निर्वाचन आयोग ने दिया BJP को गच्चा… कोर्ट जा सकता है रोटेशन का मामला!

-ज्यादा अनुपात के बजाय कम अनुपात वाली सीटें कीं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित
-अपने ही स्टेंड से हटा निर्वाचन आयोग, पिछली बार कोर्ट में दिया था बयान

शक्ति सिंह/ नई दिल्ली
तीनों नगर नगम वार्डस के रोटेशन के मामले में भारतीय जनता पार्टी राज्य निर्वाचन आयोग से गच्चा खा गई है। आयोग ने कई ऐसी सीटों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया है, जहां इस वर्ग के लोग बहुत कम संख्या में रहते हैं। जबकि कई ऐसे वार्डस को सामान्य श्रेणी में रख दिया है, जहां बहुत ज्यादा संख्या में दलित वर्ग के मतदाता रहते हैं। खास बात है कि पूर्वी दिल्ली में महज साढ़े सात फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं वाले वार्ड को आरक्षित कर दिया गया, जबकि 28 फीसदी से ज्यादा अनुसूचित जाति वाले वार्ड को सामान्य की श्रेणी में डाल दिया गया है। उल्लेखनीय है कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम क्षेत्र के 64 वार्डों में से 2 , 8 ,32 ,53 ,55 नम्बर ऐसे वार्ड है जहां 40 प्रतिशत से अधिक दलित मतदाता है लेकिन इन्हें सामान्य घोषित कर दिया गया और 6 , 11 , 30 , 31 , 34 , 35 , 36 , 37 , 38 ,56  नम्बर वार्ड ऐसे है जहां पर 25 प्रतिशत भी दलित मतदाता नही  है लेकिन इन्हें आरक्षित घोषित कर दिया  गया है ।

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बता दें कि दिल्ली में अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं पर बीजेपी का प्रभाव कम है। यही कारण है कि 2017 के निगम चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कुल 46 सीटों में से बीजेपी तीनों नगर निगमों में महज दर्जन भर सीटों पर ही जीत पाई थी। इसके पश्चात 2022 के विधानसभा चुनाव में तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कुल 12 विधानसभा सीटों में से एक पर भी जीत हासिल नहीं कर की थी।

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ऐसे में निर्वाचन आयोग की ओर से नये रोटेशन के तहत ऐसे वार्डस को भी आरक्षित कर दिया गया है, जहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या बेहद कम है। जबकि अनुसूचित जाति के ज्यादा मतदाताओं वाले वार्डस को सामान्य की श्रेणी में रखा गया है। उदाहरण के लिए दिल्ली में तिमारपुर, कंझावला, लक्ष्मी पार्क, नारायणा, मंगलापुरी, गोविंदपुरी इस तरह के वार्ड हैं, जहां अनुसूचित जाति के मतदाता कम संख्या में रहते हैं। जबकि भलस्वा, कमला नगर, चांदनी चौक, पटेल नगर वेस्ट, ककरोला, भाटी और दल्लूपुरा जैसे वार्डस में दलित मतदाता ज्यादा संख्या में रहते हैं।
ऐसे में अप्रैल में होने जा रहे निगम चुनाव में यह रोटेशन बीजेपी के लिए भारी पड़ सकता है। सियासी जानकार बताते हैं कि राजधानी दिल्ली में ज्यादातर दलित मतदाता पहले कांग्रेस के साथ और अब आम आदमी पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं। सामान्य सीटों को दलित किये जाने से एक ओर जहां सामान्य श्रेणी के मतदाताओं के सामने वोट का विकल्प नहीं बचेगा, वहीं दलित बहुलता वाली सीटों पर सामान्य वर्ग के नताओं को वोट मिलना मुश्किल हो जायेगा। ऐसे में बीजेपी के हिस्से में घाटा ही नजर आता है।
मौके पर चूके बीजेपी के रणनीतिकार
निर्वाचन आयोग को सुझाव देते समय बीजेपी के नेता चूक गये। उन्होंने राजधानी की सियासी हवा का रूख पहचाने बिना ही आयोग के फैसले पर मुहर लगा दी है। जबकि निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस के सुझाव को प्राथमिकता देते हुए अपना फैसला सुना दिया। बता दें कि 2017 में निगम वार्डस के रोटेशन का मामला दिल्ली हाई कोर्ट तक पहुंच गया था, तब बीजेपी और कुछ दूसरे संगठनों ने इस बात का विरोध किया था कि एक ही विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर निगम वार्डस को एससी के लिए आरक्षित किया जाना ठीक नहीं है। लेकिन तब निर्वाचन आयोग ने दलित मतदाताओं की संख्या को आधार बनाया था और कोर्ट ने आयोग क फैसले को जारी रखा था। लेकिन इस बार खुद ही निर्वाचन आयोग ने अपने पुराने फैसले को बदलते हुए कम दलित मतदाताओं वाले वार्डस को आरक्षित कर दिया है।
निर्वाचन आयोग से रोटेशन पर पुनर्विचार की मांग
निगम की राजनीति के विशेष जानकार जगदीश ममगांई का कहना है कि निर्वाचन आयोग ने गलत तरीके से रोटशन किया है। आयोग ने किसी भी फार्मूले को पूरी तरह से लागू नहीं किया है। मनमर्जी के आधार पर किसी भी सीट को आरक्षित नहीं किया जा सकता है। या तो ज्यादा दलित संख्या के आधार पर किया जा सकता है या फिर ऑड-ईवन के आधार पर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ गलतियां 2017 में भी निर्वाचन आयोग ने की थीं इसके पश्चात एक बार फिर से सीटों का रोटेशन गलत तरीके से किया गया है। उन्हांने मांग की रोटेशन पर दोबारा से विचार किया जाना चाहिए।
कोर्ट जा सकता है मामला
बताया जा रहा है कि राज्य निर्वाचन आयोग का रोटेशन के आदेश का मामला कोर्ट जा सकता है। कुछ संगठन अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई सीटों के मामले को लेकर कोर्ट जाने की तैयारी कर रह हैं। सार्थक जन मंच के सचिव पीआर झा ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने सीटों का आरक्षण गलत तरीके से किया है। तीनों नगर निगमों में एक ही आधार पर सीटों का आरक्षण किया जाना चाहिए ना कि मनमर्जी से किसी भी सीट का उठाकर आरक्षित कर दिया जाये।