खतरे में इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की जान… सरकारी तंत्र में छुपे बैठे हैं गद्दार!

-इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने किया सनसनीखेज खुलासा
-कभी जहर देकर तो कभी सांपों के द्वारा हत्या की कोशिश

एसएस ब्यूरो/ बैंगलुरू
देश के वरिष्ठ वैज्ञानिकों खास तौर पर देश के लिए सामरिक एवं तकनीकी रक्षा उपकरणों को कम कीमत पर बनाने वाले वैज्ञानिकों की जान खतरे में है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई वैज्ञानिकों की संदेहास्पद हालातों में मौत हो चुकी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के सीनियर एडवाइजर और शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. तपन मिश्रा ने यह सनसनीखेज खुलासा किया है कि उन्हें तीन साल में तीन बार जहर देकर मारने की कोशिश की जा चुकी है। डॉ. मिश्रा 31 जनवरी 2021 को रिटायर हो रहे हैं। उन्होंने भारत सरकार से उन्हें और उनके परिवार को बचाने की मांग की है।

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इससे पहले 5 जनवरी को सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने खुलासा किया था कि बाहरी लोग नहीं चाहते कि इसरो और इसके वैज्ञानिक आगे बढ़ें और कम लागत में टिकाऊ सिस्टम बनाएं। माना जा रहा है कि जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं, उससे लगता है कि विदेशी एजेंसियों के लोग भारत के सरकारी तंत्र में छिपकर इस तरह की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। ताकि भारत के अंतरिक्ष के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ते कदमों को रोका जा सके। डॉ. मिश्रा ने इसे तंत्र की मदद से किया अंतरराष्ट्रीय जासूसी हमला बताया है। उन्होंने डॉ. विक्रम साराभाई की रहस्यमय मौत का हवाला देकर केंद्र सरकार से जांच की मांग की है।

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डॉ. तपन मिश्रा ने कहा कि ‘बहुत दिन यह रहस्य छुपाये रहा। लेकिन आखिरकार इसे सार्वजनिक करना पड़ रहा है। पहली बार 23 मई 2017 को बेंगलुरु स्थित मुख्यालय में उन्हें प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान ऑर्सेनिक ट्राइऑक्साइड दिया था। ऐसा माना जा रहा है कि इसे लंच के बाद डोसे की चटनी में मिलाया था, ताकि लंच के बाद मेरे भरे पेट में रहे। फिर शरीर में फैलकर ब्लड क्लॉटिंग का कारण बने और हार्ट अटैक से मौत हो जाए। लेकिन मुझे लंच अच्छा नहीं लगा। इसलिए चटनी के साथ थोड़ा सा डोसा खाया था। इस कारण केमिकल पेट में ज्यादा देर तक नहीं रहा। फिर भी इसके असर के चलते दो साल बहुत ब्लीडिंग हुई।’ उन्होंने बताया कि जून 2017 में ही एक डायरेक्टर साथी और गृह मंत्रालय के अधिकारी ने जहर दिए जाने को लेकर आगाह किया था।
2019 और 2020 में भी हुई मारने की कोशिश
वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि ‘दूसरा हमला चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग से दो दिन पहले हुआ था। 12 जुलाई 2019 को उन्हें हाइड्रोजन साइनाइड से मारने की कोशिश की गई थी। लेकिन एनएसजी अफसर की सजगता से जान बच गई। मेरे हाईसिक्योरिटी वाले घर में सुरंग बनाकर जहरीले सांप छोड़े गए। तीसरी बार सितंबर 2020 में आर्सेनिक देकर मारने की कोशिश हुई। इसके बाद मुझे सांस की गंभीर बीमारी, फुंसियां, चमड़ी निकलना, न्यूरोलॉजिकल और फंगल इंफेक्शन समस्याएं होने लगीं।’ इस मामले में ‘एम्स के डॉ. सुधीर गुप्ता बताते हैं कि उनके करियर में आर्सेसिनेशन ग्रेड मॉलिक्यूलर ‘एएस203’ से बचने का यह पहला मामला है।’
पूर्व के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी नहीं की मदद
डॉक्टर तपन मिश्रा का कहना है कि ‘मैंने अपनी परेशानी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताई थी। लेकिन डॉ. कस्तूरीरंगन और डॉ. माधवन नायर ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। हालांकि इनके बाद पूर्व चेयरमैन किरण कुमार ने मेरी इस समस्या पर ध्यान दिया। इसके बाद भी हत्या की कोशिशें जारी रहीं। इन हमलों के का उद्देश्य सैन्य और कमर्शियल महत्व के सिंथेटिक अपर्चर रडार बनाने वाले वैज्ञानिकों को निशाना बनाना या रास्ते से हटाना है। विदेशी एजेंसियां नहीं चाहतीं कि भारत इस क्षेत्र में आगे बढ़े।
अमेरिका से तो नहीं जुड़े मामले के तार?
डॉ. मिश्रा बताते हैं कि ‘अहमदाबाद स्थित इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (सेक) में 3 मई 2018 को धमाका हुआ था। जिसमें मैं बच गया। धमाके में 100 करोड़ रुपए की लैब नष्ट हो गई। इसके बाद जुलाई 2019 में एक भारतीय-अमेरिकी प्रोफेसर मेरे ऑफिस आए। इस मामले में मुंह न खोलने के बदले में मेरे बेटे को अमेरिकी इंस्टीट्यूट में दाखिले का ऑफर दिया। मैंने मना कर दिया तो मुझे सरकार ने सेक के डायरेक्टर के पद से हटा दिया।
एनएसजी सुरक्षा के बावजूद घर में सांप
डॉ. मिश्रा ने बताया कि दो साल से उनके घर में कोबरा, करैत जैसे जहरीले सांप मिल रहे हैं। इससे निपटने के लिए हर 10 फुट पर कार्बोलिक एसिड की सुरक्षा जाली लगानी पड़ी है। इसके बावजूद सांप मिल रहे हैं। एक दिन घर में एल अक्षर के आकार की सुरंग मिली, जिससे सांप छोड़े जा रहे थे। ये लोग चाहते हैं कि मैं इससे पहले मर जाऊं या मारा जाऊं, तो सभी रहस्य दफन हो जाएंगे।