-रोटेशन प्रणाली के तहत बदल जायेगी वार्डस के आरक्षण की स्थिति
-पुरूषों के हिस्से होंगे ज्यादातर महिलाओं वाले निगम वार्ड
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली में ज्यादातर निगम पार्षद चुनावी रेस से बाहर होने जा रहे हैं। तीनों नगर निगम में वार्डस की स्थिति बदलने जा रही है। क्योंकि माना जा रहा है कि अप्रैल 2022 में दिल्ली में निगम चुनाव होने हैं। इसे देखते हुए राज्य चुनाव आयोग भी तैयारियों में जुट गया है और प्रमुख राजनीतिक दलों की सक्रियता भी बढ़ गई है। माना जा रहा है कि महिलाओं के लिए आरक्षित वार्डस में से ज्यादातर सामान्य श्रेणी में आ जायेंगे, जबकि अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित वार्डस अनुसूचित जाति के वर्ग के अन्य उम्मीदवारों के लिए खाली हो जायेंगे।
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राज्य चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक आयोग ने चुनाव के लिए रोटेशन के लिए खाका तैयार कर लिया है और अगले 10 दिन में इसकी घोषणा की जा सकती है। इसके तहत जो सीटें पहले महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, वो अब सामान्य सीट के रूप में तब्दील हो जाएंगी। इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों का स्वरूप भी बदलेगा और पिछली बार जो सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, वो इस बार अनुसूचित जाति के किसी भी उम्मीदवार के लिए खुली होंगी। बता दें कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर केवल महिलाएं ही चुनाव लड़ सकती हैं, जबकि समान्य और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर महिला या पुरूष कोई भी चुनाव लड़ सकता है।
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अधिकारी ने बताया कि अनुसूचित जाति की सीटों का आरक्षण 2011 की जनगणना के अनुसार ही होगा। आरक्षण का फॉर्मूला भी 2017 के निगम चुनाव जैसा ही रहेगा। नगर निगम में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, अतः कुल 272 सीटों में से महिलाओं के हिस्से 136 से कुछ ज्यादा ही सीट आती हैं। तीनों नगर निगमों में पूरे निगम क्षेत्र में अनुसूचित जाति की आबादी के मुताबिक कुल 26 फीसदी के हिसाब से अनुसूचित जाति की सीटें आरक्षित की जानी हैं।
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह दिल्ली के राज्य चुनाव आयोग ने सीटों के रोटेशन को लेकर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को सीटों के रोटेशन के संबंध में सोमवार 17 जनवरी तक अपनी राय देने के लिए कहा था। अब राजनीतिक दलों की ओर से राज्य चुनाव आयोग में अपने विचार सोंप दिये हैं। हालांकि रोटेशन लागू होने की वजह से इस बार सभी राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के टिकट काटने से नाराजगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि रोटेशन प्रणाली का कुछ फायदा भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है, क्योंकि सत्ता में होने की वजह से उसके उम्मीदवारों के खिलाफ एंटीइनकमबेंसी कम हो सकती है।
2017 में आरक्षित सीटों पर रहा आप का जलवा
बता दें कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों के मामले में 2017 के निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी का जलवा रहा था। बीजेपी ने पूर्वी नगर निगम में कुल 64 में 47 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कुल 11 सीटों में से सात सीटों पर बीजेपी के पार्षदों ने जीत हासिल की थी।
लेकिन बीजेपी यह कमला उत्तरी दिल्ली नगर निगम में नहीं दिखा पाई थी। यहां 104 सीटों में से 20 सीट आरक्षित थीं, जिनमें से केवल छह सीटों पर बीजेपी के पार्षद जीते थे। बाकी 14 सीटों पर आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के पार्षद जीते थे। इसके बाद कांग्रेस के कई पार्षद भी आप में चले गये। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की 104 में से आरक्षित 20 सीट में से आठ सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी जीते थे।
बीजेपी को रोटेशन का सहारा!
रोटेशन प्रणाली लागू होने की वजह से दिल्ली बीजेपी के नेताओं को कुछ सहारा मिलने की उम्मीद बढ़ी है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि रोटेशन के चलते पार्टी के ज्यादातर चेहरे बदल जायेंगे। इसके बाद एंटीएनकमबेंसी का असर कुछ कम हो सकता है। उन्होंने कहा कि पार्टी ने 2017 के निगम चुनाव में अपने सभी मौजूदा पार्षदों के टिकट काट दिये थे। जिसकी वजह से भाजपा ने 272 सीटों में पहली बार सर्वाधिक 181 सीटों पर जीत हासिल की थी। अब सीटों का आरक्षण बदलने से कई पार्षद अपने आप ही चुनावी दौड़ से बाहर हो जाएंगे। भाजपा इन सीटों पर नए उम्मीदवार उतारेगी, जिससे पार्टी को लाभ मिलने की उम्मीद है।