन करें। शाम के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखें, उस पर जल से भरा कलश रखें, फिर रोली-चावल से माता की पूजा करें।
मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग
कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें। तत्पश्चात तारों को, या चांद को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लें।
व्रत की कथा
आचार्य रामगोपाल शुक्ल बताते हैं कि अहोई अष्टमी व्रत के बारे में यूं तो कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन एक कथा ज्यादा मशहूर है। पुराने समय में एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी। साहूकार ने अपने सातों बेटों और एक बेटी की शादी कर दी थी। अब उसके घर में सात बेटों के साथ सात बहुंएं भी थीं। साहुकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से मायके आई थी। दिवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं। ये देखकर ससुराल से मायके आई साहूकार की बेटी भी उन के साथ चली गई।
साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। स्याहु की बात सुनकर साहूकार की बेटी ने अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती की कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। उनमें से सबसे छोटी भाभी अपनी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई।
इसके पश्चात छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वो सात दिन बाद मर जाते थे। सात पुत्रों की इसी प्रकार से मृत्यु होने से वह परेशान होकर एक पंडित से मिली और उपाय पूछा। पंडित की सलाह पर उसने सुरही गाय की सेवा करनी शुरु की। उसकी सेवा से प्रसन्न गाय उसे एक दिन स्याहू की माता के पास ले गई। रास्ते में गरुड़ पक्षी के बच्चे को सांप मारने वाला था, लेकिन साहूकार की छोटी बहू ने सांप को मारकर गरुड़ पक्षी के बच्चे को जीवनदान दिया। तब तक उस गरुड़ पक्षी की मां आ गई और पूरी घटना सुनने के बाद उससे प्रभावित हुई और उसे स्याहू की माता के पास ले गई।
गरूण पक्षी की माता के मुंह से साहूकार की छोटी बहू के परोपकार की बातें सुनकर स्याहु की मां बेहद प्रसन्न हुई। इसके पश्चात स्याहू की मां ने साहूकार की छोटी बहू को आशीर्वाद दिया और कहा कि उसके सात पुत्र होंगे जो यशस्वी होने के साथ धन-धान्य से पूर्ण होंगे। इसके पश्चात ऐसा ही हुआ और साहूकार की छोटी बहू का पूरा जीवन आनंद से कटा। मान्यता है कि इस व्रत को रखने के साथ कथा जरूर सुननी चाहिए।