एक्ट में संशोधन के जरिये केंद्र ने किया दिल्ली सरकार के पर कतरने का काम!

-केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को लोकसभा में पेश किया उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने वाला विधेयक
-विधेयक उप-राज्यपाल को देता है कई विवेकाधीन शक्तियां, विधानसभा से पारित क़ानूनों पर भी होंगी लागू

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
केंद्र की मोदी सरकार दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के पर कतरने वाला प्रस्ताव लायी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से सोमवार को यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया। प्रस्तावित क़ानून यह सुनिश्चित करता है कि मंत्री परिषद (या दिल्ली कैबिनेट) के फ़ैसले लागू करने से पहले उप-राज्यपाल की राय के लिए उन्हें ’ज़रूरी मौक़ा दिया जाना चाहिए।’ इसका अर्थ हुआ कि मंत्रिमंडल को कोई भी क़ानून लागू करने से पहले उप-राज्यपाल की ’राय’ लेना ज़रूरी होगा. इससे पहले विधानसभा से क़ानून पास होने के बाद उप-राज्यपाल के पास भेजा जाता था।

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1991 में संविधान के 239एए अनुच्छेद के ज़रिए दिल्ली को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया था. इस क़ानून के तहत दिल्ली की विधानसभा को क़ानून बनाने की शक्ति हासिल है लेकिन वह सार्वजनिक व्यवस्था, ज़मीन और पुलिस के मामले में ऐसा नहीं कर सकती है। दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार बीजेपी शासित केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजधानी को लेकर लिए गए कई प्रशासनिक मामलों को चुनौती दे चुकी है।

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दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021 को सोमवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने पेश किया। यह विधेयक 1991 के अधिनियम के 21, 24, 33 और 44 अनुच्छेद में संशोधन का प्रस्ताव करता है। गृह मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि 1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 समय से प्रभावी काम करने के लिए कोई संरचनात्मक तंत्र नहीं देता है। बयान में कहा गया है कि “साथ ही कोई आदेश जारी करने से पहले किन प्रस्तावों या मामलों को लेफ़्टिनेंट-गवर्नर को भेजना है इस पर भी तस्वीर साफ़ नहीं है।“

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1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 कहता है कि उप-राज्यपाल के सभी फ़ैसले जो उनके मंत्रियों या अन्य की सलाह पर लिए जाएंगे, उन्हें उप-राज्यपाल के नाम पर उल्लिखित करना होगा। यानी एक प्रकार से इसको समझा जा रहा है कि इसके ज़रिए उप-राज्यपाल को दिल्ली सरकार के रूप में परिभाषित किया गया है। वहीं दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने बीजेपी पर दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करने का आरोप लगाया है। इस मामले में बीजेपी का कहना है कि दिल्ली सरकार और एलजी पर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद प्रस्तावित विधेयक आम आदमी पार्टी शासित सरकार के ’असंवैधानिक कामकाज़’ को सीमित करेगा।
कामकाज पर सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है व्यवस्था
उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच कामकाज़ का मामला न्यायालय तक जा चुका है। चार जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि मंत्रिमंडल पर एलजी को अपने फ़ैसले के बारे में ’सूचित’ करने का दायित्व है और उनकी ’कोई सहमति अनिवार्य नहीं है।’ 14 फ़रवरी 2019 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधायी शक्तियों के कारण एलजी मंत्रिमंडल की सलाह से बंधे हुए हैं, वह सिर्फ़ अनुच्छेद 239एए के आधार पर ही उनसे अलग रास्ता अपना सकते हैं। इस अनुच्छेद के अनुसार, अगर मंत्रिमंडल की किसी राय पर एलजी के मतभेद हैं तो वह इसे राष्ट्रपति के पास ले जा सकते हैं। न्यायालय ने कहा था कि इस मामले में एलजी राष्ट्रपति के फ़ैसले को मानेंगे।
दिल्ली की जनता ने खारिज किया तो शक्तियों में कटौतीः केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया है कि “दिल्ली की जनता के ख़ारिज करने के बाद बीजेपी (विधानसभा में 8 सीटें, एमसीडी उप-चुनाव में 0) आज लोकसभा में एक विधेयक के ज़रिए चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करना चाह रही है। विधेयक संवैधानिक पीठ के फ़ैसले के विपरीत है। हम बीजेपी के असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी क़दम की कड़ी निंदा करते हैं।“ इसके बाद अगले ट्वीट में उन्होंने लिखा कि “बिल कहता है- 1. दिल्ली के लिए एलजी का मतलब ’सरकार’ होगा। फिर एक चुनी हुई सरकार क्या करेगी? 2. सभी फ़ाइलें एलजी के पास जाएंगी। यह संवैधानिक पीठ के 4.7.18 फ़ैसले के खिलाफ़ है, जो कहता है कि एलजी को फ़ाइलें नहीं भेजी जाएंगी। चुनी हुई सरकार सभी फ़ैसले लेगी और फिर फ़ैसले की कॉपी एलजी को भेजेगी।“
चुनाव से पहले पूर्ण राज्य… बाद में एलजी ही सरकारः सिसोदिया
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा है कि “चुनाव के पहले बीजेपी का घोषणापत्र कहता है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाएंगे। चुनाव जीतकर कहते हैं दिल्ली में एलजी ही सरकार होंगे।“ इस विधेयक का विरोध जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी किया है। उमर अब्दुल्ला ने अरविंद केजरीवाल के विरोध वाले ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा है कि ’’2019 में आम आदमी पार्टी ने जम्मू-कश्मीर पर केंद्र के फ़ैसले का समर्थन किया था, जिसमें राज्य के सारे हक़ ले लिए गए थे। इसके बावजूद मैं केंद्र सरकार के उस विधेयक का विरोध करता हूँ, जिससे दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को कमज़ोर किया जा रहा है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले और सत्ता चुनी हुई सरकार के हाथ में रहे न कि एलजी के पास।’’
आप को मिला कांग्रेस का साथ
साल 2013 में कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके 49 दिन सरकार चला चुके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक बार फिर कांग्रेस का साथ मिला है। प्रस्तावित विधेयक पर दिल्ली कांग्रेस ने भी आपत्ति जताई है। उसका कहना है कि यह न केवल दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करेगा बल्कि यह दिल्ली के लोगों की शक्ति पर सीधा हमला है जिन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ज़रिए सरकार चुनी है।
कांग्रेस ने कहा है कि अगर यह बिल पास हो जाता है तो बीजेपी पिछली सीट पर बैठकर एलजी के ज़रिए सरकार चलाएगी और दिल्ली सरकार को हर रोज़ प्रशासनिक काम के लिए अनुमति लेनी होगी। कांग्रेस ने हैरानी जताई है कि केंद्रीय कैबिनेट ने 1 फ़रवरी को इस विधेयक को मंज़ूरी दी थी तो तब मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इसके खि़लाफ़ आवाज़ क्यों नहीं उठाई?