-यहां आकर हॉट एयर बैलून की सैर कर सकेंगे श्रद्धालु
-लेज़र शो और इलेक्ट्रिक आतिशबाज़ी होंगे आकर्षण का केंद्र
हेमा शर्मा/ नई दिल्ली,
भारत देश को त्योहारों का देश कहा जाता है। अक्टूबर-नवंबर आते ही त्योहारों की झड़ी लग जाती है। इन्हीं त्योहारों में देव दीपावली का त्योहार भी विशेष स्थान रखता है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है। इस साल 19 नवंबर को देव दीपावली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। इस मौके पर भगवान महादेव की नगरी काशी 15 लाख दीपों से जगमगायेगी। देव दीपावली को ‘त्रिपुरारी’ पूर्णिमा या ‘त्रिपूरोत्सव’ के नाम से भी जाना जाता है।
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वैसे तो देव दीपावली बहुत ही भव्य तरीके से मनाई जाती है लेकिन इस साल वाराणसी में हॉट एयर बैलून से नयापन देखने को मिलेगा जो आकर्षण का केंद्र होगा। इसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार ने पर्यटन विभाग को दी है। पायलट प्रोजेक्ट बतौर इसका सफल ट्रायल भी किया जा चुका है। बता दें कि ये आयोजन रेती के ऊपर होगा जिसकी जानकारी और टिकट वाराणसी के चौकाघाट के सांस्कृतिक संकुल में पर्यटन विभाग से प्राप्त की जा सकती है।
हॉट एयर बैलून के अलावा भी बहुत कुछ
हॉट एयर बैलून के साथ इस बार देव दीपावली के मौके पर लेज़र शो और इलेक्ट्रिक आतिशबाजी से चार चांद लग जायेंगे। बताया जा रहा है कि इस बार 15 लाख दीपों की रोशनी से पूरा काशी जगमगा उठेगा। दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का भी भव्य आयोजन होगा। देव दीपावली वाले दिन गंगा के घाट, यमुना के घाट व अन्य घाटों का दृश्य अत्यधिक मनमोहक होता है। इस दिन दीपों की श्रृंखला से घाटों पर एक अलग ही छटा देखने को मिलती है मानो आसमान के तारे ज़मीन पर उतर आए हों।
क्यों मनाते हैं देव दीपावली?
आचार्य रामगोपाल शुक्ल के अनुसार पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अंत किया था, उनके पुत्र कार्तिकेय ने भोलेनाथ की सहायता से तारकासुर का वध किया था जिसने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। तब उनका प्रतिशोध लेने के लिए तारकासुर के तीनों पुत्रों ने घोर तप किया और ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अमर होने का वर माँगा। ब्रह्मा जी ने उन्हें ये वर देने से इंकार करते हुए कोई और वर माँगने के लिए कहा जिसपर उन तीनों ने कहा कि आप हमारे लिए तीन पुरियों का निर्माण कर दें।
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जब तीनों पूरियां अभिजित नक्षत्र में एक ही पंक्ति में खड़ी हों और कोई शांत अवस्था में असंभव रथ और असंभव बाण से मारे तो हमारी मृत्यु हो। ब्रह्म जी ने उन्हें वरदान दे दिया। तब सभी देवताओं ने अपना-अपना सहयोग भोलेनाथ को दिया जिसके उपरांत उन्होंने अपने पशुपात अस्त्र से तीनों पूरो का अभिजित नक्षत्र में अंत कर दिया। उनके वध की ख़ुशी में सभी देवताओं ने दिए जलाकर उत्सव मनाया था। कहा जाता है कि इस दिन सारे देवता गंगा घाट पर जाकर दिवाली मनाते हैं।