-सिद्धू, जाखड़, परगट सहित विधायको-मंत्रियों ने जताई सीएम के खिलाफ नाराजगी
-2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सक्रिय हुआ कांग्रेस आलाकमान
-हरीश रावत के नेतृत्व मे नाराज नेताओं को सुन रहा तीन नेताओं का पैनल
एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
पंजाब में कांग्रेस पार्टी की भीतरी रार एक बार फिर से खुलकर सामने आ गई है। हालात ऐसे पैदा हो गए हैं कि पार्टी ज्यादातर विधायक सीएम अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। मामला बिगड़ता देख कांग्रेस ने हरीश रावत के नेतृत्व में तीन सदस्यीय पैनल बनाकर सुनवाई शुरू कर दी है। अब तक पंजाब के करीब ढाई दर्जन कांग्रेसी विधायक और मंत्री दिल्ली आकर अपनी बात इस पैनल के सामन रख चुके हैं। सोमवार 31 मई 2021 को पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोेेेेनिया गांधी ने भी पंजाब से आये विधायकों एवं मंत्रियों से मुलाकात की।
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दिल्ली दरबार में पंजाब के कई मंत्रियों और विधायकों ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने पंजाब में हुए बेअदबी-गोलीकांड, जैसे संवेदनशील मुद्दे के साथ ही नशाखोरी, खनन माफिया और सरकारी जांच एजेंसियों द्वारा दबाव की राजनीति को लेकर कैप्टन के खिलाफ खूब भड़ास निकाली है।
सूत्र बताते हैं कि दोनों दिन बैठकों के दौर चलत रहे और इनमें दलितों का मुद्दा छाया रहा। खुद पंजाब कांग्रेस के
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अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने बैठक से पहले और बाद में बेअदबी-गोलीकांड को बेहद संवेदनशील मुद्दा बताते हुए कहा कि पंजाब के सामने आज सबसे बड़ी समस्या है कि जिन्होंने श्री गुरू साहिब की बेअदबी की, पावन गुरू के अंग भंग किये, निहत्थे सिखों पर गोली चलवाई उनके अपराधी आज भंगड़े डालते हुए घूम रहे हैं। मंत्री सुखजिंद्र सिंह रंधावा, विधायक गुरकीरत सिंह कोटली, विधायक राजकुमार वेरका सहित कई विधायकों ने बेअदबी-गोलीकांड का मामला उठाया।
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मंगलवार 1 जून को भी यह सिलसिला जारी रहा। पंजाब के 6 मंत्रियों व अन्य विधायकों के साथ नवजोत सिंह सि़़द्धू और विधायक परगट सिंह ने पैनल के सामने अपनी बात रखी है। पैनल में राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे, पार्टी के जनरल सेक्रेटरी और पंजाब के प्रभारी हरीश रावत और दिल्ली से पूर्व सांसद जय प्रकाश अग्रवाल शामिल हैं। तीनों ही सीनियर नेताओं को कमेटी का हिस्सा इसलिए बनाया गया है, क्योंकि पिछले अनुभवों पर जूनियर नेता खरे नहीं उतरे थे। इसके चलते मध्य प्रदेश की सरकार कांग्रेस को खोनी पड़ी थी और राजस्थान में सरकार जाते-जाते बची थी।
सिद्धू बोलेः सत्य प्रताड़ित हो सकता है पराजित नहीं
मंगलवार को कांग्रेस के खास तौर पर सीएम अमरिंदर सिंह के साथ छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पुराने तेवर दिखाए। उन्होंने कहा कि मैंने पंजाब का सत्य पार्टी नेतृत्व के सामने रख दिया है। मैं हाईकमान के बुलाव पर दिल्ली आया हूं, पंजाब के लोगों की आवाज दिल्ली पहुंचाने आया हूं। मैंने पंजाब के सच और हक की आवाज हाई कमान को बताई है। उन्होंने कहा कि सत्य कभी पराजित नहीं होता है, पंजाब को जिताना है। बता दें कि एक-दो दिन बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भी अपनी बात कांग्रेस नेतृत्व द्वारा निर्धारित किये गये पैनल के लोगों के सामने रखेंगे।
ये हैं मतभेद के प्रमुख मुद्दे
पंजाब में कांग्रेस पार्टी के भीतर की कलह की यह कहानी कोई नहीं घटना नहीं है। अमरिंदर सिंह को पहले राजिंदर कौर भट्टल और बाद में प्रताप सिंह बाजवा जैसे नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा है। बाजवा अभी भी कैप्टन विरोधी गुट में बने हुए हैं। लेकिन अब इस खेमे के प्रमुख किरदार नवजोत सिद्धू बन गए हैं। पंजाब में कांग्रेस की सत्ता आने के बामुश्किल एक साल के बाद ही कैप्टन और सिद्धू के बीच मतभेद शुरू हो गए थे। 2017 के विधानसभा चुनावों के पहले जब सिद्धू ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी, तब उनके मन में खुद के लिए एक बड़े ओहदे की उम्मीद थी। लेकिन बाद में उन्होंने खुद के लिए कैप्टन को इसमें बाधा के तौर पर पाया।
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दूसरी ओर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह महसूस किया कि उन्होंने पहले से ही सिद्धू को पर्यटन और लोकल सेल्फ गवर्नमेंट जैसे अहम मंत्रालय दिए थे। लेकिन बाद में वे सिद्धू के विरोधाभासी बयानों से नाराज हो गए। इन मतभेदों का ही परिणाम रहा कि सिद्धू ने जून 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ सिद्धू की बातचीत ने 2019 में करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन में योगदान दिया। हालांकि इसमें कैप्टन ने एक असहमतिपूर्ण टिप्पणी की और संभावित सुरक्षा खतरों के बारे में बात करते रहे।
हाल ही में सिद्धू ने बरगारी मामले और कोटकपुरा फायरिंग की जांच में ढ़िलाई बरतने का आरोप लगाते हुए कैप्टन सरकार पर निशाना साधा था। यह जांच मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय की ओर से की जा रही है। स्पष्ट है कि सिद्धू बरगारी मामले पर सख्त और ठोस कार्रवाई और सत्ता में किसी तरह से सम्मानजनक गुंजाइश बनाना चाहते हैं। दरअसल सिद्धू पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते हैं। लेकिन वर्तमान में यह जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ नेता सुनील कुमार जाखड़ के पास है, जो कैप्टन के खास और करीबी हैं।
बरगारी मामला और कोटकपुरा फायरिंग
2015 में फरीदकोट जिले के बरगारी में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी यानी अपवित्र करने की कई घटनाएं हुईं थीं। इसके बाद हजारों लोग प्रदर्शन करने उतर आए और घटना के पीछे जिन लोगों का हाथ था उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करने लगे। वहीं पुलिस ने कोटकपुरा में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलावा दी। जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद आरोप लगाया गया कि गोलियां चलाने के निर्देश तत्कालीन डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल और शीर्ष पुलिस अधिकारियों के द्वारा दिए गए थे।
कांग्रेस ने 2017 में चुनाव प्रचार के दौरान इस घटना के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा किया था और बाद में इसके लिए एक एसआईटी का गठन भी किया गया। हालांकि इसी साल अप्रैल में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एसआईसी की रिपोर्ट को रिजेक्ट कर दिया था। इसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ आलोचना तेजी से होने लगी और सिद्धू ने उन पर सुस्त और घटिया काम करने का आरोप लगाया। कैप्टन को निशाना बनाने वाले अब अकेले सिद्धू ही नहीं हैं। सुखजिंदर रंघावा जैसे कुछ सीनियर मंत्री भी अब सिद्धू के सुर में सुर मिलाने लगे हैं।
मुश्किल में पंजाब कांग्रेस
यह समय पंजाब की राजनीति के लिए किसी अप्रत्याशित परिस्थिति से कम नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के खिलाफ काफी नाराजगी है। बगरारी मामले में होने वाली कार्रवाई में ढिलाई, सरकार की भ्रष्ट्राचार को लेकर कमजोर पकड़, रेत और ड्रग्स माफियों से निपटने में नाकाफी प्रयास और राज्य में बेरोजगारी को दूर करने की दिशा में सरकार के प्रयास अप्रभावी दिख रहे हैं। लेकिन राज्य में विपक्ष की स्थिति और भी ज्यादा खराब है। आम आदमी पार्टी दलबदली और गुटबाजी से परेशान है। वहीं शिरोमणि अकाली दल अभी भी बरगारी और शुरुआती दौर में कृषि कानूनों को समर्थन देने के लिए आलोचना का सामना कर रहा है। इसके अलावा बीजेपी भी पंजाब में किसान कानूनों को लेकर सिमट सी गई है। बीजेपी के नेताओं का तो जनसभाओं में जाना भी मुश्किल हो रहा है।
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कृषि विरोधी कानून के खिलाफ होने वाला प्रदर्शनों ने विशेष तौर पंजाब में कांग्रेस को एक तरह से सुरक्षित कर दिया है। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के द्वारा किये गये वायदों को पूरा नहीं किया जाना उसके लिए चुनौती बनी हुई है।
दो डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा
कांग्रेस में संभावना जताई जा रही है कि कैप्टन अपने विरोधियों को साधने के लिए उनके साथ ज्यादा पावर साझा कर सकते हैं। एक या दो डिप्टी सीएम की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। इसके लिए सिद्धू, रंघावा और एक किसी दलित नेता को भी कुछ दिनों के लिए बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। बताया जा रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने कैंपेन पेज पर खुद को पार्टी आलाकमान की ओर से पंजाब का अगला मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है। विवाद की मुख्य वजह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद बन रहा है। क्योंकि जो भी इस पद पर कब्जा जमाएगा, उसका टिकट सलेक्शन में काफी प्रभाव पड़ेगा, इसके साथ ही वह पंजाब का अगला सीएम बनने या चुनने के लिए सबसे अच्छी पोजीशन में रहेगा।