-यहां जानें हरियाली तीज का महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा
आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
सावन के महीने में हरियाली तीज के दिन भगवान भोलेनाथ और मां गौरी की पूजा विशेष तौर पर की जाती है। खास बात है कि इस पूजा में भगवान शिव के पूरे परिवार को शामिल किया जाता है। हर सुहागिन महिला हरियाली तीज का बेसब्री से इंतजार करती है। हरियाली तीज को सौन्दर्य और प्रेम का त्योहार माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। घर की सुख संमृद्धि के लिए महिलाएं हरियाली तीज का व्रत रखती हैं। कहते हैं इस व्रत को करने से सौभाग्य और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के रुप में हरियाली तीज मनाई जाती है। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतिया को हरियाली तीज मनाई जाती है इस बार यह त्योहार 11 अगस्त 2021 को पड़ रहा है।
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इसे मधुश्रवा तृतीया या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली तीज के बाद ही नाग पंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और नवरात्र आदि बड़े त्योहार आते हैं। खास बात यह है कि हरियाली तीज के मौके पर 11 अगस्त को शाम 6 बजकर 28 मिनट तक शिव योग रहेगा। शिव का अर्थ होता है शुभ। यह योग बहुत ही शुभदायक है। इस योग में किए गए सभी मंत्र शुभफलदायक होते हैं। साथ ही 11 अगस्त को सुबह 9 बजकर 32 मिनट से 12 अगस्त को सुबह 8 बजकर 53 मिनट तक सारे कार्य बनाने वाला रवि योग रहेगा। रवि योग सभी कुयोगों को, अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता रखता है। इसके साथ ही सुबह 9 बजकर 32 मिनट तक पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र रहेगा व उसके बाद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र लग जायेगा।
हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त
इस साल हरियाली तीज का त्योजार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी कि मंगलवार 10 अगस्त 2021 को शाम 6 बजकर 11 मिनट से शुरू होगा और यह तिथि बुधवार 11 अगस्त 2021 की शाम को 4 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी।
पूजन की विधि
हरियाली तीज की पूजा से पहले घर की साफ सफाई करें। चौकी पर मंडप सजाएं और मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं। आप मिट्टी में गंगाजल भी मिला सकते हैं। रिद्धि-सिद्धि और माता पार्वती की सहेली सहित सभी प्रतिमाओं को चौकी पर स्थापित कर दें। इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें। शिवजी को वस्त्र अर्पित करें और ‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का जाप करते रहें। इस दौरान हरियाली तीज की कथा कहें व सुनें। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी विधि-विधान से मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। हरियाली तीज का व्रत पूरी रात चलता है। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण करते हुए भजन कीर्तन करती हैं। कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को कर सकती हैं।
प्रतिमाएं बनाते समय ध्यान रखें कि भगवान का स्मरण और मनन करते रहें। रात्रि के समय हर प्रहर को की पूजा करते हुए बेल-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण करने चाहिए और आरती करनी चाहिए। इसके साथ ही पूजन के दौरान इन मंत्रों का उच्चारण अवश्य करना चाहिए-
माता पार्वती की पूजा करते समय
‘ऊं उमायै नमः, ऊं पार्वत्यै नमः, ऊं जगद्धात्र्यै नमः, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नमः, ऊं शांतिरूपिण्यै नमः, ऊं शिवायै नमः’’
मंत्र का जाप करें।
भगवान शिव की आराधना में
‘‘ऊं हराय नमः, ऊं महेश्वराय नमः, ऊं शम्भवे नमः, ऊं शूलपाणये नमः, ऊं पिनाकवृषे नमः, ऊं शिवाय नमः, ऊं पशुपतये नमः, ऊं महादेवाय नमः’’
मंत्र का जाप करें।
पौराणिक मान्यता
शिव पुराण में कहा गया है कि माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इसके लिए माता पर्वती को 108 जन्म लेने पड़े। शक्ति ने 107 जन्मों तक कठोर तपस्या की जिसके बाद 108वें जन्म में माता ने अपने तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। परिणाम स्वरूप महादेव ने माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस दिन भगवान भोलेनाथ ने अपने और माता पार्वती के मिलन की कहानी माता पार्वती को सुनाई थी। तभी से महिलाएं प्रेम के इस त्योहार को मनाती हैं।
व्रत कथा
भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि ‘‘तुमने मुझे पति के रुप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर कठिन तप किया था। अन्न जल त्यागकर तुमने मेरा ध्यान किया। सर्दी, गर्मी और बारिश में लगातार तुमने अपनी तपस्या जारी रखी. तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे। तब उनके पास नारद जी पहुंचे और कहने लगे कि भगवान विष्णु आपकी कन्या की तपस्या से खुश हुए हैं और उससे विवाह करना चाहते हैं।’’ नारद जी की बातें सुनकर पर्वतराज बहुत खुश हुए।
उन्होंने कहा कि वो ‘‘इस विवाह के लिए तैयार हैं।’’ इसके बाद नारद जी ने जाकर यह बात माता पार्वती को बताई कि ‘‘उनके पिता पर्वतराज पार्वती की शादी भगवान विष्णु से करवाने जा रहे हैं।’’ यह बात सुनकर पार्वती असमंजस में पड़ गई और वहां से तपास्या के लिए चली गईं। भगवान शिव ने आगे कहा कि ‘‘हे पार्वती जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला, तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। क्योंकि तुम मुझे यानि शिव को मन से अपना पति मान चुकी थीं। बाद में तुम किसी को बिना बताए जंगल में एक गुफा में जाकर तपस्या करने लगी। तुम्हारे पिता ने तुम्हें खोजने के लिए धरती-पाताल छान दिए, लेकिन तुम नहीं मिलीं। इसके बाद भाद्रपद तृतीय शुक्ल को मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हुआ और तुम्हारी मनोकामना पूरी की। बाद में तुमने ये बात अपने पिता को बताई और कहा कि पिताजी में आपके साथ तभी चलूंगी जब आप मेरा विवाह भगवान शिव से कराएंगे।’’
भगवान शिव ने आगे कहा कि ‘‘तुम्हारे पिता ने बात मान ली और पूरे विधि-विधान से हमारा विवाह कराया।’’ भगवान शिव ने कहा कि ‘‘हे पार्वती तुमने तृतीया तिथि को मेरी आराधना और व्रत किया था, मैंने तुम्हारी इच्छा पूरी की। इसी तरह इस व्रत को निष्ठापूर्वक करने वाली हर महिला को मैं मनवांछित फल देता हूं.। इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेगी उसे अचल सुहाग की प्राप्ति होगी।’’
(यह आलेख भारतीय सनातन परंपरा एवं ज्योतिषीय सिद्धांतों पर आधारित है और जनरूचि को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसके लिए कोई विशेष दावा नहीं है। अपने समाचार, लेख एवं विज्ञापन छपवाने हेतु संपर्क करेंः- ईमेलः hrathor1@gmail.com मोबाइलः 7982558960)