-दबाव के बीच अपनी टीम में अपनी पसंद के ज्यादातर लोगों को शामिल करने में सफल रहे सचदेवा
-फिर भी ना उम्र की सीमा रही, ना ही पार्टी का बंधन और ना ही एक पद-एक जिम्मेदारी का नियम
-दिल्ली प्रदेश बीजेपी की कार्यकारिणी की घोषणा के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं में चर्चाओं का दौर शुरू
-कई निगम पार्षदों व असफल पूर्व पार्षदों को जिम्मेदारी दिये जाने पर उठाये जा रहे सवाल
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्लीः 02 अगस्त।
मंगलवार को दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रदेश कार्यकारिणी एवं जिला अध्यक्षों की घोषणा के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। हालांकि ज्यादातर नये लोगों को जिम्मेदारी मिली है, लेकिन कुछ लोगों के नामों पर पार्टी के बीच आपत्तियां जताई जा रही हैं। पार्टी में यह चर्चा भी जोरों पर है कि कई निगम पार्षदों को संगठन के अंदर जिम्मेदारी दी गई है। जबकि उनके स्थान पर अन्य लोगों को जिम्मेदारी दी जा सकती थी। हालांकि माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा भारी दबाव के बीच अपनी पसंद के ज्यादातर लोगों को अपनी टीम में शामिल करने में सफल रहे हैं।
उपाध्यक्षों की बात करें तो सात में से दो के नामों पर ज्यादा उंगली उठाई जा रही है। इनमें से पहली योगिता सिंह वर्तमान निगम पार्षद हैं और दूसरी सुनीता कांगड़ा पूर्व निगम पार्षद हैं। कहा जा रहा है कि योगिता सिंह को नगर निगम से संबंधित जिम्मेदारियों पर लगाया जाना चाहिए था। वहीं सुनीता कांगड़ा दक्षिणी दिल्ली की मेयर रह चुकी हैं और उस दौरान वह कई विवादों में रही थीं। सुनीता को हाल ही में हुए निगम चुनाव में अनुसूचित जाति की सामान्य सीट से विशेष तौर पर चुनाव लड़ाया गया था, लेकिन वह अपनी खराब छवि के कारण चुनाव हार गई थीं। इसके बावजूद उन्हें प्रदेश में उपाध्यक्ष बनाया गया है। बताया जा रहा है कि उनके लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक ब़ड़े पदाधिकारी ने सिफारिश की है।
तीन महामंत्रियों में कमलजीत सहरावत के नाम पर सवाल उठाये जा रहे हैं। कमलजीत सहरावत दूसरी बार चुनाव जीतकर निगम पार्षद बनी हैं। उन्हें पार्टी ने दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के लिए सदस्य भी बनाया है। कमलजीत स्थायी समिति की अध्यक्ष पद की भी प्रबल दावेदार हैं। इसके बावजूद उन्हें प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी दिया जाना पार्टी नेताओं की बड़ी मेहरबानी मानी जा रही है। पार्टी में चर्चा है कि यदि इसी तरह एक व्यक्ति को ज्यादा जिम्मेदारियां दी जानी हैं तो बाकी कार्यकर्ताओं के लिए अवसर कैसे मिलेगा।
दिल्ली प्रदेश के 8 मंत्रियों में से किशन शर्मा, सारिका जैन और सोना कुमारी के नामों पर भी कार्यकर्ताओं के द्वारा सवाल उठाये जा रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि तीनों ही लोगों का जमीनी जुड़ाव नहीं है। बताया जा रहा है कि किशन शर्मा को प्रदेश प्रभारी विजयंत पांडा की सिफारिश पर नियुक्त किया गया है। सारिका जैन अब तक दिल्ली बीजेपी की प्रवक्ता रही थीं अब उन्हें प्रदेश मंत्री बनाया गया है। जबकि सोना कुमार को तो पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता और पदाधिकारी जानते ही नहीं हैं।
युवा मोर्चा
युवा मोर्चा के अध्यक्ष शशि यादव के नाम को लेकर भी आपत्तियां जताई जा रही हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि शशि यादव फिलहाल निगम पार्षद हैं तो संगठन में किसी अन्य युवा नेता को जिम्मेदारी दी जा सकती थी। कारण है कि नगर निगम की सत्ता में आम आदमी पार्टी है और उससे लड़ने के लिए नगर निगम में भी बहुत ज्यादा मेहनत की जरूरत है।
महिला मोर्चा
महिला मोर्चा की अध्यक्ष ऋचा पांडे के नाम पर भी पार्टी कार्यकर्ताओं को आपत्ति है। लोगों का कहना है कि ऋचा पांडे पिछले दिनों आम आदमी पार्टी को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई थीं। उन्हें इतनी जल्दी पार्टी नेताओं ने महिला मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया, जबकि बीजेपी में कई महिला नेता वर्षों से मेहनत करती आ रही हैं, उन्हें यह मौका नहीं दिया गया। महिला मोर्चा में ही महामंत्री बनाई गई प्रियल भारद्वाज को लेकर भी चर्चाएं जोरों पर हैं। बताया जा रहा है कि प्रियल भारद्वाज की खासियत यह है कि उनके पति आईआरएस ऑफिसर हैं। बस इसी के चलते पहले नई दिल्ली जिला अध्यक्ष प्रशांत शर्मा ने अपने जिला में उन्हें रखा था और वह महिला मोर्चा में प्रदेश पदाधिकारी बन गई हैं।
प्रवक्ता मंडली
दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ताओं में भी ज्योतजीत सभरवाल और न्योमा गुप्ता को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। इन दोनों को ही दिल्ली बीजेपी में कोई नहीं जानता है, दूसरी बात यह है कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया में भी दोनों को कोई नहीं जानता है। खुद प्रदेश पदाधिकारी और प्रवक्ता ही नहीं जानते और इन दोनों के नामों पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि ज्योतजीत सभरवाल की खासियत यह है कि वह जितेंद्र सिंह शंटी के पुत्र हैं।
टेंट वाले को जिला चलाने की जिम्मेदारी!
जिला अध्यक्षों की बात करें तो 14 में 3 नेताओं के ऊपर पार्टी में सवाल उठाये जा रहे हैं। इनमें राजीव राणा, सुनील कक्कड़ और विरेंद्र गोयल के नाम शामिल हैं। राजीव राणा को नई दिल्ली जिला का अध्यक्ष बनाया गया है। उनके बारे में कहा जा रह है कि केवल टेंट के काम की वजह से राजीव को जिले की जिम्मेदारी दी गई है। कहा यह भी जा रहा है कि राजीव राणा के पास इससे पहले मंडल और फिर जिले में पदाधिकारी की जिम्मेदारी रह चुकी है लेकिन वह बीच में ही छोड़कर भागते रहे हैं। बताया जा रहा है कि नियुक्ति की घोषणा के बाद बुधवार को उनसे मिलने के लिए पार्टी के गिने लोग ही पहुंचे। सुनील कक्कड़ के बारे में कहा जा रहा है कि वह पार्टी के साथ बगावत करके आम आदमी पार्टी में जा चुके हैं और फिर वापस आ चुके हैं। हालांकि सुनील कक्कड़ एक बार पहाड़गंज वार्ड से बीजेपी के निगम पार्षद भी रह चुके हैं। वहीं केशव पुरम जिला के अध्यक्ष बनाये गये विरेंद्र गोयल के बारे में कहा गया है कि उनके ऊपर बड़ी मेहरबानी की गई है। उनकी पत्नी फिलहाल निगम पार्षद हैं और उन्हें अब जिले की कमान सोंपी गई है।
ना उम्र की सीमा और ना पार्टी का बंधन
पार्टी में चर्चा जोरों पर है कि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा की टीम की घोषणा के साथ ही पुराने सभी नियम-कायदे और कानून टूट गये हैं। पहले जहां 40 और 50 वर्ष से ऊपर वालों को जिलों और कई नियुक्तियों से दूर रखा जा रहा था, लेकिन अब उम्र-दराज लोगों को भी नई टीम में जिम्मेदारियां दी गई हैं। वहीं कई निगम पार्षदों और उनके पतियों को भी टीम में जिम्मेदारी दी गई है। यहां तक कि दूसरी पार्टियों से आये हुए लोगों को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से नवाजा गया है।