आरटीआई आवेदनों पर दे रहे भ्रामक जानकारी
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाले दिल्ली जल बोर्ड में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया है। हालात यह हैं कि जल बोर्ड अधिकारी आरटीआई आवेदनों का भी सीधा जवाब देने को तैयार नहीं हैं। ज्यादातर आवेदनों के आधे-अधूरे जवाब देकर टाल दिया जाता है, ताकि आम जनता के सामने सही जानकारी नहीं आ सके। मामला पूर्वी दिल्ली में जल बोर्ड द्वारा कराए गए एक विकास कार्य से जुड़ा है। इसमें अधिकारियों न केवल आधी-अधूरी और भ्रामक जानकारी दी, बल्कि अपील के समय प्रथम अपीलीय अधिकारी को भी सुनवाई के दौरान गुमराह किया। अपील की सुनवाई के दौरान एसई, ड्रेनेज, प्रोजेक्ट-4 मुकुल भंदूला भी मौजूद रहे।
ठेकेदार को फायदा पहुंचाने का आरोप
दरअसल स्वराज जनता पार्टी के अध्यक्ष ब्रिजेश शुक्ला ने दिल्ली जल बोर्ड में आरटीआई लगाकर एक काम की जानकारी मांगी थी। यह काम सीवर लाइन बिछाने और संबंधित सीवर लाइन से जोड़ने से संबंधित था। काम की अनुमानित लागत 2,54,75,054 रूपये आंकी गई थी। लेकिन इसे एक ठेकेदार कंपनी ने करीब 5 फीसदी की कम लागत से 2,42,01,301 रूपये में लिया था। लेकिन यह काम तय समय-सीमा के अंतरर्गत पूरा नहीं किया गया। सूत्रों का कहना है कि संबंधित अधिकारियों ने इस काम की लागत बाद में बढ़ा दी, जिससे सीधे तौर पर ठेकेदार कंपनी को फायदा पहुंचाया गया।
ज्यादा पैसे कम दस्तावेज
जनसूचना अधिकारी द्वारा सही जानकारी नहीं दिए जाने और ज्यादा पैसे लेकर कम दस्तावेज मुहैया कराने का मामला जब अपील में पहुंचा तो प्रथम अपीलीय अधिकारी (चीफ इंजीनियर, ड्रेनेज, प्रोजेक्ट-2) ने जनसूचना अधिकारी आरके लखेड़ा और एई-10 वीके त्यागी को लताड़ लगाई। चीफ इंजीनियर ने अपने आदेश में कहा कि आवेदक को 10 दिन के अंदर सूचना से संबंधित सभी दस्तावेज सत्यापित करके उपलब्ध कराए जाएं और उसे मांगी गई पूरी जानकारी मुहैया कराई जाए। प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने ही एक्सियन और एई को भेजे गए आधे-अधूरे दस्तावेजों पर आवेदक ने अपनी बात रखी तब संबंधित अधिकारी ने चीफ इंजीनियर को भी भ्रमित करने की कोशिश की।
अधिकारियों को झूठ का सहारा
उन्होंने कहा कि आवेदक ने सभी दस्तावेज प्राप्त करने के पत्र पर खुद हस्ताक्षर किए हैं। जब उनसे पूछा गया कि जल बोर्ड ने यह दस्तावेज डाक द्वारा आवेदक के पास भेजे तो उनके पास आवेदक के हस्ताक्षर कहां से आए, तो वह अधिकारी बगलें झांकने लगे। दरअसल आवेदक द्वारा अपनी अपील में लगाए गए सभी दस्तावेजों को सेल्फ अटेस्ट किया था। संबंधित एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के सहयोगी अधिकारी ने अपील के उन्हीं दस्तावेजों में वह पत्र निकाल कर अपने झूठ के द्वारा यह साबित करने की कोशिश की थी कि उन्होंने आवेदक के हस्ताक्षर लिए हैं, जबकि आवेदक ने ऐसे किसी पत्र पर दस्तावेज प्राप्ति के हस्ताक्षर किए ही नहीं थे।
आवेदक को भ्रमित करने का आरोप
बता दें कि आवेदक ब्रिजेश शुक्ला ने एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पत्र के मुताबिक जानकारी हासिल करने के लिए फोटोकॉपी शुल्क के रूप में 348 रूपये जल बोर्ड के जरिए सरकारी खजाने में जमा कराए। इसके बाद जनसूचना अधिकारी की ओर से आवेदक को 24 कागज कम भेजे गए और इसके साथ ही एक भी दस्तावेज को सत्यापित नहीं किया गया। आवेदक का आरोप है कि मांगी गई जानकारी नहीं दी गई और आवेदक को भ्रमित करने की कोशिश की गई। अधिकारियों के द्वारा आधी-अधूरी और भ्रामक जानकारी मुहैया कराने से संबंधित मामले में अधिकारियों द्वारा अपने पद के दुरूपयोग और सरकारी धन के दुरूपयोग व कानून के उल्लंघन को लेकर प्रथम अपीलीय अधिकारी के यहां अपील लगाई थी।