-पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब में किया खुलासा
-मुखर्जी की किताब में कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों का समर्थन
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
‘‘लंबे समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस में अब करिश्माई नेतृत्व खत्म हो गया है। पार्टी की अंतरिम अघ्यक्ष सोनिया गांधी ने पिछले समय में काफी गलत फैसले लिये हैं। जिसकी वजह से साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था।’’ कुछ इसी तरह की बातों का खुलासा पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब में किया है। हालांकि मुखर्जी की यह किताब उनके निधन के बाद आई है। मंगलवार को इस पुस्तक का लोकार्पण किया गया।
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पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणव दा की यह किताब सामने आ जाने के बाद कांग्रेस पार्टी में उस धड़े को समर्थन मिला है, जो पिछले लंबे समय से कांग्रेस नेतृत्व की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता आ रहा है। मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि कुछ वरिष्ठ नेताओं की राजनीतिक अनुभवहीनता और घमंड ने भी पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने अपनी किताब में तेलंगाना राज्य के गठन पर विरोध दर्ज कराते हुए महाराष्ट्र में पार्टी द्वारा लिये गये राजनीतिक फैसलों को भी गलत करार दिया है।
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पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का पिछले साल निधन हो गया था। उन्होंने अपनी किताब ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ में अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान हुई घटनाओं को संस्मरण के तौर पर पेश किया है। उन्होंने इसमें कांग्रेस नेतृत्व के ऊपर गंभीर आरोप लगाए हैं। मुखर्जी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बारे में कहा है कि उस दौरान पार्टी की हार की एक प्रमुख वजह लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा कर पाने में असफल रहना था।
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प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब में कहा है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गलत फैसले लिये हैं। उन्होंने लिखा है कि ‘‘मुझे लगता है कि संकट के समय पार्टी नेतृत्व को अलग दृष्टिकोंण से आगे आना चाहिए। अगर मैं सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर काम जारी रखता तो मैं गठबंधन में ममता बनर्जी को जरूर रखता। इसी तरह महाराष्ट्र को संभालने में भी गलतियां की गईं। इसकी एक वजह सोनिया गांधी की ओर से लिए गए फैसले भी थे। मैं महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख जैसे मजबूत नेता के अभाव में शिवराज पाटिल या सुशील कुमार शिंदे को वापस लाता।’’
मुखर्जी ने तेलंगाना राज्य के गठन को भी गलत बताया है। उन्होंने लिखा है कि ‘‘मुझे नहीं लगता कि मैं तेलंगाना राज्य के गठन को कभी मंजूरी देता। मुझे पूरा भरोसा है कि सक्रिय राजनीति में मेरी मौजूदगी से यह सुनिश्चित हो जाता कि कांग्रेस को वैसी मार नहीं पड़ती, जैसी कि साल 2014 के लोगसभा चुनाव में पार्टी को झेलनी पड़ी।
कांग्रेस ने खोया करिश्माई नेतृत्व
प्रणव मुखर्जी ने किताब में कहा है कि कांग्रेस अपना करिश्माई नेतृत्व खो चुकी है और उसकी पहचान भी नहीं कर पा रही है। उन्होंने लिखा है कि ‘‘मुझे लगता है कि कांग्रेस अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान करने में विफल रही है। पंडित नेहरू जेसे कद्दावर नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपने अस्तित्व को कायम रखे और एक मजबूत व स्थिर राष्ट्र के तौर पर विकसित हो। दुखद है कि अब ऐसे अद्भुत नेता नहीं हैं, जिसकी वजह से यह व्यवस्था अब औसत लोगों की सरकार बन गई है।
44 सीटों पर हुआ था आश्चर्य
पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि ‘‘यह यकीन कर पाना बेहद मुश्किल था कि कांग्रेस साल 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल 44 सीट पर सिमट गई थी। कांग्रेस एक राष्ट्रीय संगठन है, जो लोगों की जिंदगी से जुड़ा है। इसका भविष्य हर विचारवान व्यक्ति के लिए हमेशा सेचने का विषय होता है। इसलिए यह विश्वास कर पाना बेहद कठिन था कि पार्टी केवल 44 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई।
किताब पर मुखर्जी परिवार में टकराव
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की किताब के प्रकाशन को लेकर उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी और बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी के बीच टकराव हो चुका है। ट्विटर पर अभिजीत मुखर्जी ने लिखा था कि उनके पिता की किताब को उन्हें दिखाए बिना नहीं छापा जाए। दूसरी ओर शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि कोई सस्ती लोकप्रियता के लिए उनके पिता की किताब को छपने स न रोके। ऐसा करना पूर्व राष्ट्रपति का अपमान होगा।
पीएम मोदी पर विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चाहते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने विचारों से असहमति रखने वाली आवाजों को भी सुना करें। वह संसद में ज्यादा बार बोला करें। प्रधानमंत्री मोदी संसद का उपयोग अपने विचारों को फैलाकर विपक्ष को सहमत करने वाले तथा देश को सूचित करने वाले मंच की तरह किया करें।
मुखर्जी के मुताबिक, संसद में प्रधानमंत्री की उपस्थिति से संस्थान की कार्यप्रणाली में अभूतपूर्व परिवर्तन आ जाता है। जवाहरलाल नेहरू रहे हों या इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी या मनमोहन सिंह, इन पूर्व प्रधानमंत्रियों में से हर एक ने सदन के फ्लोर पर अपनी उपस्थिति महसूस कराई है। पीएम मोदी अब अपने दूसरे कार्यकाल में हैं। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और संसद में अपनी ज्यादा उपस्थिति के जरिए नेतृत्व क्षमता दिखानी चाहिए। ताकि उनके पहले कार्यकाल में बार-बार होने वाले संसदीय संकट जैसी स्थितियों से बचा जा सके।
एनडीए सरकार को बताया अहंकारी
प्रणव मुखर्जी ने लिखा है कि ‘‘मैं सत्ता और विपक्षी बेंचों के बीच उग्र व्यवहार का श्रेय सरकार के अहंकार और बेतुके व्यवहार को देता हूं। लेकिन विपक्ष भी दोषरहित नहीं है। उसने भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार दिखाया। मैं लगातार कहता रहा हूं कि व्यवधान सरकार से ज्यादा विपक्ष को नुकसान पहुंचाता है। क्योंकि विघटनकारी विपक्ष सरकार को नीचा दिखाने का नैतिक अधिकार गवां देता है। यह सरकार को अराजकता फैलने के बहाने संसदीय सत्रों को सीमित करने का अनुचित लाभ भी दे देता है।
निरंकुश शासन वाली है मोदी सरकार
पूर्व राष्ट्रपति ने लिखा है कि शासन करने का नैतिक अधिकार प्रधानमंत्री में निहित है। प्रधानमंत्री और उनके प्रशासन के कामकाज में भी पूरे राष्ट्र की समग्र स्थिति प्रतिबिंबित होती है। जहां डॉ. मनमोहन सिंह गठबंधन को बचाने के लिए चिंतित रहते थे, जो शासन पर भारी पड़ा। वहीं पीएम मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान शासन की एक निरंकुश शैली को बढ़ावा मिला, जो सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के बीच कड़वे रिश्तों के तौर पर दिखाई दी। इस सरकार के दूसरे कार्यकाल में ऐसे मुद्दों पर ज्यादा बेहतर समझ है या नहीं, यह केवल समय ही बताएगा।