PROFESSIONAL टैक्स बढ़ाकर बैकफुट पर दिल्ली BJP

-डीजल पर वैट घटाकर फ्रंट पर खेल रहे मुख्यमंत्री केजरीवाल
-बीजेपी नेताओं को देते नहीं बन रहा कोई जवाब
-निगम चुनाव में किये वादे से बीजेपी का यू-टर्न

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं कि दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का सलाहकार कौन है। नगर निगमों के द्वारा नया प्रोफशनल टैक्स लगाकर और ट्रेड व फैक्ट्री लाइसेंस की फीस में जबरदस्त बढ़ोतरी करके बीजेपी बैकफुट पर आ गई है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार के डीजल पर वैट घटाने के बाद बीजेपी नेता भले ही इसके लिए अपनी पीठ थपथपा रहे हों। लेकिन सियासी मैदान में बीजेपी की साख में गिरावट आई है।

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बीजेपी शासित नगर निगमों ने दिल्ली वालों के ऊपर ‘प्रोफेशनल टैक्स’ के नाम से नया कर थोपा है। इसके साथ ही बीजेपी शासित नगर निगमों ने ट्रेड लाइसेंस और फैक्ट्री लाइसेंस के शुल्क में भी कई गुना तक बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है। यही नहीं इसके साथ इलैक्ट्रिसिटी टैक्स और प्रॉपर्टी हस्तांतरण पर रजिस्ट्रेशन टैक्स की दरों में भी बढ़ोतरी की गई है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने तो संपत्ति कर के फैक्टर में बदलाव करके व्यावसायिक संपत्तियों के संपत्ति कर को बढ़ाकर अतिरिक्त भार डाला है।

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नगर निगम के बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह टैक्स बढ़ोतरी इसलिए की गई है, क्योंकि नगर निगमों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं हैं। जबकि हालात यह हैं कि आए दिन तीनों निगमों से करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार की खबरें आती रहती हैं। यह कर बढ़ाकर तीनों नगर निगमों ने करीब तीन सौ से चार सौ करोड़ रूपये की उगाही करने का लक्ष्य रखा है। जबकि प्रोफेशनल टैक्स वसूलने के लिए तीनों नगर निगमों के पास को प्लान ही नहीं है।

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दूसरी ओर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डीजल पर बढ़ाया गया वैट वापस ले लिया है। खास बात यह है कि अब दिल्ली सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि अब दिल्ली में डीजल पूरे देश से सस्ता है। प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नेता डीजल के बढ़े दामों पर अब तक केजरीवाल सरकार को घेरते आ रहे थे। लेकिन टैक्स घटाए जाने के बाद पूरी बीजेपी दबाव में आ गई है।

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दिल्ली के साथ हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमाएं लगती हैं। दोनों ही राज्यों में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ऐसे में बीजेपी के सामने केजरीवाल सरकार ने चुनौती खड़ी कर दी है कि वह भी बीजेपी शासित प्रदेशों में डीजल पर वैट के दाम कम कराएं। दूसरी ओर प्रोफेशनल टैक्स के साथ दूसरे करों में बढ़ोतरी के बाद बीजेपी नेता इसको जस्टिफाई करने के लिए कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं।
आने वाले अगले डेढ़ साल में दिल्ली में तीनों नगर निगमों के चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रोफेशनल टैक्स के नाम पर नया कर थोपा जाना बीजेपी को चुनाव में भारी पड़ सकता है। खास बात है कि प्रोफेशनल टैक्स पिछले 10 साल से नगर निगमों के बजट में हर साल कमिश्नरों की ओर से प्रस्तावित किया जाता रहा है।
बीजेपी 2007 से नगर निगम की सत्ता में है और हर साल प्रोफेशनल टैक्स के प्रस्ताव को रद्द कर दिया जाता था। लेकिन इस बार बिना बजट के ही बीजेपी शासित नगर निगमों ने प्रोफेशनल टैक्स को दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के हाउस से लागू कराने के लिए पास करा दिया है। जबकि उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम भी इसी रास्ते पर चल पड़े हैं।
निगम चुनाव में किये वादे से बीजेपी का यू-टर्न
दिल्ली में 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह दिल्ली वालों के ऊपर कोई नया टैक्स नहीं थोपेंगे। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा था कि बीजेपी न तो कोई नया टैक्स लगाएगी और नाही किसी टैक्स को बढ़ाएगी। उस समय प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू और प्रदेश बीजेपी के प्रदेश पदाधिकारी मौजूद थे। लेकिन सीएम केजरीवाल पर यू-टर्न लेने का अरोप लगाने वाली बीजेपी ने अब टैक्स के मामले में खुद यू-टर्न ले लिया है।
नहीं चला प्रदेश अध्यक्ष का ‘आदेश’
प्रोफेशनल टैक्स लगाने और दूसरे टैक्स बढ़ाने के मामले में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता का ‘आदेश’ भी काम नहीं आया। इसके चलते एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर दिल्ली बीजेपी का सलाहकार कौन है? प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने 26 जुलाई को दोपहर 1.06 बजे ट्वीट किया था कि ‘‘मैंने दक्षिणी दिल्ली की महापौर से प्रोफशनल टैक्स हटाने के लिए बात कर ली है और वह इसके लिए सहमत हैं।’’ लेकिन इसके बावजूद दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के हाउस में इस टैक्स के साथ दूसरे करों की बढ़ोतरी के प्रस्ताव पारित कर दिये गए। प्रदेश अध्यक्ष के इस ट्वीट को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
बैठे-बिठाए दिया प्रोफशनल टैक्स का मुद्दा
प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने आम आदमी पार्टी के लिए बैठे-बिठाए प्रोफशनल टैक्स का मुद्दा दे दिया है। इस नये टैक्स को लागू करने के लिए दिल्ली सरकार की मंजूरी लेनी भी जरूरी होगी। अब जैसे ही इसे निगम की ओर से दिल्ली सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, मुख्यमंत्री केजरीवाल इसे ‘जनता का मुद्दा’ बनाकर वापस लौटा सकते हैं। ऐसे में यदि दोबारा नगर निगम इसे मंजूरी के लिए दिल्ली सरकार के पास भेज भी देता है तो यह लागू तो हो जाएगा, लेकिन आम आदमी पार्टी को चुनाव के लिए एक मुद्दा मिल जाएगा।
नौकरीपेशा लोगों पर पड़ेगी सबसे ज्यादा मार
प्रोफेशनल टैक्स लगाने के लिए नगर निगमों की कोई तैयारी नहीं है। किसी भी नगर निगम के पास ऐसा कोई डाटा नहीं है, जिससे करदाताओं का सही अनुमान लगाया जा सके। ऐसे में बीजेपी शासित नगर निगम अंधरे में तीर चला रहे हैं। कर विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोफेशनल टैक्स का मतलब केवल प्रोफेशनल्स से नहीं है। इसके दायरे में हर वह व्यक्ति आता है जिसकी मासिक या सालाना आय एक तय सीमा से ज्यादा हो। फिर चाहे वह व्यापारी हो या नौकरीपेशा व्यक्ति। या फिर वकील, आर्किटेक्ट या अन्य कोई पेशेवर व्यक्ति। ऐसे में प्रोफेशनल टैक्स की सबसे ज्यादा मार आयकर की तरह केवल नौकरीपेशा लोगों पर ही पड़ेगी।
निगमों की छवि सुधारना है बड़ी चुनौती
दिल्ली बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तीनों नगर निगमों की छवि सुधारने की है। सामान्य लोगों में नगर निगम की जो छवि है वह बेहद खराब है। फिलहाल कई ऐसे अधिकारी हैं जो निगमों के बड़े पदों पर बैठे हैं। इन अधिकारियों के ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। उत्तरी दिल्ली नगर निगम में एमएचओ अशोक रावत इसका बड़ा उदाहरण है। पिछले दिनों हाउस ओर स्थायी समिति की बैठक में विपक्ष के नेताओं ने गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग की। लेकिन बीजेपी नेताओं का ऐसे चार्जशीटेड अधिकारियों के पक्ष में आकर बचाव करने से पार्टी की छवि और ज्यादा खराब हो रही है।

कुछ इस तरह बढ़ाए गए टैक्स
व्यावसायिक संपत्तियों के यूज फैक्टर बदल जाने से सिनेमा हॉल, मॉल, बरात घर और शैक्षणिक संस्थानों को दो से चार गुणा अधिक संपत्तिकर देना होगा, वहीं, ए व बी श्रेणी में 10 वर्ग मीटर तक के स्थान के लिए ट्रेड लाइसेंस लेने के लिए जहां 500 रुपये वार्षिक का शुल्क देना होता था वह बढ़कर अब 3450 हो जाएगा। 10 से 20 वर्ग मीटर तक में यह 8625 और 20 वर्ग मीटर से ज्यादा में यह शुल्क 144 रुपये वर्ग मीटर के हिसाब से लगेगा। हालांकि यह शुल्क 57 से हजार से अधिक नहीं हो सकेगा। इसी तरह सी व डी श्रेणी में यह 10 वर्ग मीटर तक 500 के बजाय 2300, 10 से 20 वर्ग मीटर तक 5750 और अधिकतम 46 हजार रुपये तक का शुल्क लगेगा। ई, एफ, जी और एच श्रेणी में 10 वर्ग मीटर तक 500 के बजाय 1150 रुपये का वार्षिक शुल्क लगेगा। 10 से 20 वर्ग मीटर तक 2875 और अधिकतम 34 हजार 500 का वार्षिक शुल्क लगेगा।
इसी तरह पर फैक्ट्री लाइसेंस के लिए नए आवेदन का शुल्क 550 के बजाय एक हजार हो जाएगा, वहीं पंजीकरण का एकमुश्त शुल्क दो हजार के बजाय फैक्ट्री में लगे उपकरण के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में तय होगा। इसमें एक हॉर्स पॉवर से पांच हॉर्स पॉवर तक दो हजार रुपये वार्षिक, 6 से 15 हॉर्स पॉवर (एचपी) तक चार हजार और 16 से 50 होर्स पॉवर से ज्यादा पर 25 हजार रुपये और इससे ज्यादा होर्स पॉवर पर 50 हजार रुपये का शुल्क लगेगा। इसके साथ ही प्रति इकाई लगने वाला स्थायी शुल्क 80 रुपये वार्षिक के बजाय एक हजार रुपये चुकाना होगा।