BJP अध्यक्ष के सामने निगमों को मजबूत नेतृत्व देने की चुनौती!

-कमजोर साबित हुए तीनों महापौर, अधिकारियों पर नहीं बनी पकड़
-ट्रांसफर-पोस्टिंग में लगे रहे अधिकारी, नहीं लगा मनमानी पर अंकुश

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने शुक्रवार 5 जून को अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाल ली। मौसम ने भी साथ दिया और प्रदेश कार्यालय में ताजपोशी का बड़ा आयोजन किया गया। लेकिन ताजपोशी के समय इस खुशगवार मौसम ने आदेश गुप्ता को भविष्य के कई संदेश भी दिए हैं। संगठन से जुड़ी पृष्ठभूमि, केंद्रीय नेतृत्व के साथ पुरानी नजदीकी और संघ की सिफारिश से उन्हें अध्यक्ष पद की कुर्सी तो मिल गई है। लेकिन आने वाले दिनों में उन्हें बहुत कुछ साबित करके भी दिखाना होगा।

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दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता के सामने सबसे बड़ी समस्या तीनों नगर निगमों की व्यवस्था को दुरूस्त करने की होगी। जिस तरह से बीते सवा साल में तीनों नगर निगमों में पदों की बंदरबांट, भ्रष्टाचार और ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेल ने जोर पकड़ा है। उसे खत्म करना आसान नहीं होगा। बीते करीब सवा साल में तीनों महापौर बिलकुल बेअसर साबित हुए हैं। पार्किंग माफिया व विज्ञापन माफिया के साथ अधिकारियों का गठजोड़ निगम पर हावी हुआ है। ऐसे में बीजेपी अध्यक्ष्ज्ञ के सामने निगमों की छवि को सुधारने की सबसे बड़ी चुनौती मुंह खोले खड़ी है।

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दिल्ली में साल 2022 में अप्रैल महीने में नगर निगम चुनाव होने हैं। इस लिहाज से चुनाव के लिए करीब डेढ़ साल ही बचा है। माना जा रहा है कि आदेश गुप्ता के नगर निगम के अनुभव के अनुभवों को देखते हुए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि नगर निगम के अनुभव की बात करें तो आदेश गुप्ता इस मामले में दिल्ली बीजेपी के करीब दो दर्जन नेताओं के सामने कहीं नहीं ठहरते। कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें अध्यक्ष बनाने में संघ अधिकारियों के साथ नजदीकी और बिना गुटबाजी के काम करने की आदत की अहम भूमिका रही है। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह तीनों नगर निगमों को मजबूत नेतृत्व कैसे प्रदान करेंगे।

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उत्तरी दिल्ली नगर निगम
बीते करीब एक-डेढ़ साल में राजधानी के तीनों नगर निगमों में से उत्तरी दिल्ली नगर निगम की हालत सबसे ज्यादा खराब हुई है। दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के मुकाबले उत्तरी दिल्ली नगर निगम में कर्मचारियों का वेतन बीते तीन महीनों से नहीं मिला है। महापौर अवतार सिंह बेहद कमजोर साबित हुए हैं। अधिकारियों पर उनकी पकड़ ही नहीं है। पूर्व आयुक्त वर्षा जोशी सदन की बैठकों में से उठकर चली जाती थीं। अब जो अधिकारी बचे हैं वह ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेल में जुटे हैं। दो उपायुक्तों के वापस जाने के बाद बचे दो-तीन अधिकारियों ने उन पदों को भी आपस में बांट लिया है।

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इन अधिकारियों ने पद हथियाने के लिए बिना कारण पब्लिसिटी एंड इनफॉरमेशन विभाग के निदेशक को हटा दिया। अस्पताल और डिस्पेंसरीज बंद पड़ी थीं लेकिन आयुष विभाग के निदेशक को हटा दिया गया। देशभर में लॉकडाउन था और आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे उत्तरी दिल्ली नगर निगम का प्रॉपर्टी टैक्स पोर्टल बीते तीन महीनों से बंद पड़ा रहा। लेकिन महापौर, नेता सदन और स्थायी समिति अध्यक्ष कुछ नहीं कर सके। निगम के स्वास्थ्य विभाग में गंभीर घोटाले होते रहे, लॉबिंग में जुटे डेपुटेशन पर आए कुछ निगम अधिकारी ईमानदार अधिकारियों को हटाकर घोटालों के आरोपियों को निगम के महत्वपूर्ण पदों पर बैठाते रहे। लेकिन बीजेपी के निगम के नेता चुपचाप यह तमाशा देखते रहे।

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यदि बीजेपी को निगम की सत्ता में वापस आना है तो अब प्रदेश अध्यक्ष को महापौर से लेकर दूसरे पदों की कमान कुछ मजबूत हाथों में सोंपनी होगी। क्योंकि नगर निगम और निगम के नेताओं की खराब छवि के छींटे बीते विधानसभा चुनाव के नतीजों पर देखे जा चुके हैं। इस समय भी यदि निगम अधिकारियों के मनमानी पर अंकुश नहीं लगाया गया तो बीजेपी की निगम की सत्ता में वापसी भी मुश्किल हो सकती है।
2. दक्षिणी दिल्ली नगर निगम
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में कर्मचारियों को वेतन तो अभी समय से मिल रहा है। लेकिन यहां बीजेपी नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों का गठजोड़ हावी है। हाल ही में किए गए 6 पार्किंग के टेंडर में नगर निगम को करोड़ों रूपये की चपत लगाने की खबरें आई हैं। खास बात है कि महापौर सुनीता कांगड़ा निगम की छवि सुधारने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुई हैं। खुद उन्हीं के वार्ड से कर्मचारियों को बिना ड्यूटी पर बुलाए उनकी अटेंडेंस लगाने और फिर सरकारी पैसे की बंदरबांट की खबरें आई हैं। यह केवल एक वार्ड की बात नहीं है। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के कई वार्ड से कर्मचारियों की झूठी हाजिरी लगाकर, उनका वेतन उठाने के सबूत भी सामने आए हैं। सरकारी पैसे की इस बंदरबांट में निगम के ऊंचे पदों पर बैठे बीजेपी नेताओं के शामिल होने की खबरें भी आई हैं।

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आश्चर्य की बात है कि नगर निगम में 6 पार्किंग के ठेकों में घोटाला हो गया और महापौर सुनीता कांगड़ा को पता ही नहीं चला। यदि इस तरह के नेता निगम का नेतृत्व करेंगे तो बीजेपी को आने वाले दिनों में सत्ता गंवाने के लिए किसी और बहाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में पार्किंग माफिया और भ्रष्ट अफसरों का गठजोड़ कुछ इस तरह हावी है कि स्थायी समिति अध्यक्ष और नेता विपक्ष के सवाल उठाने के बावजूद पार्किंग टेंडर में हुए घोटाले की निगम आयुक्त आयुक्त के द्वारा अभी जांच ही की जा रही है। जबकि दूसरे अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने हर काम आयुक्त के हस्ताक्षर और परामर्श के साथ किया है। आश्चर्य की बात है कि महापौर, नेता सदन और दूसरे नेता अधिकारियों पर पकड़ बना ही नहीं पा रहे हैं।
दूसरी ओर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में पार्किंग माफिया के नाम से विख्यात एक नेता खुद भी स्थायी समिति अध्यक्ष बनने की दौड़ में शामिल हो गया है। ऐसे में यदि उसी का अध्यक्ष बना दिया जाता है तो आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि निगम की क्या हालत होगी। जिस विभाग से भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा खबरें आ रही हैं निगम के उसी आरपी सेल में एक अधिकारी लंबे समय से टिका पड़ा है। खास बात है कि यह अधिकारी ट्रांसफर होने के बावजूद दूसरे विभागों में नहीं गया और निगम के नेता इसकी गतिविधियों पर भी अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
ऐसे में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष के सामने बड़ी चुनौती यह है कि वह इन कमजोर नेताओं को हटाकर मजबूत नेताओं को नेतृत्व करने का मौका दें। यदि वह ऐसा करते हैं तो पार्टी के कुछ दूसरे नेताओं के हित प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की कार्यशैली के आड़े आएंगे। ऐसे में आदेश गुप्ता को अपनी पार्टी के नेताओं के साथ भी कई बार दो-दो हाथ करने होंगे।
3. पूर्वी दिल्ली नगर निगम
पूर्वी दिल्ली नगर निगम को पहले से ही कमजोर निगम माना जाता है। इस निगम के हालात भी कुछ कम खराब नहीं हैं। निगम आयुक्त और दूसरे अधिकारी पूर्वी दिल्ली के बीजेपी के नेताओं को कुछ समझते ही नहीं है। निगम की छवि सबसे ज्यादा खराब महापौर को लेकर हुई है। महापौर अंजू कमलकांत पूर्वी दिल्ली नगर निगम की छवि को ठीक नहीं कर पाई हैं। उनके पति के ऊपर बार-बार यह आरोप लगते रहे हैं कि महापौर का सारा काम वही देखते हैं। सरकारी कामों में टांगे अड़ाने, निजी गाढ़ी पर महापौर के बोर्ड का इस्तेमाल की बहुत सी शिकायतें आती रही हैं।
पूर्वी दिल्ली निगम का आरपी सेल बुरी तरह से बदनाम है। पार्किंग माफिया ने सारे पार्किंग्स पर कब्जे कर रख हैं। विज्ञापन विभाग निगम की कमाई का बड़ा साधन बन सकता है। लेकिन यहां भी स्थिति उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली जैसी है। पूर्वी दिल्ली की महापौर, नेता सदन और स्थायी समिति अध्यक्ष निगम की छवि सुधारने में नाकाम साबित हुए हैं। दिल्ली बीजेपी को विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 6 सीटें पूर्वी दिल्ली से ही मिली हैं। लेकिन इसमें निगम के नेताओं का कोई योगदान नहीं माना जा सकता।
ऐसे में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता को बड़े ही फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे। क्योंकि 2022 के नगर निगम चुनाव में वह सब बातें महत्वपूर्ण साबित होंगी, जो कदम वह अब उठाएंगे। सबसे ज्यादा जरूरी है कि प्रदेश नेतृत्व सबसे पहले निगम के कुछ ऐसे नेताओं को छांटे जो वास्तव में निगम की छवि को सुधार सकते है। निगम की आय बढ़ाना और व्यवस्थाओं को सुचारू रखना सबसे ज्यादा जरूरी रहेगा।