एक बार फिर से सड़क पर आई डीडीसीए के पदाधिकारियों की लडाई

-रोहन जेटली और उनके चहेतों पर डीडीसीए की छवि खराब करने का आरोप
-5 जुलाई को होगी डीडीसीए की आम सभा, उठ सकते हैं विवादित मुद्दे

विजय कुमार / नई दिल्ली, 3 जुलाई।
वर्षों बाद एक बार फिर से दिल्ली डिस्ट्रिक्ट एंड क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के पदाधिकारियों की लड़ाई कोटला और कोर्ट से चलते हुण् सड़को पर आ गई हैं। हमेशा की तरह इस बार भी आरोप वही पुराने हैं कि डीडीसीए के अध्यक्ष अपनी दबंगई के साथ राज कर रहे है। वह चाहे क्रिकेट की बात हो या कोई अन्य मसला खुद ही निर्णय करते हैं। यह सब डीडीसीए में 90 के दशक से पूर्व से ही होता आया है। इस बार यह लड़ाई अध्यक्ष रोहन जेटली और उसके साथी 15 निदेशकों के साथ सचिव सिद्वार्थ साहिब वर्मा और गिने चुने निदेशको के बीच की है। जबकि डीडीसीए के अन्य सदस्य इस लडाई का मजा लूट रहे है।
इन्हीं बातों को लेकर डीडीसीए के एक पूर्व निदेशक संजय भारद्वाज ने डीडीसीए के अध्यक्ष रोहन जेटली और उनके साथी 15 से अधिक डारेक्टरों पर आरोप लगाया है कि वह अपनी मनमानी कर रहें है। यह डारेक्टर क्रिकेट में टीमों के चयन से लेकर, मैचों और कोटला में होने वाले सभी कार्यक्रम अपने व्यक्तिगत स्वार्थो और खूद के फायदे के लिए कर रहें है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह डारेक्टर अपने चहेते लोगो को नौकरी तक दे रहे है जबकि वहां पहले से ही 100 से अधिक कर्मचारी कार्यरत है।
उनका दूसरा आरोप है कि भारतीय क्रिकेट कंटृल बोर्ड बीसीसीआई के निर्देशों को भी नहीं मानते। वैसे नियमों के अनुसार किसी भी एसोसिएशन में क्रिकेट और उससे जुडे कार्य सचिव की देख रेख में होते है, जैसा कि बीसीसीआई में भी है। मगर दिल्ली के सभी कार्य रोहन जेटली और उसके डारेक्टर करते है। जबकि सचिव पद पर मौजूद सिद्वार्थ साहिब वर्मा को कार्य नहीं करने दिया जा रहा।
संजय भारद्वाज का यह भी आरोप है कि रोहन जेटली के सहयोगियों ने सिद्वार्थ के हस्ताक्षर कर आम बैठक तक बुलाने का निर्देश सदस्यों को भेज दिया। यह बैठक 5 जुलाई को बुलाई गई है, जिसके खिलाफ वह कोर्ट पहुंचे हुए है। यहीं नहीं उन्होंने रोहन जेटली के खिलाफ एक महिला की शिकायत पर भी पुलिस द्वारा शिकायत दर्ज ना किए जाने पर रोष प्रकट किया। ऐसे कई और मामलो को लेकर भी आरोप लगाए गए है।
मालूम हो कि ऐसे ही झगडे नब्बे के दशक में सुनील देव, मनमोहन सूद के समय भी हुआ करते थे। उस दौरान सचिव मनमोहन सूद और सुनील देव में से कोई एक होता था, मगर बीसीसीआई की बैठक में जाता कोई ओर था। यह बात एक बार फिर से दोहरानी शुरू हो गई है। ऐसे में देखना यह होगा, कितना दम दोनों की बाजुओ में है। फिलहाल तो रोहन जेटली और सचिव की लड़ाई अब पांच जुलाई की आमसभा में ही पता चल सकेगी।