पार्टी नेतृत्व की बेरूखी से दिल्ली बीजेपी में सुलग रही चिंगारी

-संघ के नाम पर मनमानी से पार्टी के पुराने नेताओं में नाराजगी
-सक्रिय नेताओं की निष्क्रियता से नहीं खड़ा हो पा रहा संगठन

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
बीते 22 साल से दिल्ली की सत्ता से दूर चली आ रही भारतीय जनता पार्टी को अपने ही नेताओं की बेरूखी भारी पड़ रही है। कभी मजबूती से पार्टी को खड़ा करने वाले करीब दर्जन भर से ज्यादा नताओं के बीच विद्रोह की चिंगारी भड़क रही है। खास बात है कि संघ के नाम और नेतृत्व के आदेश के बहाने पार्टी की मुख्य धारा से दूर हुए इन नेताओं ने अंदरखाने पार्टी से दूरी बनाना शुरू कर दिया है। ज्यादा नाराजगी पार्टी के दो जिम्मेदार नेताओं के प्रति है।

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साल 2017 में एक ही झटके में दिल्ली के सभी पार्षदों का टिकट काटा जाना बीजेपी को ज्यादा भारी पड़ा है। बीजेपी तीनों निगमों में सत्ता में तो आ गई, लेकिन तीनों निगमों की हालत वह हो गई है कि निगम पार्षदों के काम पर पार्टी आने वाला नगर निगम चुनाव नहीं जीत सकती। यदि 2022 मे होने वाला नगर निगम चुनाव भी पार्टी के हाथ से निकल गया तो दोबारा सत्ता पाना बीजेपी के लिये टेढ़ी खीर हो जाएगा।

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खास बात है कि पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी के अध्यक्ष पद के कार्यकाल में जिस तरह से इन नेताओं (पूर्व पार्षदों) को पार्टी के कामकाज से अलग थलग रखा गया, उससे पार्टी और ज्यादा कमजोर हुई है। मनोज तिवारी ने जिन पार्षदों को विधानसभा चुनाव में खड़ा किया उनमें से ज्यादातर अपना वार्ड तक नहीं जीत पाये। क्योंकि पहले इनके निगम पार्षद के टिकट काटे गए, उसके बाद इन्हें संगठन से भी दूर रखा गया और 2020 के विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए उनके नामों पर भी विचार नहीं किया गया।

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पिछले दिनों ऐसे कुछ नेताओं ने नई दिल्ली में एक बैठक बुलाई थी। लेकिन कुछ कारणों से यह बैठक नहीं हो पाई थी। हालांकि फिलहाल इनमें से कोई भी नेता खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। मीरा अग्रवाल, प्रवेश वाही, मनोज त्यागी, विरेंद्र बब्बर, प्रवीन जैन, दिव्य जायसवाल, बीबी त्यागी, श्याम शर्मा, राधेश्याम शर्मा, मोहन भारद्वाज, बीपी पांडेय, चौधरी महक सिंह, संजय सुरजन, लता गुप्ता, डॉ पंकज सिंह, देवराज, सुनील कक्कड़, ममता ढीका आदि सहित कई ऐसे पूर्व पार्षद और नेता हैं जो पार्टी की ओर से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
प्रदेश नेतृत्व के सामने बड़ी चुनौती
आदेश गुप्ता के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में कई धड़े बन गए हैं। बताया जा रहा है कि अध्यक्ष बनने के कई दावेदार प्रदेश के गठन का इंतजार कर रहे हैं। यदि प्रदेश के गठन में आदेश गुप्ता मजबूत लोगों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे तो उन्हें आगे चलकर ज्यादा मुश्किलें नहीं आएंगी। सूत्रों का यह भी कहना है कि पार्टी में पहले भी गुटबाजी रही है, ऐसे में नई टीम में यदि ज्यादातर पुराने लोगों को ही जगह मिल गई तो आने वाले दिनों में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।