कनाडा से अन्नपूर्णा माता की वापसी… वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर होगी प्राण प्रतिष्ठा

-100 साल बाद हुई विदेश से वापसी

हेमा शर्मा/ नई दिल्ली
100 साल से भी ज्यादा समय के बाद कनाडा से माता अन्नपूर्णा की वापसी हो गई है। कनाडा से आई इस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ मंदिर में की जायेगी। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा प्रधान मंत्री के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ द्वारा 15 नवंबर को काशी में की जाएगी। इससे पहले इस मूर्ति की शोभा यात्रा निकाली जायेगी। 11 नवम्बर 2021 को दिल्ली से शोभा यात्रा शुरू होगी। 12 नवंबर को सोरों (कासगंज) में रुकेगी 13 नवंबर को कानपुर और 14 नवंबर को अयोध्या पहुंचेगी।

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इसके पश्चात यह यह शोभा यात्रा 15 नवंबर को यात्रा का समापन वाराणसी में होगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 15 नवंबर को काशी में माता अन्नपूर्णा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। बता दें कि 1976 से अब तक भारत में बाहर से 55 मूर्तियां आ चुकी हैं उनमें से 42 मूर्तियां 2014 के बाद यानी भाजपा के शासन काल में ही भारत लाई गई हैं।

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माना जाता है की भगवान शिव ने काशी में मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी जिस वजह से काशी में मां अन्नपूर्णा का विशेष महत्व है। भगवान शिव की नगरी काशी को अन्नपूर्णा नगरी भी कहा जाता है। धर्म के जानकार बताते हैं कि मूर्ति के पुनः भारत वापस आने से पूरे सनातन धर्मियो में हर्ष की लहर है जो हिंदुत्व की जीत है।
आप भी जानें क्या है माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा का रहस्य
अद्भुत, अलौकिक, अविस्मरणीय काशी माता अन्नपूर्णा एक बार फिर से अपने घर वापस आ रही हैं। काशी का गौरव लौट रहा है। मां अन्नपूर्णा अपनी धरती में वापसी कर रही हैं। 100 साल से भी ज्यादा समय पहले 1913 की बात है वाराणसी से देवी अन्नपूर्णा की एक प्राचीन मूर्ति चुराई गई थी और देश के बाहर तस्करी की गई थी। काशी में पिछले वर्ष “देव दीवाली“ को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा की अपनी काशी में वापसी की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि यह प्रतिमा हमारी आस्था का प्रतीक है। हमारी ऐतिहासिक विरासत है। और माता अन्नपूर्णा का अपनी धरती पर वापस आना हर भारतवासी के लिए एक अनोखी सौगात है।
मूर्ति का इतिहास
उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित काशी एक पौराणिक नगरी है। काशी विश्व के उन शहरों में से एक है जिनकी स्थापना सबसे पहले हुई थी। भारत की यह नगरी विश्व भर में प्रसिद्ध है। वरुणा और असी नदियों के बीच में स्थित काशी नगरी में अनेक सांस्कृतिक विरासत मौजूद है। उन्हीं सांस्कृतिक विरासत में से एक है माता अन्नपूर्णा की प्राचीन प्रतिमा।
माता अन्नपूर्णा की मूर्ति का इतिहास काफी पुराना है। 100 साल पहले वाराणसी के घाट से माता अन्नपूर्णा की प्राचीन मूर्ति चोरी हो गई थी। मूर्ति के शोध में सामने आया कि मैकेंजी ने 1913 में भारत की यात्रा की थी और उसी के बाद से माता अन्नपूर्णा की मूर्ति काशी से कनाडा पहुंची थी। दरअसल आर्टिस्ट दिव्या मेहरा ने जब प्रतिमा के पीछे की कहानी पर रिसर्च किया तो पता चला कि नॉर्मन मेकन्जी जब भारत आया था तो तभी उसने अन्नपूर्णा की इस प्रतिमा को देखा था।

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पीबॉडी एक्सेस से जुड़े डॉक्टर वी शाह ने मूर्ति की पहचान हिंदुओं की देवी अन्नपूर्णा के तौर पर की थी। 1936 में मैकेंजी ने इस मूर्ति की नसीहत करायी और इसे संग्रहालय में शामिल किया। इस मूर्ति को कनाडा के “रेजिना विश्वविद्यालय“ की आर्ट गैलरी में रखा गया है। इस मूर्ति में माता अन्नपूर्णा एक हाथ में खीर और दूसरे में चम्मच लिए हुए हैं।

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माता अन्नपूर्णा को हिंदू “माइथोलॉजी“ में अन्न और संपदा की देवी कहा गया है। बनारस में काशी विश्वनाथ से कुछ ही दूर माता अन्नपूर्णा का मंदिर स्थित है। तीनों लोकों में अन्नपूर्णा को खाद्यान्न की माता कहा जाता है। कहा जाता है कि माता ने स्वयं शिव को खाना खिलाया था। साल में एक बार अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा को सार्वजनिक रूप से 1 दिन के लिए दर्शनार्थ निकाला जाता है तब भक्त उनकी इस अद्भुत छटा का दर्शन करते हैं। विश्व भर से देवी अन्नपूर्णा के दर्शन के लिए लोग वाराणसी स्थित इस मंदिर में आते हैं।
अवैध तरीके से कनाडा पहुंची थी मूर्ति
बता दें कि पिछले वर्षों में 5 से 25 नवंबर तक कनाडा में हेरिटेज वीक का आयोजन किया गया था, हेरिटेज वीक के दौरान भारतीय मूल की कलाकार दिव्या मेहरा की नजर इस मूर्ति पर पड़ी। मूर्ति को देखने के बाद आर्टिस्ट ने मामला उठाया कि इसे अवैध रूप से कनाडा में ले जाया गया है। काफी पड़ताल के बाद यह बात सामने आएगी अन्नपूर्णा की मूर्ति को चुरा कर कनाडा ले जाया गया था।
विश्वविद्यालय के संग्रह से अन्नपूर्णा की प्रतिमा को पिछले वर्ष अंतरिम राष्ट्रपति और विश्वविद्यालय के उप कुलपति थॉमस चेस ने कनाडा में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया को 19 नवंबर को एक समारोह में यह मूर्ति सौंपी थी। 1981 में कनाडा में जन्मी दिव्या मेहरा दिल्ली में रह रही हैं उन्ही के प्रयासों से यह मूर्ति अब देश में वापस आई है। अब भारतीय आस्था की प्रतिमा अपने मूल स्थान में वापसी करेगी।