श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर 101 साल के बाद ‘जयंती योग’ और 27 साल बाद ‘महा संयोग’

-सोमवार को है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, आप भी जानें पूजा का विधि-विधान
      आचार्य रामगोपाल शुक्ल

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सोमवार 30 अगस्त 2021 को पड़ रहा है। पूरे भारत और विदेशों में यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष के इस पर्व की खास बात यह है कि 101 वर्ष के बाद ऐसा ‘महा संयोग’ बन रहा है और 27 वर्षों के बाद इस पर्व पर जयंती योग भी बन रहा है। ऐसे में इस बार के श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।

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खास बात यह है कि इस बार 27 साल बाद यह पहला मौका है जब 30 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व वैष्णव व गृहस्थों के द्वारा एक ही दिन मनाया जायेगा। 101 साल बाद जयंती योग में सोमवार 30 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जायेगा। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण की अष्टमी तिथि, सोमवार को रोहिणी नक्षत्र व वृष राशि में मध्य रात्रि में हुआ था। सोमवार 30 अगस्त के दिन भी अष्टमी तिथि रात 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। इस दौरान चंद्रमा वृष राशि में मौजूद रहेगा। इन सभी संयोगों के साथ रोहिणी नक्षत्र भी 30 अगस्त को रहेगा। अर्धरात्रि को अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र का संयोग एक साथ मिल जाने से ‘जयंती योग’ बन रहा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर 101 साल के बाद जयंती योग का संयोग बना है। इसके अलावा एक साथ अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र व सोमवार तीनों का एक साथ मिलना दुर्लभ संयोग है।

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29 अगस्त की रात्रि 11 बजकर 24 मिनट 38 सेकेंड पर अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी, जोकि 30 अगस्त की आधी रात के बाद 1 बजकर 59 मिनट 2 सेकेंड तक रहेगी। इसी दिन शाम को 6 बजकर 37 मिनट से रोहिणी नक्षत्र लग रहा है। लगभग 15 वर्ष के बाद अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र एक साथ पड़ रहे हैं। पूरे देश में एक ही दिन अष्टमी मनाई जाएगी। सोमवार 30 अगस्त को रात 12 बजे भगवान का जन्म होगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसे संयोग में भगवान श्रीकृष्ण की विधि-विधान के साथ पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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इस पूजा के विधि विधान में खीरा को जरूर शामिल किया जाना चाहिए। मान्यता यह भी है कि खीरे से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। खीरा चढ़ाने से नंदलाल भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा में डंठल और पत्तियों वाले खीरे का प्रयोग ज्यादा शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि बच्चा पैदा होता है तो उसको मां से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है। ठीक उसी तरह से खीरे को डंठल से काटकर अलग किया जाता है। यह भगवान श्रीकृष्ण को मां देवकी से अलग करने का प्रतीक माना जाता है। यह करने के बाद ही भगवान श्रीकृष्ण की विधि विधान के साथ पूजा की जानी चाहिए।
पूजा-विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। अपने घर के मंदिर में साफ-सफाई करें और दीप प्रज्वलित करें। सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक करें। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप यानी लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। अतः लड्डू गोपाल का जलाभिषेक करें और लड्डू गोपाल को झूले में बैठाएं। और झूला झूलाएं। अपनी इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार लड्डू गोपाल को भोग लगाएं। ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाया जाता है। इस दिन रात्रि पूजा का महत्व होता है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात में हुआ था। रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करें और उन्हें मेवा-मिश्री का भोग भी लगाएं, तत्पश्चात आरती करें।
जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त-
सोमवार 30 अगस्त को रात 11 बजकर 59 मिनट से देर रात 12 बजकर 44 मिनट तक भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त है। श्रद्धालु इस दिन पूरे दिन का उपवास रखने के बाद श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात उनकी पूजा-अर्चना और आरती करने के पश्चात प्रसाद ग्रहण करते हैं।