-सपा को मिलेगा एनसीपी और आरएलडी का साथ
-मुस्लिम को डिप्टी सीएम बनाने पर होगी सहमति
पूनम सिंह/ लखनऊ
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे ही सियासी दलों का जोड-तोड़ भी सामने आता जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने जहां ब्राह्मण मतदाताओं पर डोरे डालने शुरू कर दिये हैं, वहीं समाजवादी पार्टी अपने परंपरागत यादव एवं मुस्लिम मतदाताओं को तोलने में जुटी है। खास बात है कि इस बार सांसद असद्उद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहाद- ए-मुस्लमीन (एआईएमआईएम) भी यूपी विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने जा रही है। माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं को गोलबंद करने के लिए इस बार ओवैसी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव हाथ मिला सकते हैं। दूसरी ओर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल का गठजोड़ भी समाजवादी पार्टी के साथ होने का रास्ता खुलता जा रहा है।
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दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों में से करीब 130 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमानों का वोट निर्णायक साबित होता है। इनमें से ज्यादातर सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई वाले इलाके और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं। हालांकि इन सभी सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत का दावा नहीं किया जा सकता। यदि मुस्लिम उम्मीदवारों के लिहाज से देखें तो उत्तर प्रदेश में ऐसी करीब 50 सीट हैं, जहां केवल मुस्लिम उम्मीदवार ही जीत हासिल कर सकते हैं। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में यह गणित भी फेल साबित हुआ था। लेकिन फिलहाल असदुदद्दीन ओवैसी की नजर इन्हीं मुस्लिम बहुलता वाली सीटों पर है।
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बताया जा रहा है कि ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाला भागीदारी संकल्प मोर्चा, एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। खबर यह भी है कि यदि सपा इस मोर्चे में शामिल होती है तो सपा के मुख्यमंत्री के साथ कुल तीन उपमुख्यमंत्री बनाये जायेंगे। इनमें एक मुस्लिम उप-मुख्यमंत्री भी शामिल होगा। हालांकि अब तक ओमप्रकाश राजभर पांच साल में 20 मुख्यमंत्री बनाने की बात करते रहे हैं। हालांकि ओमप्रकाश राजभर ने भी सपा को मोर्चे में शामिल होकर विधानसभा चुनाव लड़ने का आह्वान किया है।
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ओवैसी ने खुलेआम यह शर्त रखी है कि अगर समाजवादी पार्टी यूपी में गैर भाजपा सरकार बनने पर भागीदारी मोर्चे के किसी वरिष्ठ मुस्लिम एमएलए को उप मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हो तो उनकी पार्टी और मोर्चे का सपा से गठबंधन हो सकता है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने कहा है कि भागीदारी संकल्प मोर्चा समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार है मगर इसमें शर्त यह रहेगी कि सरकार बनने पर उप मुख्यमंत्री मोर्चे के किसी वरिष्ठ मुस्लिम विधायक को बनाया जाए। एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष एक बार फिर अगस्त महीने की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में होंगे। माना जा रहा है कि इस दौरान अखिलेश और आवैसी की मुलाकात हो सकती है।
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बता दें कि आवैसी ने हाल ही में विधान सभा चुनाव के मद्देनजर मुरादाबाद व आसपस के इलाकों में पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलकर संगठन को मजबूत करने पर चर्चा की थी। बताया जा रहा है कि आवैसी मुस्लिम वोटर्स के बीच अपनी पार्टी की पैठ और मुस्लिम मतदाता बहुल सीटों पर सियासी माहौल का जायजा लेने के लिए बार-बार उत्तर प्रदेश के दौरे कर रहे हैं। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव में 6 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद से आवैसी हौसला बढ़ा हुआ है और वह लगातार विभिन्न राज्यों में अपनी मुस्लिम केंद्रित राजनीति को चमकाने में जुटे हैं।
अगस्त महीने की शुरूआत में होने वाले अपने दौरे में ओवैसी प्रयागराज, फतेहपुर, कौशाम्बी और आसपास के अन्य जिलों में कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। इसके अलावा इसी दौरान वह बुद्धिजीवियों के अलग-अलग समूहों के साथ बैठकें करेंगे। इनमें खासतौर पर मुस्लिम, दलित, व पिछड़े वर्ग के वकील, अधिकारी, डाक्टर, इंजीनियर व अन्य प्रेफेशनल भी शामिल रहेंगे। एआईएमआईएम के नेताओं का दावा है कि कि यूपी में संगठनात्मक ढांचा खड़ा हो गया है।
दरअसल आवैसी की नजर उत्तर प्रदेश की करीब 18 फीसदी मुस्लिम आबादी पर है। एआईएमआईएम ने सभी 75 जिलों में अपने जिला अध्यक्ष बना दिये गये हैं। समाजवादी पार्टी के प्रति पहले से ही मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव रहा है। ऐसे मेंं यदि औवैसी, अखिलेश और ओमप्रकाश राजभर का मोर्चा मिलकर लड़ते हैं तो मुस्लिम वोटर्स बिखरने से बच जायेंगे। दूसरी ओर यादवों सहित अन्य पिछड़ा वर्ग के करीब 37 फीसदी वोटर्स में से भी ज्यादातर वोट इस गठबंधन की झोली में आ सकते हैं। हालांकि सपा के साथ गठबंधन इस बात पर अटक सकता है कि मोर्चे के संयोजक ओम प्रकाश राजभर पहले ही कह चुके हैं कि अगर उनके मोर्चे की सरकार बनती है तो प्रदेश में हर साल नया मुख्यमंत्री होगा यानि पांच साल के कार्यकाल में प्रदेश में पांच मुख्यमंत्री होंगे।
अखिलेष का सभी दलों को एकजुट होने का आह्वान
अखिलेष यादव ने हाल में कहा है कि बीजेपी को हराना है तो सभी छोटे दलों को एकजुट होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूपी के सभी छोटे दलों के लिए समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाने का विकल्प खुला है। उन्होंने यह भी कहा कि बसपा और कांग्रेस को पहले यह तय करना चाहिए कि उनकी लड़ाई समाजवादी पार्टी के साथ है या बीजेपी के साथ? अखिलेष ने कहा कि कुछ दल पहले से ही समाजवादी पार्टी के साथ हैं और कुछ दल आने वाले दिनों में सपा के साथ आ जायेंगे।
सपा के साथ एनसीपी मैदान में
शरद पवान के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। पिछले सप्ताह सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी मुलाकात की थी। दूसरी ओर एनसीपी के महासचिव केके शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष उमाशंकर यादव ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि हम समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इस बाबत सपा प्रमुख अखिलेश यादव से भी बात हो गई है और अब केवल सीटों पर तालमेल होना बाकी है। उन्होंने कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन करना गलत है पर यदि इच्छा से कोई धर्म परिवर्तन कर रहा है तो इसमें किसी को क्या आपत्ति है? जल्दी ही प्रदेश भर में ‘प्रदेश बचाओ संविधान बचाओ’ आंदोलन की शुरुआत होगी, जिसमें किसानों और नौजवानों पर फोकस किया जाएगा।
भाईचारा सम्मेलनों के साथ आरएलडी की शुरूआत
आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल ने भी भाईचारा सम्मेलनों की शुरूआत कर दी है। पहला भाईचारा सम्मेलन 27 जुलाई को मुजफ्फर नगर के खतौली में आयोजित किया गया। ठीक इससे पहले रविवार 25 जुलाई को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने नई दिल्ली में जयंत चौधरी से मुलाकात की। बताया जा रहा है कि इस मुलाकात के दौरान आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा की गई। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में भी लोकसभा चुनाव की तरह सपा को आरएलडी का साथ मिलेगा। बता दें कि अखिलेश यादव बसपा, कांग्रेस जैसे किसी भी बड़े दल के साथ हाथ मिलाने से पहले ही मना कर चुके हैं।
बसपा एवं कांग्रेस से दूरी
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती पहले ही अपनी पार्टी के अकेले लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। उन्होंने कहा है कि पंजाब को छोड़कर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में बीएसपी अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी। पंजाब में बीएसपी का गठबंधन शिरोमणि अकाली दल के साथ है। अतः बीएसपी का मोर्चे में शामिल होना मुश्किल नजर आ रहा है। क्योंकि अखिलेश और मायावती अब दोबारा एक साथ चुनाव में नहीं उतरने वाले हैं। दूसरी ओर मोर्चे में शामिल एआईएमआईएम ने कांग्रेस से दूरी बनाई हुई है। ओवैसी के संगठन के नेताओं का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस एक डूबता हुआ जहाज है। अतः उसके साथ कोई गठबंधन नहीं किया जायेगा। ऐसे में आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों को बिखरने से बचाने के लिए केवल सपा और एआईएमआईएम और मोर्चा में शामिल दल ही एकजुट हो सकते हैं।
न सांसद और न जिला पंचायत अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 18 फीसदी बताई जाती है। प्रदेश की करीब 125 सीटों पर मुसलमानों का दबदबा बताया जाता है। लेकिन एक खास बात यह है कि हाल ही में सूबे में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में एक भी मुस्लिम जिला पंचायत का अध्यक्ष नहीं चुना जा सका है। यूपी में कुल 75 जिले हैं। इनमें से बीजेपी के 66 जिला पंचायत अध्यक्ष चुनकर आये हैं सपा केवल पांच जिलों तक सिमट कर रह गई। वहीं राष्ट्रीय लोक दल और राजा भैया की जनसत्ता दल को एक-एक जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर जीत हासिल हुई। वहीं दो निर्दलीय भी जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
दूसरी ओर यदि बात 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो राज्य की 80 सीटों में से एक भी मुस्लिम नेता चुनाव जीतकर सांसद नहीं बन पाया था। 80 में से 73 सीटें अकेले बीजेपी और इसके गठबंधन में शामिल दलों ने जीती थीं। खास बात यह भी है कि बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारा था। ऐसा ही हाल ही में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी किया गया और बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था।
सपा-बसपा बिखराव से इन मुस्लिम बहुल सीटों पर जीती थी बीजेपी
साल 2017 के चुनावी नतीजे आने के बाद सबसे ज़्यादा चर्चा देवबंद सीट की रही थी। यहां से भाजपा उम्मीदवार ब्रजेश ने क़रीब तीस हज़ार वोटों से जीत हासिल की थी। इस सीट पर दूसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के माजिद अली रहे थे जिन्होंने 72,844 वोट हासिल किए जबकि तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की माविया अली रहे जिन्होंने 55,385 मत हासिल किए थे। इसके अलावा मुरादाबाद नगर सीट भी भाजपा की झोली में आई थी। यहां से समाजवादी पार्टी के तत्कालीन विधायक यूसुफ़ अंसारी को बीजेपी के रीतेश कुमार गुप्ता ने क़रीब बीस हज़ार वोटों से हराया था। इस सीट पर तीसरे नंबर पर बसपा के अतीक़ सैफ़ी रहे जिन्होंने 24,650 वोट हासिल किये थे।
मुरादाबाद की ही मुस्लिम बहुल कांठ सीट पर भाजपा के राजेश कुमार चुन्नू ने 76,307 वोट लेकर सपा के अनीसुर्रहमान को 2348 मतों से हराया था। इस सीट पर तीसरे नंबर पर बसपा के मोहम्मद नासिर रहे थे जिन्हें 43,820 मत मिले। फ़ैज़ाबाद की रुदौली सीट से बीजेपी के रामचंद्र यादव ने सपा के अब्बास अली ज़ैदी को क़रीब तीस हज़ार वोटों से हराया था। इस सीट पर बहुजन समाजवादी पार्टी के फ़िरोज़ ख़ान उर्फ़ गब्बर ने 47 हज़ार वोट हासिल हुए थे। शामली ज़िले की थाना भवन सीट से भाजपा के सुरेश कुमार ने 90,995 मत पाकर 74,178 पाने वाले बसपा के अब्दुल वारिस ख़ान को हराया था। इस सीट पर दूसरे नंबर पर राष्ट्रीय लोकदल के जावेद राव रहे जिन्होंने 31,275 मत हासिल किए।
उतरौला सीट से भाजपा के राम प्रताप ने 85,240 वोट पाकर 56,066 मत पाने वले सपा के आरिफ़ अनवर हाशमी को हराया था। बिजनौर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले मीरापुर विधानसभा क्षेत्र से फरीदाबाद के पूर्व सांसद व भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य अवतार सिंह भड़ाना ने जीत दर्ज की थी। हालांकि भड़ाना की जीत का अंतर बेहद कम रहा था। बीजेपी के भड़ाना को 69035 वोट मिले जबकि दूसरे नंबर रहे एसपी के लियाकत अली को 68842 वोट।
गाजियाबाद की लोनी भी एक ऐसी ही सीट है जहां मुस्लिम आबादी अच्छी खासी संख्या में है। इस सीट से बीजेपी के नंद किशोर गुर्जर ने जीत दर्ज की थी। गुर्जर को 113088 वोट मिले जबकि दूसरे नंबर पर रहे बीएसपी के जाकिर अली को 70275 वोट ही मिल पाये। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के परवेज़ अहमद 44,799 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे। यूपी के पूर्वांचल में जौनपुर भी ऐसी ही सीट है। यहां मुस्लिम आबादी का वोट लाखों में है और कांग्रेस के नदीम जावेद की जीत को लेकर तमाम पार्टियां भी आश्वस्त नजर आ रही थीं लेकिन बीजेपी के गिरीश चंद्र यादव ने उन्हें 12 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। गिरीश चंद्र यादव को 90324 वोट मिले जबकि नदीम को 78040 वोट मिले थे।