करवा चौथ व्रत से पूरी होती पति की लंबी आयु की कामना… मिलते धन-धान्य और समृद्धि

-परंपराओं के साथ जुड़ी आधुनिकता की तस्वीर
         आचार्य रामगोपाल शुक्ल

हेमा शर्मा/ नई दिल्ली
उत्तर भारत में करवा चौथ के व्रत का विशेष महत्व है। इस त्योहार को शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। यह एक ऐसा पारंपरिक त्यौहार है जिसमें आधुनिकता की झलक देखने को मिलती है। यह त्योहार मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है लेकिन इस पर्व की लोकप्रियता पूरे देश भर में बढ़ गई है।

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आचार्य रामगोपाल शुक्ल बताते हैं कि करवा चौथ का पर्व सुहागिन महिलाओं के द्वारा अपने पति की लम्बी आयु की कामना के लिए किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 24 अक्टूबर रविवार के दिन मनाया जाएगा। गौरतलब है कि पिछले 5 वर्षों के बाद इस साल करवा चौथ रविवार के दिन पड़ रहा है। जिसकी वजह से व्रत रखने वालों को चंद्र देव के साथ-साथ सूर्य देव की भी असीम कृपा प्राप्त होगी और बहुत लाभकारी सिद्ध होगा।

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परंपरा के अनुसार यह व्रत सूर्योदय से पहले सासु मां द्वारा लाई गई सरगी खा कर आरम्भ होता है और चंद्र देव के दर्शन के साथ चंद्रमा को अर्घ्य देने और पूजा अर्चना करके समापन किया जाता है। इस व्रत के उत्साह का अंदाजा राजधानी दिल्ली सहित सभी छोटे-बड़े शहरों में सजे हुए बाजारों को देखकर लगाया जा सकता है। जहां व्रत से सम्बन्धित सामानों जैसे कलश, छन्नी, पूजा क़ी सजी हुई थाली, करवा चौथ व्रत कथा की पुस्तकें और सोलह श्रृंगार से बाजार सजे हैं। खरीदारी के लिए महिलाओं की भीड़ बाजारों में उमड़ी हुई है।

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व्रत की सुंदरता तब मन मोह लेती है जब घर की सुहागिन औरतें चाहे वो युवा हों या बुजुर्ग अपने पारंपरिक रीति -रिवाजों से सज -धज कर सोलह श्रृंगार कर दोपहर को करवा चौथ माई की कथा सुनती हैं। रात में अपनी छतों व बालकनियों से चंद्र देव की पूजा अर्चना कर अपने पति के मुख को छन्नी में देखकर उनके हाथ से जल पीती हैं। इसके पश्चात घर के बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं।
इस त्योहार का सभी महिलाओं को पूरे साल भर बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है। क्योंकि एक तो यह व्रत पति की लम्बी आयु के लिए किया जाता है और दूसरा शॉपिंग की शौकीन महिलाएं दिल खोलकर इस दिन के लिए शॉपिंग करती हैं। यह त्योहार पूरे विधि विधान से निर्जला व्रत करके किया जाता है।
व्रत की विधिः
करवा चौथ व्रत को पूरे विधि विधान के साथ मां पार्वती व भगवान शिव, कार्तिकेय एवं गणेश सहित पूरे शिव परिवार का पूजन कर किया जाता है। सुहागिन महिलाएं माता पार्वती से अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए करवे में जल भरकर कथा सुनती हैं और रात को चंद्र देव की पूजा करके अपने पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं।
पूजन मुहूर्तः
आचार्य रामगोपाल शुक्ल बताते हैं कि इस वर्ष करवा चौथ व्रत रविवार 24 अक्टूबर, 2021 को सुबह 6 बजकर 1 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 5 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। पूजन का शुभ मुहूर्त रविवार को शाम 6 बजकर 55 मिनट से रात्रि 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।
करवा चौथ व्रत कथाः
आचार्य रामगोपाल शुक्ल का कहना है कि वैसे तो करवा चौथ के व्रत के संबंध में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन एक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में करवा नाम की एक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी। उसका पति नदी में स्नान करने गया। नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। उसने पत्नी को सहायता के लिए पुकारा। करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और तत्काल धागे से मगरमच्छ को बांध दिया। उसका सिरा पकड़कर करवा पति के साथ यमराज के पास तक पहुंच गई। यमराज के साथ प्रश्न उत्तर के बाद करवा के साहस को देखते हुए यमराज को उसके पति को वापस करना पड़ा।
जाते समय उन्होंने करवा को सुख-समृद्धि के साथ वर भी दिया- ’जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा।’ इस कथा में करवा ने अपने सशक्त मनोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की। मान्यता है कि जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी।
व्रत रखने का अर्थ संकल्प लेना होता है। प्रतीक के रूप में करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं अन्न-जल त्याग कर यह संकल्प लेती हैं और अपनी इच्छा शक्ति की परख करती हैं। यह पर्व संकेत देता है कि स्त्री अबला नहीं, बल्कि सबला है और वह भी अपने परिवार को बुरे वक्त से उबार सकती है।
इसके अलावा एक और कथा बहुत प्रचलित है, जो कि कुछ इस प्रकार से है-
प्रचलित किवदंतियों के अनुसार बहुत समय पहले एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद करके घर आए तो देखा कि उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की यह हालत देखी नहीं गई और उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह ऐसा लग रहा था कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई ने अपनी बहन को बताया कि कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन ने खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई उसने पहला टुकड़ा मुंह में डाला तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिला, जिससे वह बौखला गई।
तब उसकी एक भाभी ने उसे सच्चाई से अवगत कराया कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा ने निश्चय किया कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रही। उसकी देखभाल करती रही। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती गई।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आया तो उसकी सभी भाभियों ने करवा चौथ का व्रत रखा। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आई तो उसने प्रत्येक भाभी से ’यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ कहते हुए ऐसा आग्रहकिया, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने को कहकर चली गई।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आई तो करवा ने उससे भी यही बात दोहराई। तब उस भाभी ने उसे बताया कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही यह शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उससे निवेदन करना। वहीं तुम्हारे पति को जिंदा कर सकती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आई तो करवा ने उनसे भी सुहागिन बनाने का आग्रह किया, लेकिन वह टालमटोली करने लगी। इसे देख करवा रोने लगी और अपनी भाभी से अपने पति को जिंदा करने के लिए बार-बार कहने लगी। आखिर में उसकी तपस्या को देखकर उसकी भाभी पसीज गई और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल दिया। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठा। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल गया।