-यज्ञ से होता रोग, शोक, कष्ट और बाधाओं का निवारण
-जानें मनुष्य जीवन में यज्ञ का महत्वः भाग-2
आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
आदिकाल से सनातन संस्कृति में सुख-सौभाग्य के लिए हवन और यज्ञ किये जाने की परंपरा रही है। औषधि युक्त हवन सामग्री से हवन-यज्ञ करने से पर्यावरण शुद्ध होता है वहीं वायरस का संक्रमण भी नष्ट होता है। अनेक वैज्ञानिकों एवं धर्मगुरुओं ने कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए एवं वातावरण की शुद्धि के लिए हवन यज्ञ का अद्भुत लाभ बताया है। जिस स्थान पर हवन किया जाता है, वहां उपस्थित लोगों पर तो उसका सकारात्मक असर पड़ता ही है साथ ही वातावरण में मौजूद रोगाणु और विषाणुओं के नष्ट होने से पर्यावरण भी शुद्ध होता है व शरीर स्वस्थ्य रहता है।
यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में बैठे ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहे हों तो विधि-विधान पूर्वक हवन करते रहने से जल्दी ही ग्रहों के शुभ प्रभाव मिलने लगते हैं। पीड़ा देने वाले ग्रह से संबंधित वार को संकल्प करके 11 या 21 व्रत रखकर उसके बाद हवन-यज्ञ करके पूर्णाहुति देने से रोग, शोक, कष्ट और बाधाओं का निवारण होता है। हवन पूरा होने के बाद श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को धन, अन्न, फल, वस्त्र, जीवनोपयोगी वस्तुएं दान करने से ग्रह शांति होती है। वहीं हवन के समय तांबे के पात्र के जल का आचमन करने से मनुष्य की इंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं तथा शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होने से तन-मन स्वस्थ्य रहता है।
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वास्तु शास्त्र में माना जाता है कि हवन-पूजन करने से ब्रह्माण्ड में स्थित सकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवाह बढ़ जाता है। आसुरी शक्तियां दूर होती हैं। भवन निर्माण के समय रह गए वास्तु दोषों को दूर करने के लिए सबसे आसान और अच्छा तरीका हवन करना ही है। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार भवन में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों का संतुलन वहां रहने वालों को सुखी और संपन्न बनाये रखने में मदद करता है। हवन सामग्री इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। भवन में किसी तरह का कोई वास्तु दोष न रह जाए, इसके लिए निर्माण से पूर्व शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन और शिलान्यास में मंत्रोपचार के साथ हवन किया जाना चाहिए। इसी प्रकार भवन का निर्माण पूरा होने के बाद शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश के समय भी वास्तु पूजन के साथ हवन-यज्ञ किया जाता है। जिससे कि भवन का आंतरिक और बाहरी वातावरण शुद्ध एवं पवित्र बना रह सके और उसमें रहने वाले सदस्य सभी प्रकार के रोग, बाधाओं और पीड़ाओं से मुक्त रहकर सुख-शांति से जीवन जी सकें।
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धार्मिक ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं। जिनका शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि वायुमंडल को भी लाभ पहुंचाता है। अनेक वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हुआ है कि हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले अनेकों प्राकृतिक लाभ मिलते हैं। जो हमें और हमारी प्रकृति को अत्यधिक लाभ पहुंचाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से हवन से निकलने वाले अग्नि के ताप और उसमें आहुति के लिए उपयोग की जाने वाली हवन की प्राकृतिक सामग्री यानी समिधा की वजह से वातावरण में फैले रोगाणु और विषाणु नष्ट हो जाते हैं। साथ ही उनकी सुगंध व ऊष्मा मन व तन की अशांति व थकान दूर होती है। इस तरह हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है ।
नोटः इस आलेख में कही गई बातें सनातन संस्कृति से संबंधित धार्मिक ग्रंथों के आधार पर कही गई हैं। विश्वास नहीं होने पर अपने विवेक का इस्तेमाल करें। अगले लेख में हम आपको यज्ञ-हवन करने की विधि और उच्चारित किये जाने वाले मंत्रों के बारे में बतायेंगे।