DOCTORS के मसले पर निगम को कड़ी फटकार… केंद्र सरकार पर भी प्रहार

-उत्तरी दिल्ली निगम के अधिकारियों ने कराई बीजेपी की फजीहत
-कई कई पदों पर कब्जा किए बैठे अधिकारी नहीं कर रहे कोई काम

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
कोरोना वॉरियर्स (डॉक्टर्स) के मुद्दे पर नगर निगम को कड़ी फटकार सुननी पड़ी है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम में प्रतिनियुक्ति पर आए कुछ नौसिखिया अधिकारियों ने तीनों निगमों की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी की खूब किरकिरी कराई है। निगम के अधिकारी पदों की बंदरबांट और ईमानदार अधिकारियों को हटाकर दागी लोगों को बड़े पदों पर बैठाने में कुछ इस तरह व्यस्त रहे कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम की हालत खस्ता होती चली गई।

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खास बात यह है कि निगम के आला अधिकारियों की वजह से केंद्र की मोदी सरकार को भी फटकार सुननी पड़ी है। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम के दूसरे डॉक्टर्स में बेचैनी बढ़ गई है। कारण है कि रेजिडेंट डॉक्टर्स की संख्या से कई गुना ज्यादा सीनियर डॉक्टर्स की है। उन्हें कोर्ट के इस फैसले कुछ नहीं मिला है। अब उन्होंने भी आंदोलन के रास्ते पर जाने का मन बना लिया है।

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शुक्रवार को उत्तरी दिल्ली नगर निगम के डॉक्टर्स की सेलरी के मसले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने निगम को कड़ी फटकार लगाई। दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कोरोना के खिलाफ लड़ रहे सैनिकों (डॉक्टरों) को असंतुष्ट रखकर हम यह जंग नहीं जीत सकते। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के डॉक्टर प्रोटेस्ट कर रहे है। उन्हें तीन महीने से सैलरी नहीं मिली। ऐसी चीजें तो आप को खुद देखनी चाहिए। डॉक्टर्स को कोर्ट तक आने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को मेडिकल प्रोफेशनल्स के मुद्दे पर तुरंत विचार करना चाहिए। कोर्ट ने आदेश दिया कि डॉक्टरों ने जो बातें उठाई हैं उन पर फौरन कार्रवाई होनी चाहिए।

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डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट से शिकायत की है कि उन्हें सही पीपीई किट नहीं मिल रही हैं। साथ ही सभी हेल्थ वर्कर्स ने अस्पताल के करीब ही कहीं रहने की जगह दिये जाने की मांग भी उठाई है। उनका कहना है कि अस्पताल में काम करने के बाद लोग अपने घर जाएंगे तो घर के लोगों में भी संक्रमण का खतरा लगातार मंडराता रहता है।

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सैलरी के मामले में लताड़
दिल्ली के कस्तूरबा अस्पताल और उत्तरी दिल्ली नगर निगम के दूसरे अस्पतालों में डॉक्टर्स को सैलरी ना मिलने से जुड़े मामले में हाई कोर्ट ने नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि आप इतने व्यस्त हैं कि डॉक्टर्स को तनख्वाह देने का समय भी आपके पास नहीं है? हाईकोर्ट इस मामले में स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है।

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डॉक्टर्स को लेकर जताई चिंता
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हम रेजिडेंट डॉक्टर्स को लेकर चिंतित हैं। जिनकी संख्या 300 से ऊपर है। इनकी हर महीने की तनख्वाह 2 करोड़ 10 लाख रुपये बनती है। बतादें कि नगर निगम ने कोर्ट में अपने जवाब में कहा कि निगम के पास अभी 10 करोड़ रुपये हैं,
जबकि सभी डॉक्टर्स को वेतन देने के लिए कम से कम 17 से 18 करोड़ रुपयों की जरूरत है।
नगर निगम ने माना, नहीं दे पा रहे वेतन
हाई कोर्ट में नगर निगम ने खुद मान लिया है कि, यह सही है कि पिछले कुछ महीनों से हम डॉक्टर्स को वेतन नहीं दे पा रहे हैं। लेकिन डॉक्टरों को कोरोना के इस समय में हड़ताल पर नहीं जाना चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार और आप खुद मिलकर तय करें कि डॉक्टरों को तुरंत सेलरी कैसे दी जा सकती है।
तीन महीने से नहीं मिला वेतन
बता दें कि दिल्ली में उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधीन आने वाले कस्तूरबा व हिंदू राव हॉस्पिटल सहित पांच बड़े, एक छोटे अस्पताल और डिस्पेंसरीज में काम करने वाले डॉक्टर्स को पिछले तीन महीने से वेतन नहीं मिला है। इससे नाराज कस्तूरबा अस्पताल के डॉक्टर्स ने अस्पताल प्रशासन को 16 जून तक सैलरी न मिलने पर सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी है। इस मामले में हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है।
साधन जुटाने के बजाय पुराने लोगों को हाटने पर ज्यादा ध्यान
उत्तरी दिल्ली नगर निगम में शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों ने निगम के साधनों से राजस्व जुटाने पर ध्यान नहीं दिया। पार्किंग, विज्ञापन, लाइसेंसिंग, प्रॉपर्टी टैक्स और टोल टैक्स ऐसे क्षेत्र हैं जहां से निगम की आय बढ़ाई जा सकती थी। लॉकडाउन की वजह से आवाजाही बंद रही, लेकिन बाकी मामलों में आमदनी हो सकती थी। लेकिन उत्तरी दिल्ली निगम की आरपी सेल के आला अधिकारी पब्लिसिटी एंड इनफॉरमेशन व आयुष विभागों पर कब्जा करने और कराने में व्यस्त रहे और निगम की लुटिया डूबती चली गई।
सबसे बड़ी समस्या वाले स्वास्थ्य विभाग पर दागी का कब्जा
हाई कोर्ट तक पहुंचे डॉक्टर्स के मसले और नगर निगम से लेकर दिल्ली सरकार व केंद्र की मोदी सरकार की हुई फजीहत के लिए खुद उत्तरी दिल्ली नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने ऐसे व्यक्ति को निगम स्वास्थ्य अधिकारी (एमएचओ) बना रखा है, वह खुद इतना बड़ा दागी है, कि उनके बारे में निगम के इतिहास, वर्तमान और भविष्य की किताबें भरी पड़ी हैं। जिस विभाग में ऐसे अधिकारी हों उस विभाग का मटियामेट होना तो तय होता ही है।
रफा-दफा करने में जुटी बीजेपी
प्रदेश बीजेपी के नेताओं के साथ ही नगर निगम के बीजेपी नेता मामले को रफा-दफा करने में जुट गए हैं। निगम में बदलाव की बयार से डरे बीजेपी पार्षद दिल्ली के तीनों नगर निगमों में फैले भ्रष्टाचार पर बोलने से बच रहे हैं। निगम में अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार पर ऑफ कैमरा तो सब बात करते हैं, लेकिन ऑन कैमरा कहने से हिचक रहे हैं। प्रदेश बीजेपी के नेता भी इस मामले में कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं।