UP विधानसभा चुनाव से पहले तैयार हो जायेगा भव्य काशी विश्वनाथ कॉरिडोर

-कोरिडोर के लिए मिली ज्ञानवापी मस्जिद की 1700 वर्गफुट जमीन
-कोर्ट में लंबित चल रहा ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन का मामला

शक्ति सिंह/ वाराणसी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर’ में आ रही रूकावट दूर हो गई है। ज्ञानवादी मस्जिद की ओर से करीब 1700 वर्ग फुट जमीन मंदिर प्रशासन को दे दी गई है। इसके बदले में मंदिर प्रशासन की ओर से अन्य स्थान पर इतनी ही जमीन मस्जिद की कमेटी को दी गई है। इस जमीन पर फिलहाल मंदिर प्रशासन का कंट्रोल रूम स्थापित था। कोर्ट के बाहर आपसी सहमति के आधार पर हुए इस समझौते को बेहद अहम माना जा रहा है। यह कॉरिडोर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पूरा हो जायेगा और बीजेपी के लिए चुनाव में जान फूंकने वाला साबित होगा। बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को लेकर कोर्ट में विवाद चल रहा है।

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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण 5 लाख वर्ग फुट में किया जा रहा है। जुलाई में इसका 55 फीसदी काम पूरा हो चुका है और बाकी काम भी यूपी विधानसभा चुनाव से पूर्व इसी साल नवंबर तक कर लिया जायेगा। इस परियोजना पर सरकार द्वारा करीब 800 करोड़ रूपये खर्च किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च 2019 को इसकी आधारशिला रखी थी। जलासेन घाट से बाबा विश्वनाथ धाम को जोड़ने वाले कॉरिडोर की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें बालेश्वर स्टोन, मकराना मार्बल, कोटा ग्रेनाइट और मैडोना स्टोन सहित कुल सात तरह के पत्थरों का प्रमुख तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।

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इस परियोजना में 33 हजार 75 वर्ग फुट में मुख्य मंदिर का निर्माण भी शामिल है। इसके निर्माण के लिये 314 भवनों का अधिग्रहण किया जा चुका है। 35 मीटर लंबे और 80 मीटर चौड़े क्षेत्र में गेट सहित 24 भवनों का निर्माण किया जा रहा है। मंदिर परिसर में ऊपर की ओर एक वीआईपी गैलरी का निर्माण भी किया जा रहा है। यहां से बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के दर्शन एक साथ किये जा सकेंगे। परियोजना का खास आकर्षण गंगा की ओर बन रहे भव्य द्वारों से जुड़ा है। यहां गंगा गैलरी को भव्यता देने के लिए बजट में 40 करोड़ रूपये की बढ़ोतरी की गई है। परियोजना में श्रद्धालुओं की सुविधाओं का खास खयाल रखा गया है।

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परियोजना के तहत श्रद्धालुओं के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर में माता वैष्णो देवी और शिरडी के सांई मंदिर जैसी व्यवस्था की जा रही है। मंदिर परिसर में दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए जिग-जैग स्टाइल में स्टील की रेलिंग लगाई जा रही है। जिससे श्रद्धालु मंदिर परिसर में कतार लगा सकेंगे। रेलिंग के नीचे लाल कारपेट बिछाया जायेगा। इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर का गर्भग्रह, तारकेश्वर महादेव, रानी भवानी, माता पार्वती व अन्नपूर्णा, भगवान विष्णू का स्थान स्थित है। परियोजना का ज्यादातर काम पूरा किया जा चुका है और फ्लोरिंग का काम जारी है।
काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर की परियोजना में छोटे-बड़े 24 भवनों का निर्माण कार्य तेजी पर है। इनमें मंदिर परिसर के अतिरिक्त मंदिर चौक, सिटी म्यूजियम, वाराणसी गैलरी, मल्टीपरपज हॉल, पर्यटक सुविधा केंद्र, जनसुविधा ब्लॉक, मुमुक्ष भवन, गेस्ट हाउस, नीलकंठ पैवेलियन, सिक्योरिटी ऑफिस, गोदौलिया गेट, यात्री सुविधा केंद्र, भोगशाला, अघ्यात्मिक पुस्तक केंद्र, जलपान केंद्र, वैदिक केंद्र, सांस्कृतिक केंद्र एवं दुकानें शामिल हैं।

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बनारस से सांसद बनने के बाद विश्वनाथ मंदिर पहुंचे प्रधानमंत्री ने यहां की व्यवस्था सुधारने की पहल शुरू की थी। इसी के बाद काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का ब्लू प्रिंट तैयार किया गया। करीब साढ़े तीन सौ मकानों का अधिग्रहण करने के साथ पीएम मोदी ने खुद कॉरिडोर की आधारशीला रखी थी। तेज गति में बन रहे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के वक्फ बोर्ड की जमीन पर ही यहां कंट्रोल रूम बना था। कॉरिडोर की डिजाइन में इस स्थान पर सुरक्षा टावर बनना है। ऐसे में जमीन की जरूरत पर बात हुई। मुस्लिम समाज ने अपनी तरफ से पहल की और वक्फ की जमीन कॉरिडोर को देने पर सहमति जता दी। सहमति के बाद मंदिर की तरफ से बने प्रस्ताव को विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद में रखा गया। वहां से हरी झंडी मिलते ही जमीन की अदला बदली हो गई।

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बता दें कि ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार देने को लेकर वर्ष 1991 में मुकदमा दायर किया गया था। मामले में निचली अदालत व सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से कई वर्षों से स्टे होने से वाद लम्बित रहा। 2019 में सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से अपील की गई कि संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का भौतिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से राडार तकनीक से सर्वेक्षण कराया जाए। मामले में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड शुरू से प्रतिवादी हैं।
ज्ञानवापी की जमीन के सर्वेक्षण का आदेश
वाराणसी की अदालत ने विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया है। कोर्ट ने इसके लिए पांच सदस्यीय कमेटी गठित करने का भी निर्देश दिया है। वर्ष 1991 से विवादित ढांचे पर पूजा के अधिकार की लम्बित याचिका के मामले में 10 दिसंबर 2019 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) आशुतोष तिवारी की अदालत में आवेदन देकर अपील की थी कि ढांचास्थल के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए निर्देशित किया जाये। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरातात्विक अवशेष हैं।
अपील में कहा गया है कि ज्ञानवापी परिसर के रकबा संख्या 9130, 9131, 9132 के तहत लगभग एक बीघा 9 विस्वा जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर के अवशेष है। मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना 14वीं शताब्दी के है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। हजारों वर्ष पहले 2050 विक्रमी संवत में राजा विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण कराया था। फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।
यह भी कहा गया कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा। बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास के विभागाध्यक्ष एएस अल्टेकर ने बनारस के इतिहास में लिखा है कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग 100 फीट का था। अरघा भी 100 फीट का बताया गया है। लिंग पर गंगाजल बराबर गिरता रहा है, जिसे पत्थर से ढक दिया गया। यहां शृंगार गौरी की पूजा-अर्चना होती है। तहखाना यथावत है। यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा।
हालांकि विपक्षीगण अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के वकील रईस अहमद अंसारी, मुमताज अहमद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के अभय यादव व तौफीक खान ने पक्ष रखा था कि जब मंदिर तोड़ा गया तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था, जो आज भी है। उसी दौरान राजा अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल की मदद से स्वामी नरायन भट्ट ने मंदिर बनवाया था जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है। ऐसे में ढांचे के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे हो सकता है? ऐसे में ज्ञानवापी परिसर की खुदाई या सर्वेक्षण नहीं होना चाहिए।