दंगों के लिए ताहिर ने किया बहके लोगों का इस्तेमाल!

-मानव हथियार के रूप में किया बहके लोगों का इस्तेमालः कोर्ट
-दंगों के पर्याप्त साक्ष्य, कोर्ट ने ठुकराई ताहिर की जमानत याचिका

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी एवं आम आदमी पार्टी के पूर्व निगम पार्षद ताहिर हुसैन को कड़कड़डूमा कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया है। दंगों के दौरान दयालपुर इलाके में दो युवकों पर जानलेवा हमला करने के अलग-अगल मामलों में उसने जमानत के लिए अर्जी लगाई थी। कोर्ट ने यह कहते हुए ताहिर की अर्जियां खारिज कर दीं कि ताहिर ने सरगना की भूमिका में साम्प्रदायिक हिंसा की आग भड़काने के लिए अपने बाहुबल और राजनीतिक शक्तियों का इस्तेमाल किया। उसने खुद आगे न आकर बहके हुए लोगों का उपयोग मानव हथियार के रूप में किया। कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि विश्व शक्ति की ओर बढ़ रहे देश की अंतरात्मा पर इस दंगे ने गहरा घाव लगाया है।

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बता दें कि बीते वर्ष 25 फरवरी को दुकान से अपने घर का सामान लेने जा रहे युवक प्रिंस बंसल पर चांद बाग पुलिया के पास जानलेवा हमला हुआ था। प्रिंस बंसल ने पुलिस को बयान दिया था कि ‘‘खजूरी स्थित ताहिर हुसैन के घर की छत से पत्थर और पेट्रोल बम फेंके गए थे। फायरिंग भी की गई थी। जिसमें से एक गोली उनको लग गई थी।’’ इसी जगह युवक अजय कुमार के हाथ में गोली लगी थी। दोनों की शिकायत पर अलग-अलग मुकदमे दर्ज हुए थे। दोनों ही मामलों में आरोपित ताहिर हुसैन ने जमानत के लिए फरवरी 2021 में अर्जी दायर की थी। जिस पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की कोर्ट में शनिवार को सुनवाई हुई।

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ताहिर के वकील रिजवान ने पक्ष रखा कि उनके मुवक्किल को दोनों मामलों में गलत फंसाया गया है। उसके खिलाफ सीसीटीवी कैमरे की कोई फुटेज नहीं है। न ही घायलों ने मूल प्राथमिकी में ताहिर का नाम दर्ज कराया था। साथ ही कहा कि ताहिर पर कोई स्पष्ट आरोप नहीं लगा है। राजनीतिक द्वेष के तहत उसे फंसाया गया है। ऐसा भी कोई साक्ष्य नहीं पेश किया गया कि गोली ताहिर की लाइसेंसी पिस्तौल से ही चली थी। वकील ने यह भी पक्ष रखा कि इलाके की बिगड़ती स्थिति, पत्नी और अपने परिवार की जान को खतरे में देखते हुए ताहिर हुसैन ने दयालपुर थाने के थानाध्यक्ष और क्षेत्र के एसीपी को सात कॉल किए थे, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। पीसीआर को भी सात कॉल किए गये थे।

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अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक डीके भाटिया ने कोर्ट में पक्ष रखा कि यह दंगा नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में एक सोची समझी साजिश थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा से पहले इसकी योजना बनाई गई। साजिशकर्ताओं को मालूम था कि पुलिस प्रशासन उस दौरान तैयारियों में जुटा हुआ था। उन्होंने दलील दी कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि ताहिर घटना के समय वहीं मौजूद था, जिससे इन दोनों घटनाओं में उसकी सक्रियता बयां होती है। दोनों घायलों ने अपनी शिकायत में स्पष्ट बताया था कि घटना के समय ताहिर अपने घर की छत पर मौजूद था। साथ ही कहा कि कोई शक न करे, इसलिए आरोपित ने पुलिस अधिकारियों और पीसीआर को कॉल किया। कोर्ट को यह भी बताया कि दंगे से पहले क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया गया था।

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दोनों पक्षों के तथ्यों पर गौर करते हए कोर्ट ने ताहिर हुसैन की जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दूसरे समुदाय के ज्यादा से ज्यादा लोगों और संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए दंगाइयों ने घातक हथियारों का इस्तेमाल किया। इन मामलों में आंखो देखे पर्याप्त साक्ष्य हैं। दोनों घायलों के अलावा चश्मदीद गवाहों ने आरोपित को पहचाना है। सीडीआर लोकेशन से पता चलता है कि आरोपित घटना के समय मौके पर मौजूद था और पूरी तरह सक्रिय था।
कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य बताते हैं कि आरोपित ने दंगे भड़काने से ठीक पहले खजूरी खास थाने से पिस्तौल को छुड़वाई थी। उसके पास जारी हुए 100 कारतूसों में से 64 ही थे। बाकी कारतूस कहां और कब चलाए गए इसका हिसाब ताहिर हुसैन नहीं दे पाया है। कोर्ट ने संविधान में दिए गए स्वतंत्रता के अधिकार के मुद्दे पर कहा कि इस पर कोई संदेह नहीं कि स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, उस शख्स की भी जो आरोपित है। लेकिन कोर्ट के लिए यह देखना महत्वपूर्ण है कि अगर आरोपित को जमानत पर छोड़ दिया जाए तो पीड़ित और गवाहों की जान को कितना खतरा बन सकता है।