-भारत में टैक्स टेरजिज्म के रूप में सामने आ रहा जीएसटी
-विकास वर्मा
राहुल गांधी ने जब ळैज् का मतलब गब्बर सिंह टैक्स बोला था तो उनके धुर विरोधी ही नहीं बहुत से लोग हंसते थे। मुझे भी लगता था कि राहुल गांधी ने यह कुछ ज्यादा बोल दिया है। लेकिन GST के ताजा स्वरूप को सचमुच गब्बर सिंह टैक्स ही कहा जाएगा। यह भारत में टैक्स टेररिज्म के रूप में सामने आया है। अनाज और दैनिक खाने-पीने के सामानों, मकान किराया आदि पर GST लगाकर इस सरकार ने गरीब से गरीब लोगों के चूल्हे तक गब्बर सिंह टैक्स को पहुंचा दिया है। यह संविधान में भारत के लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के ठीक उलट है।
यह टैक्स टेररिज्म आम भारतीय लोगों को बर्बाद कर देगा। GST हर भारतीय लोगों के जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करने वाला है। गरीब-गुरबों के लिए यह टैक्स टेररिज्म बर्बादी का रास्ता तैयार कर दिया है। देश में भय, भूख और भ्रष्टाचार को खत्म करने का वादा करने वाली बीजेपी ने साबित कर दिया है कि उसके लिए यह सिर्फ एक नारा मात्र था। उसने भी जनता के साथ धोखेबाजी की है। GST गरीबों का निवाला भी छीन लेगा।
लेकिन इन सबसे खाए-पीए-अघाए हुए वर्ग को क्या लेना देना है? वह तो मोदी सरकार के हर फैसले को मास्टर स्ट्रोक… किसी चमत्कार… या ईश्वरीय वरदान से कम नहीं मानते। और थोड़ी सी आलोचना को भी बर्दाश्त करने के बजाए गाली-गलौज पर उतारू हो जाते हैं। अपने राजनीतिक खेल में बीजेपी ने देश के बहुसंख्यक समुदाय को धर्म का ऐसा अफीम पिला दिया है जो शायद अंततः भारत की आर्थिक बर्बादी के बाद भी नहीं टूटे।
दरअसल, मोदी सरकार ने GST के दायरे में अनाज, खाने-पीने के दैनिक सामग्रियों को जानबूझकर शामिल किया है। मोदी सरकार को भी मालूम है कि यह फैसला उसे अलोकप्रिय करने वाली है। इससे उसके बहुत से समर्थक भी नाराज़ होंगे। लेकिन फिर भी इस फैसले को लागू करने का कारण मोदी सरकार की वह आर्थिक मजबूरी है जो बहुसंख्यक भारतीयों को दिख नहीं रहा है या देखने नहीं दिया जा रहा है। आर्थिक कुप्रबंधन के कारण देश की अर्थव्यवस्था रसातल में पहुंचा दी गई है। अब देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए… श्रीलंका में आर्थिक आपातकाल जैसी स्थिति से देश को बचाने के लिए भारत के आम लोगों के चूल्हे तक गब्बर सिंह टैक्स (GST) को पहुंचा दिया गया है।
सवाल यह है कि मोदी सरकार के आठ साल के शासन में भारत इस आर्थिक हालत में कैसे पहुंच गया? अर्थव्यवस्था अगर इस नाजुक स्थिति में है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी बनती है? किन फैसलों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था रसातल में जा पहुंचीं है? इस सबका खुलासा अगले पोस्ट में। तब तक आप भी ज़रा सोचिए।
(वरिष्ठ पत्रकार विकास वर्मा की फेसबुक वाल से साभार)